भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने ऑस्ट्रिया दौरे के दौरान पश्चिमी देशों और मीडिया के दोहरे रवैये पर कड़ा प्रहार किया है। पश्चिमी देशों के मीडिया संस्थान पिछले कुछ महीनों से भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने और रूस की खुले मंचों से आलोचना ना करने को लेकर भारत के रवैये पर प्रश्न उठाते रहे हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने दौरे के दौरान इन मीडिया सस्थानों को भारत का पक्ष स्पष्ट करते हुए पश्चिमी देशों द्वारा इतिहास में भारत के बजाय पाकिस्तान को अधिक तरजीह देने और भारतीय सीमा पर चीन के विस्तारवादी रवैये पर चुप रहने को लेकर कड़ा प्रहार किया है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने कई ऑस्ट्रियाई मीडिया संस्थानों को दिए गए अपने साक्षात्कार में भारत की स्थिति को रेखांकित किया है और यूरोप द्वारा अपने हितों को तरजीह देते हुए भारत समेत अन्य देशों को सिद्धांतों का पाठ पढ़ने पर आपत्ति जताई है।
यूक्रेन-रूस युद्ध पर हमारा पक्ष स्पष्ट, हम हिंसा के विरुद्ध हैं
ऑस्ट्रियन दैनिक संचार पत्र द स्टैंडर्ड (Der Standard) को दिए गए एक साक्षात्कार में विदेश मंत्री ने यूक्रेन-रूस संघर्ष पर भारत का पक्ष जाहिर करते हुए कहा कि युद्ध प्रारम्भ होने के कुछ दिनों में हमारा पूरा ध्यान अपने नागरिकों को युद्धक्षेत्र से बाहर निकालने पर था जबकि उसके बाद से हम लगातार यह कहते आए हैं कि हम हिंसा के विरुद्ध हैं। लेकिन शायद मीडिया वही सुनता है वह सुनना चाहता है। हम लगातार इस मुद्दे को कूटनीति के माध्यम से हल करने की बात करते आए हैं।
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रूस से भारत के मुकाबले 6 गुना ज्यादा ऊर्जा का आयात करता है यूरोप
रूस से भारत के तेल खरीदने पर भारत का रुख स्पष्ट करते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने वैश्विक ऊर्जा बाजार में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण उथलपुथल मची हुई है। ऐसे में जहाँ से हमारी ऊर्जा आवश्यकताएं पूरी होंगी, हम वहां से खरीदेंगें।
मंत्री जयशंकर ने यूरोप के दोहरे रवैये को भी सामने रखते हुए कहा कि युद्ध प्रारम्भ होने के बाद से यूरोप, रूस से 120 बिलियन डॉलर की ऊर्जा खरीद कर चुका है। यह भारत के मुकाबले 6 गुना है। ऐसे में भारत क्यों खरीद करे इसका कोई तर्क नहीं है।
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वहीं, यह सवाल पूछे जाने पर कि यूरोप लगातार रूस से अपनी ऊर्जा खरीद कम कर रहा है जबकि भारत इसमें बढ़ोतरी कर रहा है पर विदेश मंत्री ने कहा कि यूरोप उन सभी तेल बाजारों में अब घुस रहा है जहाँ से हम अपनी खरीद करते थे। इसी कारण हमारे स्रोत घटते जा रहे हैं। ऐसे में हमें अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जहाँ से उपलब्धता होती है हम वहां से खरीद होती है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने इस स्थिति पर यूरोप को कड़ा जवाब देते हुए कहा कि अगर आप मेरा भोजन छीन लेते हैं तो क्या मैं भूखा रहूँ? जयशंकर ने कहा कि यूरोप इस युद्ध के पहले रूस से आराम से तेल और गैस की खरीददारी कर रहा था। इस पर पत्रकार ने उनसे कहा कि सबके अपने-अपने हित होते हैं।
विदेश मंत्री ने इसी बात पर तीखा जवाब देते हुए कहा कि बिलकुल ऐसा ही है, लकिन यह नहीं हो सकता कि आप अपने हित साधें और हम सिद्धांतों पर चलते रहें।
पश्चिम ने भारत के बजाय पाकिस्तान को बेचे हथियार
भारत और रूस के संबंधों पर प्रश्न करने पर विदेश मंत्री ने कहा कि पश्चिमी देशों ने पिछले 60 सालों में पाकिस्तान जैसी सैन्य तानाशाही को हथियार बेचें, हमारा साथ केवल सोवियत संघ ने दिया। हम पिछले 60 सालों से रूस से हथियार खरीद रहे हैं, इसमें कोई नई बात नहीं है।
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ऐसे में अगर आपके किसी देश एक साथ सैन्य सम्बन्ध हैं तो आप अचानक ही किसी से यह नहीं कह सकते कि मैं असहमत हूँ। इसके अतिरिक्त यूरोप अगर यह सोचता है कि हम अपनी स्वयं की सुरक्षा की चिंता नहीं करेंगें क्योंकि यूरोप को इससे समस्या है तो उसका यह सोचना गलत है
पश्चिमी देश अपनी नीतियों में दोहरा रवैया दिखाते आए हैं, भारत के पड़ोसी पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही से से उन्होंने हथियारों के सौदे किए जबकि म्यांमार की सैन्य तानशाही पर उन्होंने प्रतिबंध लगा दिए।
भारत निभा रहा है यूक्रेन-रूस शांति में अहम रोल
यूक्रेन-रूस युद्ध पर पूछे गए प्रश्न पर विदेश मंत्री ने कहा कि भारत युद्ध के माहौल में कमी लाने के लिए लगातार अपनी राजनयिक शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है। हमने जपोरिजिया परमाणु संयंत्र सुरक्षित रहे इसके लिए अभी प्रयास किए, खाद्य डील के लिए भी हमने अपनी शक्ति का उपयोग किया।
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विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन के विषय में प्रश्न पूछे जाने पर कहा कि अगर एक देश अपने समझौतों का उल्लंघन करके सैन्य प्रयास करता है तो जरूर विश्व को इस विषय में चिंता करने की आवश्यकता है।