प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की यात्रा के दौरान फेक न्यूज पेडलर्स और बुद्धिजीवियों को तो आगे आना ही था। वे आए भी। हालांकि यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि मनभावन मुद्दे नहीं मिलने पर जिन घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है वे चिंताजनक अधिक हैं या मनोरंजक।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान ट्वीटर सीईओ एलन मस्क के साथ मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद भारत में इलेक्ट्रिक कार टेस्ला के आने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं। मस्क द्वारा भारत में निवेश करने की संभावनाओं पर जोर दिया गया है। देश को इससे निवेश और आर्थिक लाभ मिलने की संभावना है। वहीं मुलाकात ने उन बुद्धिजीवियों को व्यस्त कर दिया है जो ट्विटर सीईओ द्वारा फ्रीडम ऑफ स्पीच को लेकर दिए गए बयान से ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी के बयान के साथ समानता खोजने का प्रयास कर रहे हैं। इसमें कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत को भी कूदना ही था जो हर अवसर पर गाली देने का मौका ढूंढ ही लेती हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता या वोकवादियों द्वारा एलन मस्क और जैक डोर्सी के बयान को समानार्थक बताकर प्रचारित किया जा रहा है। इनकी समझ पर बात करने से पहले एलन मस्क के उस बयान को पढ़ लेते हैं जिसने यह चर्चाएं शुरू की है।
प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद एलन मस्क ने कहा, “ट्विटर के पास स्थानीय सरकारों की बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यदि हम स्थानीय सरकार के कानूनों का पालन नहीं करते हैं, तो हम बंद हो जाएंगे, इसलिए हम जो सबसे अच्छा कर सकते हैं वह किसी भी देश में कानून के करीब काम करना है, हमारे लिए इससे अधिक करना असंभव है। कोई भी अमेरिका के कानूनों को पूरे विश्व में लागू नहीं कर सकता है। सभी देशों में अलग-अलग कानून होते हैं। हम कानून के तहत सबसे फ्री स्पीच प्रदान करने की पूरी कोशिश करेंगे”।
जाहिर है कि पिछले दिनों जैक डोर्सी द्वारा भारत में लोकतंत्र एवं फ्रीडम ऑफ स्पीच को लेकर बयान दिया गया था। इन दोनों बयानों को मिलाकर बुद्धिजीवी यह प्रसारित करना चाह रहे हैं कि भारत में बोलने की आजादी पर बैन है।
यहां पर भले ही डोर्सी एवं मस्क के बयानों को एक बताया जाए पर क्या यह वास्तव में समानार्थी है? जवाब है नहीं। एलन मस्क एक प्राइवेट कंपनी के संचालनकर्ता होने के नाते यह स्वीकार कर रहे हैं कि सभी देशों के नियमों में भिन्नता पाई जाती है और वो विदेश में अमेरिका के क़ानून लागू नहीं कर सकते। वहीं ब्राह्मणिकल पितृसत्ता पर प्रोपगेंडा को सपोर्ट करने वाले जैक डोर्सी का बयान यह इस बात पर जोर दे रहा था कि क्यों सभी देशों में अलग कानून है और विदेशी कंपनी को क्यों स्थानीय सरकार के नियम मानने पड़ रहे हैं?
अगर कांग्रेस और उसके समर्थक जैक डोर्सी से सहमत हैं तो क्या उनका मानना है कि देश में संचालित सभी विदेशी कंपनियों पर भारत के कानून लागू नहीं होने चाहिए? याद कीजिए कि ट्विटर के पूर्व अधिकारियों ने कैसे धड़ल्ले के साथ कह दिया था कि वह दुनिया में चाहे जहाँ ऑपरेट करे लेकिन ट्विटर पर केवल अमरीकी क़ानून ही लागू हो सकते हैं।
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विदेशी कंपनियां जब किसी देश में व्यापार शुरू करना चाहती हैं तो उन्हें स्थानीय शासन, प्रशासन और क़ानूनों के साथ समन्वय बैठाना होता ही है। यह स्थानीय सरकार की जिम्मेदारी और अधिकार भी है कि वो जनमानस की सुविधा और आवश्यकताओं के अनुसार नियम बनाए जिससे विदेशी कंपनियां स्थानीय लोगों के लिए परेशानी का कारण नहीं बने। स्थानीय सरकार का लक्ष्य ग्लोबल व्यापार को जितना बढ़ाने का है उससे अधिक अपने जनमानस की सुरक्षा और सुविधाएं सुनिश्चित करने का है और यह सब भारत ही नहीं सभी देशों पर लागू होता है।
ऐसा तो संभव नहीं है कि कोई अमेरिकी कंपनी किसी दूसरे देश में जाकर अमेरिका का कानून लागू कर दे। फिर भी अगर किसी प्रकार यह विकल्प किसी को सही लगता है तो वो निश्चित रूप से औपनिवेशिक देश बनने की तैयारी कर रहा है।
किसी भी प्रकार से एलन मस्क के बयान का स्वागत किया जाना चाहिए। अमेरिकी पक्ष से नहीं बल्कि भारत के पक्ष से भी। ट्विटर के वर्तमान और पूर्व सीईओ, दोनों के बयान यह दर्शा रहे हैं कि वर्तमान सरकार विदेशी कंपनियों को कड़ा संदेश देने में कामयाब रही है। देश में व्यापार के लिए उन्हें नियम कायदों का पालन करना पड़ेगा। यह एक मजबूत लोकतांत्रिक देश का असर है। कांग्रेस द्वारा इसका विरोध क्यों किया जा रहा है? इसका कारण संभवतया औपनिवेशिक मानसिकता हो सकती है जो आगे बढ़ने के लिए पश्चिमी देशों की सहमति का इंतजार करती रहती है।
जैक डोर्सी को समर्थन देने के लिए सुप्रिया श्रीनेत और उनकी पार्टी पूर्णतया स्वतंत्र है। उनके समर्थन से स्पष्ट है कि वो विदेशी कंपनियों पर भारतीय नियम कानून लागू करना सही नहीं मानती है। इससे क्या यह भी मान लिया जाए कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वो भारत में संचालित कंपनियों पर उनके संबंधित देश के कानून लागू कर देंगी? क्या भारत फिर से वह समय देखने के लिए तैयार है जब देश के लोग विदेशी कानूनों के अनुसार चलते थे?
इंटरनेट यूज़र्स अपने विचारों के अनुसार किसका समर्थन करते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है पर अगर विपक्षी दल की प्रवक्ता यह चाह रही हैं कि भारत में संचालित विदेशी कंपनियों पर भारतीय कानून लागू नहीं होने चाहिए तो यह क्या देश विरोधी बयान नहीं है? क्या सुप्रिया श्रीनेत से नहीं पूछा जाना चाहिए कि वो क्यों विदेशी कंपनियों को भारत में अपने कानून थोपने का समर्थन कर रही हैं?
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