वर्ष 2014 में तमिलनाडु में सामने आए ‘नौकरी के बदले नोट’ (Cash For Jobs) घोटाले से जुड़े मामले की लिस्टिंग सुप्रीम कोर्ट में विवाद का कारण बन गई है। लिस्टिंग पर विवाद के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार (22 फरवरी, 2023) को वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे की टिप्पणी पर आपत्ति जताई। सीजेआई ने अदालत की रजिस्ट्री द्वारा एक मामले के सूचीबद्ध करने पर दवे की टिप्पणी पर कहा कि रजिस्ट्री के खिलाफ आरोप लगाने में गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करना आसान है।
सीजेआई ने कहा, “दवे जी, रजिस्ट्री के खिलाफ आरोपों लगाने के मामले में आपका गैर–जिम्मेदार रवैया आसान है। साथ ही आपके पास हर किसी की आलोचना करने की स्वतंत्रता भी है। हालाँकि न्यायाधीश के तौर पर हमारी ज़िम्मेदारियों के कारण हमें कुछ अनुशासन का पालन करना पड़ता है।”
क्या है मामला
दरअसल, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने वर्ष 2014 के तमिलनाडु कैश-फॉर-जॉब्स घोटाले मामले को सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध करने के संबंध में कुछ आपत्तियां उठाईं थी। इस घोटाले में राज्य की सत्तारूढ़ डीएमके सरकार में मंत्री वी सेंथिल बालाजी आरोपों का सामना कर रहे हैं। मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा मामले में आपराधिक शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि जिन लोगों ने नौकरी पाने के लिए कथित रूप से धन दिया और जिन लोगों ने इसे प्राप्त किया वे एक समझौते पर सहमत हुए थे।
हालाँकि इसके बाद अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की 2 न्यायाधीशों वाली पीठ ने 8 सितंबर, 2022 को हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और आपराधिक शिकायत को बहाल करने का निर्देश दिया।
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अब मामले में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने बुधवार को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष तत्काल लिस्टिंग के मामले का उल्लेख किया। प्रशांत भूषण ने बताया कि; न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि शेष समान मामलों में, पुलिस को उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए स्थगन आदेश को वापस लेने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा करने के बजाय, पुलिस ने उच्च न्यायालय के समक्ष नए सिरे से जांच के लिए सहमति व्यक्त की और उच्च न्यायालय ने इसकी अनुमति देते हुए एक आदेश भीपारित कर दिया। इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
इसी मामले को सूचीबद्ध करने पर वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे को आपत्ति है। उनका मानना है कि नौकरी के बदले नकद घोटाला प्रकरण में पिछला आदेश जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की खंडपीठ ने दिया था इसलिए वर्तमान मामले को भी खंडपीठ के जज वी. रामासुब्रमण्यन (सेवानिवृत हो चुके हैं) के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।
दवे इस मामले में प्रतिवादियों में से एक की ओर से पेश हो रहे थे। उनके अनुसार मामले को एक अलग पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था जबकि संबंधित मामले को की सूनवाई न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा की जा रही है। उन्होंने रजिस्ट्री द्वारा एक मामले को दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा, “रजिस्ट्री के सख्त नियम हैं कि एक मामला से आया कोई फैसला उसी अदालत में आना चाहिए। लेकिन इन मामलों की सुनवाई किसी अन्य अदालत द्वारा की जा रही है।”
सीजेआई चंद्रचूड़ द्वारा उस समय कागजात नहीं होने के कारण मामले को शाम को देखने की बात कही गई। इसपर दवे ने अपना प्रलाप जारी रखा कि मामले को दूसरी बेंच को भेजा जा रहा है.. आपको रजिस्ट्री को नियमों का पालन करना चाहिए। यह नहीं हो सकता..।
दवे के रवैए पर सीजेआई ने कहा, “श्री दवे, रजिस्ट्री के खिलाफ आपके आरोपों में गैर-जिम्मेदार होना हमेशा आसान होता है। आपको स्वतंत्रता है कि हर किसी की आलोचना करें। पर न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में हमें कुछ अनुशासन का पालन करना है। और मैं इस अनुशासन का पालन मामले को देखकर कर रहा हूं। देखने के बाद ही इसे पीठ को सौंपेंगे”।
दवे ने सीजेआई को स्पष्ट किया कि वो भी जज के बेटे हैं और न्यायपालिका का अत्याधिक सम्मान करते हैं। इसपर सीजेआई ने कहा कि आपकी आलोचना वस्तुनिष्ठ है, जो अपने आप में व्यक्तिगत हो सकती है। वहीं भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश होते हुए कहा कि रोस्टर के मास्टर के पास बेंच नियुक्त करने का विशेषाधिकार है। “आपका आधिपत्य जो भी तय करे, हमें उसे स्वीकार करना होगा”।
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वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया कि मामला न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यन की पीठ के समक्ष जाना चाहिए था, क्योंकि यह उनके फैसले से उत्पन्न हुआ है। उन्होंने कहा, “किसी तरह मामला न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ के सामने गया। अब आप इस मुद्दे को हल कर सकते हैं”।
इसी मामले में कपिल सिब्बल ने कहा कि; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मामला किस पीठ के पास गया है। उन्होंने कहा कि; यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह के विवाद अदालत के सामने आते हैं। हो सकता है कि कहीं और जाना सबसे अच्छा हो, ताकि किसी को कोई समस्या न हो। CJI ने मामले में आश्वासन दिया कि वह उन बेंचों को देखने के बाद एक बेंच नियुक्त करेंगे, जो पहले इस मामले को देख चुकी हैं।