पिछले एक लेख में मैंने अमेरिका और भारत की राजनीति में अचानक पैदा हुई समानता का जिक्र किया था जिसके मूल में दोनों ही देशों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए नेताओं पर हुई कार्यवाही से उत्पन्न हुआ राजनीतिक संकट है। जहां अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले चल रहे हैं वहीं भारत में राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर रिहा हैं और हाल ही में उनको गुजरात में एक जाति विशेष पर टिप्पणी करने के चलते हुई 2 वर्ष की सजा में जेल जाने से पहले जमानत मिल गयी है। यह गौर करने की बात है कि न्यायिक प्रक्रिया द्वारा दिए गए निर्णय के चलते उत्पन्न हुए संकट को दोनों ही देशों में विपक्ष के नेताओं द्वारा लोकतंत्र की समाप्ति के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री, जिनके दो मंत्री जेल में हैं, वो भी लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में उस कांग्रेस के साथ खड़े हैं, जिसको वो 2011 में पानी पी-पी कर गाली दिया करते थे। इन्ही घटनाओं के मध्य प्रस्तुत यह लेख पिछले लेख की बात को ही आगे बढ़ाते हुए ये देखने का प्रयास करेगा कि; आखिर भारत भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और लोकतंत्र पर खतरे के बीच में कहाँ खड़ा है।
ज्ञात हो कि वर्तमान एनडीए सरकार की पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दूसरे कार्यकाल में उसी संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल से ही हो रहे आर्थिक भ्रष्टाचार के मामलों के विरुद्ध 2011 से एक देशव्यापी आंदोलन अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में शुरू हुआ। इस आंदोलन की परिणति 2014 में कांग्रेस के ऐतिहासिक चुनावी पराभव और संसदीय चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के रूप में हुई। क्षेत्रीय स्तर पर भी आम आदमी पार्टी जो अन्ना हज़ारे के आंदोलन से निकली राजनैतिक दल थी ईमानदारी के नाम पर दिल्ली राज्य की सत्ता पर जा बैठी और अरविन्द केजरीवाल ईमानदार सरकार के मुख्यमंत्री बने। ये घटनाएं भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी नेताओं के विरुद्ध जनता के मन में बैठी कड़वाहट को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है। हाल के दिनों में प्रधानमंत्री ने विभिन्न सम्बोधनों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की हुंकार भरी है तो दूसरी तरफ विपक्ष के नेताओं ने प्रधानमंत्री के वक्तव्य को लोकतंत्र के खात्मे के प्रयास से जोड़ा है। राहुल गाँधी ने खुद प्रधानमंत्री पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया है और शायद पहली बार जमानत के लिए सूरत जाते समय फ्लाइट की सामान्य श्रेणी में यात्रा की है। ये अलग बात है कि फ्लाइट में बैठे गुजराती और अन्य लोग राहुल गाँधी को और राहुल गाँधी फ्लाइट में बैठी सामान्य जनता को पहचानने का प्रयास ही करते दिखे लेकिन ये तय है कि अब पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों ही जनता की अदालत में जाने को व्याकुल हैं और 2024 का चुनाव अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही के मुद्दे पर ही लड़ा जाये तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के नाम पर बनी सरकारों ने क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का अपना वायदा पूरा किया या पूरा करने का प्रयास किया, यह खुला प्रश्न है जिसकी पड़ताल इसलिए जरूरी है ताकि लोकतंत्र में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति और उसको रोकने से जुड़ी कठिनाइयों के बारे में जाना जा सके। इस लेख में मैं केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले प्रवर्तन निदेशालय के बारे में बात करूँगा क्योकि यही विभाग आर्थिक मामलों से जुड़े भ्रष्टाचार पर कार्यवाही करने के लिए उत्तरदायी है।
डोनाल्ड ट्रम्प और राहुल गाँधी: लोकतंत्र की दुनिया के विदूषक या खलनायक
आर्थिक भ्रष्टाचार का दुष्चक्र
भ्रष्टाचार के विरुद्ध हो रही कार्यवाही को जानने से पहले हम भ्रष्टाचार को समझने की कोशिश करते हैं। सरल भाषा में भ्रष्टाचार किसी देश के कानून के विरुद्ध किया गया कोई भी आचरण है, और जरूरी नहीं है कि कानून तोड़ने वाली संस्था या व्यक्ति को इससे कोई सीधा आर्थिक फायदा हो ही रहा हो, बल्कि गैर आर्थिक फायदों के लिए भी लोग कानून तोड़ते हैं और भ्रष्टाचार होता है। इस तरह भ्रष्टाचार एक व्यापक सामाजिक रोग है लेकिन भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति के कारण पिछले कुछ दशकों में आर्थिक भ्रष्टाचार ने अन्य किस्म के भ्रष्टाचार को ढक रखा है या फिर ऐसे कहें कि अन्य किस्म के भ्रष्टाचार के मामले भी किसी न किसी आर्थिक कारणों से ही जुड़े रहे हैं। हालाँकि गैर आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई भी बहुत महत्वपूर्ण है और अपराध नियामक संस्थाएं लगातार ऐसे अपराधों को रोकने के लिए तत्पर हैं लेकिन चूंकि आर्थिक भ्रष्टाचार की बातें अन्ना आंदोलन के समय से ही ज्यादा हावी रही हैं, इसलिए हम इस लेख में आर्थिक भ्रष्टाचार के विमर्श पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे। साथ ही यह भी समझना होगा कि आर्थिक भ्रष्टाचार गरीबी और असमानता उत्पन्न करता है जो गैर आर्थिक किस्म के भ्रष्टाचार जैसे चोरी, हत्या, डकैती, मानव तस्करी आदि को जन्म देता है। इस प्रकार आर्थिक भ्रष्टाचार एक दुष्चक्र बनाता है जिसमें गरीब, गरीब बना रहता है, क्योंकि कर के रूप में प्राप्त होने वाला धन जो उसके ऊपर खर्च होना था, किसी ताकतवर व्यक्ति के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। आर्थिक भ्रष्टाचार के कारण नौकरीपेशा मध्यम वर्ग पर करारोपण की दर अधिक समय तक ऊंची बनी रहती है, क्योंकि उसके कर के पैसे का एक हिस्सा जिसे विकास कार्य में लगाया जा सकता था, व्यवस्था से बाहर निकल जाता है और विकास के एक ऐच्छिक स्तर को प्राप्त करने के लिए उसे ज्यादा समय तक ऊंची दर से कर देना पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक सड़क अगर अच्छी तरह से बनी हो तो नियत समय तक टोल टैक्स भरने के बाद जनता उस सड़क का निःशुल्क उपभोग कर सकती है लेकिन ख़राब क्वालिटी की सड़क या तो उतना ही टोल टैक्स देने के बाद भी वाहन की देखरेख का खर्च बढ़ा कर उपभोक्ता पर आर्थिक बोझ बढ़ाएगी या उस सड़क को फिर से बनाने के बाद नया टोल टैक्स देना पड़ेगा और यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहेगी क्योकि सड़क बनाने वाला भ्रष्ट है। इस प्रकार आर्थिक भ्रष्टाचार का सीधा दुष्प्रभाव गरीब और माध्यम वर्ग पर होता है जिसके परिणामस्वरुप देश का सामाजिक और आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है।
भ्रष्टाचार का स्वरूप और भ्रष्टाचार निवारण
भ्रष्टाचार किसी भी तरह का हो, हमेशा प्रणाली (System) और प्रक्रिया (Process) में उपस्थित कमियों का फायदा उठा कर ही किया जाता है। इसलिए भ्रष्टाचार निवारण की प्रक्रिया मुख्यतः प्रणाली और प्रक्रियाओं में उपस्थित कमियों को दूर करने और जिन भ्रष्ट तत्वों ने प्रणाली या प्रक्रिया की कमी का फायदा उठाया है, उन पर कार्यवाही करने की ही प्रक्रिया है। यहाँ यह समझ लेना चाहिए कि किसी प्रणाली के बदलने पर पहले की प्रणाली में चलती आ रही प्रक्रियाएं उपयुक्त नहीं रह जाती और उनको नयी प्रणाली के अनुरूप करने की आवश्यकता होती है। जैसे, भारत की आर्थिक प्रणाली में 1990 के दशक से ही आर्थिक सुधारों के कारण परिवर्तन आना शुरू हो गए लेकिन इस नयी प्रणाली को चलाने के लिए पुरानी प्रक्रियाओं को तत्काल नयी प्रणाली के अनुसार नहीं बदला गया। प्रक्रिया और प्रणाली के इसी विभेद के कारण कई कमियां उत्पन्न हुयी जिनका फायदा राजनेताओं और सरकारी बाबुओं ने संप्रग सरकार के दौरान उठाया और मनमाना भ्रष्टाचार किया। उदाहरण के लिए, 2004 से 2009 के बीच में संप्रग सरकार ने बिना नीलामी करवाए ही कोयला खदानों का आवंटन कर दिया। नीलामी न करवाने के लिए संप्रग सरकार के बाबुओं और मंत्रियों ने तर्क दिया कि सरकार केवल परंपरा का पालन कर रही थी क्योकि बाजपेयी सरकार तक कोयला खदानों का आवंटन बिना नीलामी के ही होता आया था। इस मामले में कोर्ट ने यह कह कर आवंटन रद्द कर दिया कि बाजपेयी सरकार की तुलना में भारत में कोयले की मांग लगातार बढ़ी है इसलिए प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन नीलामी के आधार पर ही होना चाहिए था और कोयला खदानों का संप्रग सरकार द्वारा किया गया आवंटन कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया। इसको प्रसिद्द कोयला घोटाले के नाम से जाना जाता है और यह प्रणाली में परिवर्तन के कारण भारत में तीव्र आर्थिक वृद्धि का जो दौर मनमोहन सिंह की सरकार के पहले कार्यकाल में आया था, उसके कारण कोयले की मांग में हुई अप्रत्याशित वृद्धि को अनदेखा करके पुरानी प्रक्रिया के अनुपालन के कारण उत्पन्न हुआ घोटाला था। सरकारी बाबुओं की चालाकी, जिसमें नेताओं और उद्योगपतियों की आपसी मिलीभगत थी, ने इस भ्रष्टाचार को संभव बनाया।
अब भ्रष्टाचार निवारण की बात पर चलते हैं।
भ्रष्टाचार निवारण में दो पहलुओं का मिश्रण होता है जो एक दूसरे के पूरक होते हैं। पहला तो ये कि प्रणाली में किसी प्रक्रिया की जिन कमियों के कारण आर्थिक भ्रष्टाचार हो रहा है, उन कमियों को दूर किया जाये या फिर पूरी प्रक्रिया ही किसी नयी प्रक्रिया से बदल दी जाये। उदाहरण के लिए 2014 के बाद सरकारी सुविधाओं की जन आपूर्ति में व्याप्त भ्रष्टाचार को जनधन खाता, आधार और मोबाइल फ़ोन की तिकड़ी का उपयोग करके पूरी प्रक्रिया से बिचौलियों को समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार जनसुविधाओं की आपूर्ति की पूरी प्रक्रिया ही बदल दी गयी। कहीं-कहीं पर प्रक्रिया न बदल कर पूरी प्रणाली ही बदल दी जाती है। उदाहरण के लिए, रक्षा सौदों में व्याप्त भ्रष्टाचार भारत की राजनीति का पौराणिक विषय हो जाने वाला है क्योंकि इस भ्रष्टाचार का सबसे महत्वपूर्ण कारण रक्षा क्षेत्र के उपकरण बनाने वाली कंपनियों में सरकार का एकाधिकार होना था। ये कंपनियां सरकारी नीतियों के कारण अक्षम बनी हुई थी, जिसके कारण बाहर की इकाइयों से रक्षा उपकरण की खरीद करना मजबूरी थी। इसी मजबूरी का फायदा दलाल, नेता और बाबू उठाते थे और घोटाले करते थे। 2019 में दूसरी बार सरकार बनाने के बाद भाजपा सरकार ने रक्षा उत्पादन को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया जिसके चलते अब निजी क्षेत्र की वो विदेशी ईकाइयां जिनसे रक्षा उपकरणों की खरीद हुआ करती थी, अब सीधे अपने संयंत्र किसी देशी इकाई के साथ लगा कर रक्षा सौदों में सीधे भागीदारी कर सकती हैं। इस प्रकार नीति परिवर्तन से रक्षा उपकरणों की पूरी प्रणाली ही बदल गयी जिसके प्रभाव से भारत के रक्षा क्षेत्र में एक बड़े केंद्र के रूप में उभरने की संभावनाएं बढ़ी हैं।
भ्रष्टाचार निवारण का दूसरा और विवादस्पद पहलू ये है कि किसी प्रक्रिया में उपस्थित कमियों का फायदा उठाकर जिन लोगों या संस्थाओं ने भ्रष्टाचार किया है, उनके ऊपर विधिक कार्यवाही की जाये। अब जहाँ तक भ्रष्ट लोगों पर कार्यवाही की बात है तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार निवारण के साथ जुड़ी समस्यायों पर गौर कीजिये। पहली समस्या तो ये है कि विधिक कार्यवाही कि गति बहुत धीमी होती है, जो किसी भी समाज को व्यग्र कर देने के लिए पर्याप्त है। साथ ही साथ भ्रष्टाचार को साबित करने की जिम्मेदारी सीधे जांच करने वाली संस्थाओं पर होती है, जो राजनीतिक दबाव के कारण खुद संदेह के घेरे में होती हैं। एक ऐसी व्यवस्था जो खुद को ईमानदारी का प्रमाणपत्र देकर बैठी हो, उसको चला रहे लोग कैसे खुद को आसानी से भ्रष्ट मान लेंगे? दूसरी बात, लोगों की व्यग्रता का फायदा उठा कर भ्रष्टाचार निवारक कार्यवाही को लोकतंत्र का खात्मा दिखाकर विपक्षी दल चुनाव में संवेदना वोट बटोरते हैं क्योंकि चुनाव हर पांच साल में होने ही होने हैं, चाहे कुछ भी हो जाये। इसलिए किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार जिसको हर पांच साल में चुनाव में जाना है के पास ऐसे लोगों पर कार्यवाही करने का इंसेंटिव नहीं रह जाता। नियमित अंतराल पर होने वाले चुनाव और न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी मुहिम का राजनीतिक जोखिम बढ़ा देते हैं।
आर्थिक भ्रष्टाचार पर कार्यवाही
भ्रष्टाचार निवारण में इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अब हम भ्रष्टाचार के दूसरे पहलू, जो भ्रष्टाचार करने वालों के ऊपर कार्यवाही का है, उससे सम्बंधित तथ्यों के विवरण पर चलते हैं। इस सन्दर्भ में हम प्रवर्तन निदेशालय, जो मनी लॉन्डरिंग, फॉरेन एक्सचेंज और भगोड़े आर्थिक अपराधियों के सम्बन्ध में कार्यवाही करने के लिए उत्तरदायी है, की गतिविधियों का ब्यौरा देखते हैं।
लोकसभा के अतारांकित प्रश्न संख्या 1338 (वर्ष 2022) के जवाब में वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री पंकज चौधरी द्वारा प्रदत्त सूचना के अनुसार 2012-13 से 2021-22 तक प्रवर्तन निदेशालय ने पीएमएलए के तहत लगभग 5422 मामले दज किये। यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि पीएमएलए के तहत कोई मामला दर्ज़ करने के बाद पीएमएलए के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक कारवाई की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप 31.03.2022 तक 1,04,702 करोड़ (लगभग) के आसपास अपराध की आय जब्त की गई, पीएमएलए के तहत 992 मामलो में अभियोजन शिकायत दर्ज़ की गई, जिसके परिणाम में 869.31 करोड़ की जब्ती की गई और 23 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया। हालाँकि दोषी पाए गए अभियुक्तों की संख्या दर्ज़ किये गए मामलों की तुलना में इस सरकार के दौरान भी बहुत कम रही है और प्रवर्तन निदेशालय की कार्यकुशलता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है, लेकिन फिर भी भाजपा सरकार आने के बाद निदेशालय कुछ लोगों को दोषी सिद्ध कर पाने में सफल रहा है। ज्ञातव्य हो कि 2005 से 2014 के मध्य किसी भी अभियुक्त को दोषी नहीं पाया गया था। मैंने कांग्रेस के समय भी प्रवर्तन निदेशालय के आंकड़े निकालने की कोशिश की और इस सन्दर्भ में 2013 के वर्ष में लोकसभा में पूछी गयी अतारांकित प्रश्न संख्या 1445 और अतारांकित प्रश्न संख्या 724 (प्रश्नकर्ता: श्री प्रभाकर पोन्नम) के विरुद्ध जवाब में एक ही वर्ष के अलग-अलग आंकड़े प्रस्तुत किये गए हैं। ये न केवल कांग्रेस की भ्रष्टाचार के प्रति गंभीरता को दिखाता है बल्कि ये लोकसभा को गुमराह करने का भी मामला है और ये पुछा जाना चाहिए कि इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में जो आंकड़े दिए गए हैं, उनमें से कौन सा सही है और कौन सा गलत? खैर कांग्रेस सत्ता से बाहर है इसलिए आगे FEMA से जुड़े मामलों पर गौर करते हैं।
2012-13 से 31.03.2022 तक FEMA के तहत जांच के लिए लगभग 30716 मामले लिए गए। यह उल्लेख प्रासंगिक होगा कि FEMA के तहत जांच लेने के बाद FEMA के अनुसार आवश्यक कारवाई की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप 8109 कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किये गए। इसके अलावा FEMA के अंतगत 6472 एससीएन का न्याय निर्णयन किया गया जिसके परिणामस्वरुप लगभग 8130 करोड़ का जुर्माना लगाया गया। इसके साथ-साथ FEMA के तहत लगभग, 7080 करोड़ की परिसंपत्तियां जब्त की गई।
इसी प्रकार राज्य सभा में पूछे गए अतारांकित प्रश्न संख्या 1517 (वर्ष 2022) के जवाब में वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री पंकज चौधरी द्वारा प्रदत्त सूचना के अनुसार 2017 से 2022 के दौरान 87 वर्तमान और भूतपूर्व जनप्रतिनिधियों (सांसद, विधायक और विधान परिषद् सदस्य) के विरुद्ध मनी लॉन्डरिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया और 59 मामलों में विशेष अदालत से मुक़दमा चलाने की अनुमति ली गयी, जिनमें मामले की प्रगति न्यायलय के सम्मुख विभिन्न चरणों में है। इसी प्रश्न के जवाब में यह भी उल्लेख लिया गया कि PMLA के अंतर्गत 36 मामलों में ट्रायल पूरा हो चुका था और 1082 मामले ट्रायल के विभिन्न स्तरों में थे। राज्य सभा में पूछे गए प्रश्न संख्या 2229 (वर्ष 2023) के जवाब के अनुसार मार्च 2023 तक ट्रायल के अंतर्गत मामलों की संख्या घट कर 1064 रह गयी थी, जो मनी लॉन्डरिंग मामलों के एजेंसी और न्यायलय द्वारा तीव्र निस्तारण को रेखांकित करती है।
मनी लॉन्डरिंग और विदेशी मुद्रा अधिनियम के तहत हुई कार्यवाहियों का वर्षवार आंकड़ा देखने पर यह पता चलता है कि 2016-17 से जांच के अंतर्गत आये मामलों में लगातार वृद्धि हुई है और 2021-22 में अकेले रिकॉर्ड 5313 मामले FEMA के तहत और 1180 मामले मनी लॉन्डरिंग एक्ट के अंतर्गत दर्ज़ किये गए। इसके साथ-साथ सरकार ने 2014 के बाद मनी लॉन्डरिंग से सम्बंधित कानून की कमजोरियों को भी दूर करने का गंभीर प्रयास किया है। इस सन्दर्भ में 2019 में कानून में हुए संशोधन ने अब अभियुक्तों की जमानत कठिन कर दी है और इस संशोधन के बाद मनी लॉन्डरिंग नहीं हुई है, सिद्ध करने की जिम्मेदारी भी अभियुक्त की होगी न कि जांच एजेंसी की। इस संशोधन को चुनौती देने वाली अपील को उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायधीशों की संवैधानिक बेंच ने 2022 में दिए अपने निर्णय में गैर संवैधानिक मानने से इंकार कर दिया इसलिए इस बात की संभावना बहुत जयादा बढ़ गयी है कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा किये गए मामलों में सजा पाने वाले लोगों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हो सकती है। शायद यही वो बात है जो विपक्ष को खाये जा रही है।
अभी बात ख़त्म नहीं हुई है और भ्रष्टाचार पर हो रही कार्यवाही के बारे में इसके बाद मैं एक और लेख प्रस्तुत करूँगा जिसमें मनी लॉन्डरिंग एक्ट आने के बाद से जब्त की गयी सभी परिसम्पत्तियों का प्रत्येक जोन के अनुसार वर्षवार विवरण दूंगा। इन विवरणों से अब यह स्पष्ट हो रहा होगा कि जिसे विपक्ष द्वारा लोकतंत्र की समाप्ति बताया जा रहा है, वह सही मायने में विपक्षी नेताओं के मन में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने का डर है। जेल जाने के बाद राजनीति जेल से चलती रहे, इसलिए पहले से भूमिका बनाई जा रही है और खुद को शहीद के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। साथ ही यह भी बात आगे बढ़ाई जा रही है कि केवल विपक्ष के नेताओं पर ही कार्यवाही हो रही है। आखिरी निर्णय जनता को करना है कि जनता को भ्रष्ट नेताओं के बिना लोकतंत्र चाहिए या भ्रष्ट लोकतंत्र।