अशोक गहलोत की अगुवाई वाला राजस्थान इन दिनों बिजली की भारी किल्लत से जूझ रहा है। रबी की फसल के सिंचाई का समय होने के बावजूद सरकार किसानों को पर्याप्त बिजली मुहैया कराने में असफल साबित हो रही है। दूसरी ओर राजस्थान के ऊर्जा मंत्री ने इस समस्या का ठीकरा कोयला ना मिलने पर फोड़ दिया है।
राजस्थान में इस वर्ष कई बार लोडशेडिंग (बिजली की मांग अधिक और आपूर्ति कम होने का परिणाम) की समस्या सामने आ चुकी है। वर्तमान में बिजली की कमी से सर्वाधिक समस्या प्रदेश के किसानों को हो रही है जिनको खेतों में सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिल पा रही। प्रदेश के बिजली उत्पादन संयंत्र भी अपनी आधी क्षमता पर चल रहे हैं।
इस समस्या के केंद्र में बिजली की बढ़ी मांग का पूरा नहीं हो पाना है। राजस्थान खुद के ही संयंत्रों से बिजली पैदा नहीं कर पा रहा है। राज्य के ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने इसके पीछे का कारण छत्तीसगढ़ से कोयले का खनन ना हो पाना बताया है।
मांग अधिक और आपूर्ति कम
राजस्थान में इस समय फसलों के लिए सिंचाई का समय चल रहा है। इसके अतिरिक्त, राज्य में अन्य कारणों से भी बिजली की मांग बड़े स्तर पर बढ़ी हुई है। वर्तमान में लगभग 18000 मेगावाट बिजली की मांग है जबकि राज्य के पास लगभग 14000 मेगावाट ही बिजली पैदा करने की क्षमता है।
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राज्य ने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से भी 2000 मेगावाट बिजली उधार ली है पर संकट गहराता जा रहा है। इस बीच सरकार ने किसानों के बिजली कनेक्शन भी तेजी से बढ़ाने चालू कर दिए हैं जिससे मांग में और बढ़ोतरी होने की सम्भावना है। किल्लत के कारण किसान भीषण ठंड के मौसम में रात में खेतों में सिंचाई करने को मजबूर हैं।
छत्तीसगढ़ नहीं दे रहा कोयला, भूपेश सरकार ने अटकाया रोड़ा
राजस्थान में बिजली की कमी पर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का कहना है कि प्रदेश में कोयले की आपूर्ति समय से नहीं हो पा रही जिससे प्रदेश सरकार के कोयला चालित बिजली उत्पादन संयंत्र अपनी पूरी क्षमता पर काम नहीं कर पा रहे।
वे यह भी कह रहे हैं कि उन्हें छत्तीसगढ़ में राजस्थान को आवंटित कोयला खदानों से कोयला नहीं निकालने दिया जा रहा है। दरअसल छत्तीसगढ़ में राजस्थान को तीन कोयला खदान आवंटित की गई हैं, जिनसे निकाल कर कोयला राजस्थान के स्थानीय बिजली संयंत्रों में उपयोग किया जाना है।
राजस्थान के पास वर्तमान में लगभग 7900 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की क्षमता है। छत्तीसगढ़ में कोयला खनन का बड़े स्तर पर स्थानीय जनता विरोध कर रही है।
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छत्तीसगढ़ में राजस्थान को परसा ईस्ट, केते एक्स्टेंशन और केते बेसिन खदाने आवंटित हैं। वर्तमान में इन पर छत्तीसगढ़ की जनता राजस्थान को कोयला खनन नहीं करने दे रही। खनन के लिए आवश्यक पेड़ों की कटाई भी नहीं हो पा रही। इस बाबत कानूनी लड़ाई जारी है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी खनन की मंजूरी दे दी है पर मंजूरी मिलने के बाद भी राजस्थान की सरकार छत्तीसगढ़ से कोयला नहीं निकाल पा रही। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित कराने में भूपेश बघेल सरकार की भूमिका जरुरी है पर वह स्थानीय वोट खोना नहीं चाहते।
ध्यान देने वाली बात है कि दोनों राज्यों में कॉन्ग्रेस का शासन है परन्तु राज्य आपस में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ की सरकार केंद्र सरकार से इस आवंटन को रद्द करने तक की सिफारिश चुकी है। प्रश्न यह है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में खनन की मंजूरी दे दी है तो स्थानीय प्रशासन उस आदेश को क्रियान्वित क्यों नहीं करवा पा रहा?
कोयला नहीं मिला तो सफ़ेद हाथी हो जाएगें बिजली संयत्र
राजस्थान सरकार बड़े स्तर पर राज्य में उत्पादन हेतु कोयला संयंत्रों के लिए निवेश कर चुकी है। समाचार पत्र भाष्कर से बात करते हुए राजस्थान विद्युत् निगम के सीएमडी ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों के आवंटन के ही आधार पर हमने 40,000 करोड़ के निवेश से संयंत्र लगाए हैं।
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ऐसे में कोयला ना मिलने की दशा में यह संयंत्र किसी काम के नहीं रहेंगें। वहीं प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का कहना है कि उन्हें वर्तमान में केंद्र सरकार ओड़ीसा के महानदी कोलफील्ड से कोयला उपलब्ध करा रही है जिसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है। राजस्थान के स्थानीय समाचार पत्र पत्रिका के अनुसार प्रदेश के बिजली उत्पादन संयंत्रो के रखरखाव और तकनीकी समस्याओं के कारण भी राज्य में बिजली की किल्लत हो रही है।