सुप्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार की एक पंक्ति “हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।” अक्सर यह पंक्ति भारत में किसी नौकरशाह (ब्यूरोक्रेट्स) द्वारा अपने पेशे को महिमा-मंडित करते हुए लिखते-बोलते और चर्चा करते सुना ही जाता है।
इस तरह की तमाम चर्चाएं “मेरे सीने में ना सही, तेरे सीने में सही” जैसी ज्वलंत बातें कब, कैसे घोटालों की जाँच की आग तक पहुँच गई इसकी चर्चा नौकरशाह बेहद कम करते हैं।
एक ही दिन में दो हाई-प्रोफाइल महिला नौकरशाहों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कार्रवाई की गई। दोनों के खिलाफ पीएमएलए के अंतर्गत मनी-लॉन्ड्रिंग का मुक़दमा दर्ज़ है।
एक हैं, झारखण्ड की निलंबित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल, जिनके घर से ईडी के छापे के दौरान 19 करोड़ रुपए की नकद बरामदगी हुई थी।
दूसरी हैं, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपसचिव सौम्या चौरसिया, जिनको ईडी ने चार दिनों की रिमांड पर लिया है। इन दोनों महिला अधिकारियों की प्रदेश की राजनीति में भी अच्छी पकड़ रही है।
पूजा सिंघल पर ED की कार्रवाई
करीब 6 महीने की जाँच और पूछताछ के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने निलंबित आईएएस पूजा सिंघल से जुड़े 82.77 करोड़ रुपए की संपत्ति को कुर्क कर लिया है। इसमें बहु-चर्चित पल्स डायग्नोस्टिक सेण्टर और पल्स अस्पताल के अलावा दो जमीन के प्लॉट्स भी शामिल हैं।
पूजा सिंघल के ऊपर खूंटी जिले की उपायुक्त के दौरान की गई वित्तीय अनियमितता का आरोप है। इस दौरान मनरेगा के लिए आवंटित राशि में से 18 करोड़ की अवैध निकाशी हुई है।
प्रवर्तन निदेशालय ने बड़ी कार्रवाई करते हुए कई जगह छापे मारे थे, इसमें सिंघल के करीबी चार्टेड अकाउंटेंट सुमन कुमार के घर से नकद लगभग 18 करोड़ रुपए बरामद किया गया था। गिरफ़्तारी के समय पूजा सिंघल झारखण्ड की खनन सचिव के पद पर कार्यरत थीं।
बता दें कि अवैध खनन के मामले में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी दोषी पाया गया है।
ED की रिमांड में सौम्या चौरसिया
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपसचिव सौम्या चौरसिया को अवैध कोयला खनन में धन उगाही के मामले में रायपुर की विशेष अदालत ने चार दिनों की ईडी रिमांड में भेजा है। इससे पहले जाँच एजेंसी द्वारा कई बार पूछताछ के लिए बुलाया भी गया था। आयकर विभाग की शिकायत पर ईडी ने अक्टूबर महीने में कई जगहों पर छापेमारी कर चौरसिया से जुड़ी कुछ सम्पत्तियों को भी जब्त किया था, जबकि, मुख्यमंत्री भूपेन्द्र बघेल ने उस वक्त इसका विरोध भी किया।
प्रशासनिक सेवा में सुधार की जरूरत
देश में कार्यपालिका को चलाने में ब्यूरोक्रेट्स ईंधन का काम करते हैं। सरकार द्वारा लोगों को बुनियादी सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने में जो कठिनाई होती है, उसमें प्रशासनिक अधिकारियों की क्षमता में कमी और प्रतिबद्धता नहीं दिखाना एक प्रमुख कारण है।
उस पर भी इस तरह के घोटालों से लोगों के बीच व्याप्त अविश्वास को भरने में और भी कठिनाई होती है। यह देखा गया है कि सिविल सेवा, सामान्य रूप से अपनी संख्या और क्षमताओं को उन्नत करने के दबाव का सामना नहीं करती है, जिससे बदलते समय और परिस्थिति के हिसाब से उनमें वह लचीलापन नहीं देखा जाता है। ऐसे में सरकार की यह जिम्मेदारी है कि प्रशासनिक सेवा सुधारों को लेकर यथाशीघ्र कदम उठाए।
अग्निपथ की तर्ज पर नीतिपथ की माँग
यूँ तो समय-समय पर प्रशासनिक सेवा सुधार की माँग उठती रहती है लेकिन इसी वर्ष सरकार द्वारा बहु-चर्चित ‘अग्निपथ’ योजना को लाने के बाद माँग उठने लगी कि प्रशासनिक सेवा के लिए भी इसी आधार पर ‘नीतिपथ’ जैसी योजना को लाया जाए। अग्निपथ की तरह ही इसमें भी कुछ आधारभूत बदलावों की माँग की जा रही है।
मसलन,
- प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी 10, 25 एवं 30 वर्ष सेवाकाल का निर्धारण हो।
- वर्तमान में सालाना बहाली लगभग एक हज़ार अधिकारियों के स्थान पर, इसे चार गुना किया जाए और चार वर्ष के शॉर्ट-सर्विस में कार्य क्षमता के आधार पर मात्र 25% अधिकारियों को ही नियमित करने का प्रावधान हो।
इस तरह के बदलाव यदि प्रशासनिक सेवा में लाया जाता है तो फिर प्रशासनिक अधिकारियों के मन-मस्तिष्क में बनी अवधारणा को दूर कर सेवा में आने के बाद भी प्रतियोगी माहौल में सार्वजनिक सेवा और परफॉरमेंस की संस्कृति का निर्माण होने की संभावना है।