अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर देह उद्योग में कार्यरत एक महिला के साथ सम्बन्ध रखने के आरोप में औपचारिक रूप से मैनहट्टन की एक अदालत में अभियोग लग गया है। ट्रम्प ने अपने ऊपर लगे अभियोग को राजनीति से प्रेरित और चुनाव में हस्तक्षेप करने वाला बताया है और डेमोक्रैट पार्टी पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी, जिसने ट्रम्प के खिलाफ मामला बनाया था, को डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति जो बाइडन का पिट्ठू बताते हुए खुद को पीड़ित बताया है। ट्रम्प पहले ही अपने समर्थकों से उनके खिलाफ लगाए गए आरोप का विरोध करने की अपील कर चुके हैं और उन्होंने अपने समर्थकों से सड़क पर उतर कर लोकतंत्र बचाने की लड़ाई लड़ने का आवाह्न किया है। ट्रम्प अमेरिका के पहले ऐसे पूर्व राष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ किसी अदालत में अभियोग लगाया गया है।
ट्रम्प पर लगाए गए आरोप इस मामले में विचित्र हैं कि बिल क्लिंटन जो अपने ही कार्यालय की एक कर्मचारी के साथ अवैध सम्बन्ध में लिप्त पाए गए थे, उन पर भी उस मामले में अभियोग नहीं चला था जबकि ट्रम्प पर जिस महिला से सम्बन्ध के मामले में अभियोग लगा है वह मामला ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से पहले का है। सामने से देखने पर ट्रम्प पर लगा अभियोग राजनीति से प्रेरित लगता है लेकिन क्या ऐसा ही है? क्या ट्रम्प को राजनीति का शिकार बनाया गया है? मामले को थोड़ा और गहराई से देखने पर जो समझ में आता है वो यह है – 2016 के चुनाव प्रचार के समय ट्रम्प ने उक्त महिला का मुँह बंद करने के बदले महिला को अपनी कंपनी के खाते से सही तथ्य छुपाकर भुगतान किया। अब क्योंकि ट्रम्प की कंपनी के खाते से उक्त महिला को भुगतान झूठ के आधार पर किया गया, जो अमेरिका के कानून के अनुसार धोखा है, डोनाल्ड ट्रम्प पर अभियोग लगाया जा सकता है। इस मामले के सही पाए जाने पर आरोपी को अधिकतम चार वर्ष की सजा का प्रावधान है।
अमेरिका के ही कानूनविदों के अनुसार ट्रम्प वकीलों की फौज के सहारे इस मामले से बरी हो सकते हैं अगर वो यह स्थापित कर लें कि उनकी धोखाधड़ी करने की मंशा नहीं थी और ऐसा उन्होंने अपने वकीलों की सलाह पर किया जबकि वो खुद चुनाव प्रचार में व्यस्त थे। साथ ही ट्रम्प ऑर्गनिज़शन के खातों में दिखाया गया भुगतान झूठ इसलिए भी नहीं है क्योकि किसी मामले के निस्तारण के लिए किया गया भुगतान एक वैधानिक खर्च है। कुल मिलाकर ट्रम्प के खिलाफ यह मामला बहुत मजबूत नहीं है और अमेरिका में ये आम राय है कि डोनाल्ड ट्रम्प इस मामले का उपयोग खुद को बेचारा और सताया हुआ बता कर अपने राजनैतिक समर्थन को बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। इस मामले के अलावा भी ट्रम्प के ऊपर गंभीर मामले हैं जिनमें जांच चल रही है।
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अमेरिका और भारत की राजनीति में समानताएं
आपको लग रहा होगा कि अमेरिका की राजनीति में चल रहे इस मामले को मैं आपको इतने विस्तार से क्यों बता रहा हूँ। क्या अमेरिकी राजनीति और भारत की राजनीति में चल रहे मामले में आपको अद्भुत समानताएं नहीं दिख रहीं हैं? अभी भी नहीं समझे आप? चलिए अब आपको भारत और अमेरिका के लोकतंत्र में उत्पन्न हुयी विचित्र समानताओं के बारे में बताते हैं। दोनों लोकतंत्रों में इस समय केवल इस बात को लेकर समानता नहीं है कि दोनों ही जगह विपक्ष को लोकतंत्र ख़त्म होता दिख रहा है बल्कि विचित्र बात ये भी है कि लोकतंत्र ख़त्म होने का दावा करने वाले नेताओं के व्यक्तित्व और उनके राजनीति करने के तरीके में भी अद्भुत समानताएं हैं।
भारत में एक विपक्षी नेता को इसी प्रकार से एक आपराधिक इज्जतहत्तक के मामले में सूरत के एक न्यायालय ने 2 वर्ष की सजा सुनाई जिसके बाद उस नेता की संसद सदस्यता सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से उपजे कानून के तहत समाप्त हो गयी। अब उस नेता का भी कहना है कि क्योकि उसकी सदस्यता न्यायालय के एक आदेश के कारण समाप्त हो गयी है इसलिए भारत में लोकतंत्र समाप्त हो गया है। उस नेता का भी ये कहना है कि भारत के प्रधानमंत्री उसको रास्ते से हटाना चाहते हैं। वो नेता भी वकीलों की फौज के सहारे इस मामले में सजा कम करवा कर या सजा स्थगित करवा कर खुद को क्रन्तिकारी साबित करने की फ़िराक़ में है। डोनाल्ड ट्रम्प की ही तरह उस नेता को भी लगता है कि उसकी सजा भी उसकी राजनीती को चमका देगी। ये तो हुई दोनों देशों में मामले की समानता को रेखांकित करने वाली बात। अब बात करते हैं दोनों नेताओं के व्यक्तित्व की।
वास्तव में इस भारतीय नेता और डोनाल्ड ट्रम्प के व्यक्तित्व और राजनीति करने के तौर तरीकों में भी मौलिक समानताएं हैं। जैसे डोनाल्ड ट्रम्प 2016 के पहले कृत्रिम तरीके से पूरी रिपब्लिकन पार्टी के नेता बन गए उसी तरह से उक्त भारतीय नेता भी राजनैतिक संघर्ष नहीं बल्कि अपनी पारिवारिक पृष्ठ्भूमि के कारण अपनी पार्टी का नेता बना हुआ है। जैसे डोनाल्ड ट्रम्प राजनीति में मर्यादा नाम की चिड़िया से वाकिफ़ नहीं हैं वैसे ही इस भारतीय नेता की भी मर्यादा नाम की चीज़ से कोई वाक़फ़ियत नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प की ही तरह यह भारतीय नेता भी कभी भी कुछ भी बोल सकता है, कर सकता है। डोनाल्ड ट्रम्प भी पत्रकारों को सार्वजानिक तौर पर बेइज्जत करते थे। ये नेता भी सार्वजानिक मंच से पत्रकारों की हवा निकालता है। डोनाल्ड ट्रम्प भी राजनैतिक मीम बनाने वालों के प्रिय विषय हैं और यह भारतीय नेता भी राजनैतिक कार्टूनों का प्रिय पात्र है।
दोनों नेताओं में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों झूठ बोलते हैं और पूरे विश्वास के साथ झूठ बोलते हैं। ये सोचने वाली बात है कि आखिर डोनाल्ड ट्रम्प के जेल जाने से अमेरिका का लोकतंत्र कैसे ख़त्म हो सकता है। अमेरिका का शताब्दियों पुराना लोकतान्त्रिक तानाबाना एक नेता का मोहताज़ कैसे हो सकता है। उसी तरह से इस भारतीय नेता को भी लगातार ये झूठ चलाना पड़ रहा है कि उसको न्यायालय से दंड मिलना लोकतंत्र का खत्म होना है जबकि उसके पहले दर्जनों जन प्रतिनिधि अदालत में दोषी पाए जाने के बाद उसी कानून के अनुसार संसद और विधान सभाओं की सदस्यता से मुक्त कर दिए गए। ये नेता यह बताने को तैयार नहीं है कि आखिर उसको बदतमीज़ी करने के लिए दंड मिलने से भारत के लोकतंत्र का क्या लेना देना। डोनाल्ड ट्रम्प भी कई और गंभीर मामलों में जांच के दायरे में हैं। यह भारतीय नेता भी नेशनल हेराल्ड नामक एक अख़बार की संपत्ति के लेन देन से जुड़े एक आर्थिक अपराध के मामले में जमानत पर है।
खैर लोकतान्त्रिक राजनीति में ऐसे नेता प्रकट होते ही रहते हैं और लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाते रहते हैं। राजनीति इसी का नाम है। यह देखने वाली बात होगी कि क्या अमेरिका और भारत दोनों जगह सफ़ेद झूठ बोलने वालों पर जनता विश्वास करती है या नहीं।
भारत में लोकतंत्र और भ्रष्टाचार
यह अद्भुत समानता लोकतान्त्रिक देशों में लोकतंत्र के संकट को भी रेखांकित करती है। वास्तव में किसी भी लोकतंत्र में हो रहे नवाचार को या लोकतान्त्रिक व्यवहार में आ रहे आमूलचूल परिवर्तन को लोकतंत्र के खात्मे के रूप में प्रस्तुत कर पाना इसलिए आसान हो जाता है क्योकि नवाचार को लेकर जनता का कोई पूर्व अनुभव नहीं होता। आज दुनिया के सभी लोकतंत्र विश्व व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन के कारण एक संक्रमण की अवस्था से गुजर रहे हैं। दुनिया के इतिहास को गौर से देखने पर पता चलता है कि ऐसे संक्रमण काल लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाते ही हैं। ये परिवर्तन जरूरी नहीं है कि सुधार ही लाएं इसलिए इन परिवर्तनों पर पैनी निगाह रखनी भी जरूरी है। उदहारण के लिए, ऐसे ही संक्रमण काल का फायदा उठा कर इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगा कर लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं को कुचलने की कोशिश की थी। लेकिन दूसरी तरफ भारत में आर्थिक सुधार भी ऐसे ही संक्रमण काल की देन थे। कुछ भी हो, ऐसे संक्रमण काल न केवल लोकतान्त्रिक प्रणालियों और व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाते हैं बल्कि नयी राजनैतिक धाराओं को भी जन्म देते हैं। भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों ही लोकतान्त्रिक संक्रमण के ही उत्पाद हैं।
राहुल गाँधी ने सिद्ध किया कि वो पप्पू ही हैं
भारतीय राजनीति में पिछले एक दशक से ही राजनैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ नवाचार को समर्थन रहा है। आम आदमी पार्टी का उदय ही राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुआ लेकिन ये अजीब है कि यह पार्टी भी भ्रष्टाचार के मामले पर सुरक्षात्मक रवैया अपनाये हुए है। ये दिखाता है कि जैसा राजनैतिक वातावरण भारत में है उसमें भ्रष्टाचार से लड़ पाना कितने जीवट का काम है। धरना देकर और पोस्टरबाजी करके थोड़ी देर के लिए हीरो बना जा सकता है लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जो इच्छाशक्ति चाहिए वो बात-बात पर प्रेस कांफ्रेंस करने वालों के बस की बात नहीं है। राजनैतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जिस प्रकार के कड़े उपायों की जरूरत है वो लाये जाने पर यह कहना कि केवल विपक्ष के लोगों पर ही कार्यवाही हो रही है न केवल भ्रष्टाचार को स्वीकार करना है बल्कि यह भी स्वीकार करना है कि जिसके भी खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में कार्यवाही हो रही है, बहुत कड़ी कार्यवाही हो रही है। क्या विपक्ष को देश की जनता पर विश्वास नहीं है? आखिर आज जो विपक्ष में हैं कल सत्ता में होंगे और तब वो भी यही कड़े उपाय आज के सत्ता पक्ष वालों पर लागू कर सकते हैं। हो सकता है कि कल को यही एकतरफा कार्यवाही का आरोप आज सत्ता पक्ष में बैठे हुए लोग लगाएं लेकिन कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि इस बदले की भावना से की गयी कार्यवाही भी देश में राजनैतिक भ्रष्टाचार की संस्कृति को समाप्त ही करेगी। वास्तव में विपक्ष के पास भ्रष्टाचार के खिलाफ और कड़ी नीतियां लेकर चुनाव में जाने का मार्ग खुला है और जनता ऐसे नीतिगत उपायों को समर्थन भी देगी।
राजनैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही को विपक्ष द्वारा लोकतंत्र की समाप्ति बताना हास्यास्पद तो है लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि ऐसे संक्रमण काल में ऐसे झूठ पैदा करना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प और राहुल गाँधी अपने-अपने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रही न्यायिक कार्यवाही को लोकतंत्र की समाप्ति से जोड़कर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का काम ही कर रहे हैं। अंत में जनता को ही तय करना है कि वो कैसा लोकतंत्र चाहती है। जब तक जनता चुनाव नहीं कर रही है तब तक देशी और विदेशी डोनाल्ड ट्रम्प के अभिनय का आनंद लीजिये और देखते रहिये किसकी किसकी हवा निकलती है।