“बाना पहिरे सिंह का, चलै भेड़ की चाल |
बोली बोले सियार की, कुत्ता खावै फाल ||”
कबीरदास की इन पंक्तियों का भाव है कि जो जहाँ हैं वही रहिए। वे कहते हैं कि जो शेर का भेष रखता है, भेड़ की चाल चलता है और सियार की बोली बोलता है, एक दिन न एक दिन उसे कुत्ता नोच खाता है। राजनीतिक दलों के लिए तो ये पंक्तियां किसी मंत्र से कम नहीं हैं।
अब कांग्रेस का हाल ही देख लीजिए। उनके मन में कुछ होता है, वे बोलते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं। कल राज्यसभा में बोलते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस पार्टी धर्म के आधार पर आरक्षण की पक्षधर है। इसलिए बार-बार 50 प्रतिशत की सीमा हटाने की बात करती है।
अमित शाह के भाषण के दौरान विपक्ष की तरफ से बार-बार कहा जा रहा है कि हमने कब ऐसा किया? किन राज्यों में ऐसा किया? राज्यों के नाम बताइए?
कांग्रेस भी स्वयं को इसी तरह से पेश करती है मानो वह मज़हब के आधार पर आरक्षण देने की पक्षधर न हो, लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि कांग्रेस ने कई बार मज़हब के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया- मुस्लिमों के लिए किया है।
आंध्र-प्रदेश से शुरूआत करते हैं। 2005 की बात है। आंध्र-प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे वाई.एस. राजशेखर रेड्डी। कांग्रेस की सरकार राज्य में एक कानून लेकर आई। इस कानून के तहत OBC के कोटा में से 5 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिमों को देने का प्रावधान किया गया।
कांग्रेस सरकार का यह कानून संविधान विरोधी था। संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार यह स्पष्ट किया है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
संविधान के आगे कांग्रेस की राज्य सरकार को झुकना पड़ा। आंध्र-प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के कानून को निरस्त कर दिया।
2005 से अब 2011 पर आते हैं। केंद्र में तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA की सरकार थी। मनमोहन सिंह मुख्यमंत्री थे। आरोप है कि सोनिया गाँधी NAC बनाकर परदे के पीछे से सरकार चला रही थी।
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22 दिसंबर, 2011 को कांग्रेस सरकार ने आदेश जारी करते हुए मुस्लिमों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा कर दी। UPA सरकार ने अपने आदेश में कहा कि यह आरक्षण OBC के कोटे में से काटकर अल्पसंख्यकों को दिया जाएगा।
कांग्रेस ने OBC के कोटे में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण निकालकर अल्पसंख्यकों को, जिसे आपको मुसलमान समझना चाहिए उन्हें दे दिया था लेकिन संविधान ने एक बार फिर OBC का आरक्षण बचा लिया।
आंध्र-प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बार फिर सुनवाई की और यूपीए सरकार के अल्पसंख्यकों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी केंद्र की तत्कालीन UPA सरकार को जमकर फटकार पड़ी।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ये संविधान के अनुसार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए सरकार की अर्जी खारिज करते हुए आंध्र-प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
इस तरह कांग्रेस पार्टी दूसरी बार भी मुस्लिमों को आरक्षण देने की अपनी मंशा में सफल नहीं हो पाई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, कांग्रेस मुस्लिमों को किसी न किसी तरह से आरक्षण देने के प्रयासों में लगी रही।
ध्यान से समझते जाइए, आंध्र-प्रदेश और केंद्र के स्तर पर तो कांग्रेस सफल नहीं हो पाई लेकिन कर्नाटक में हो गई। हुआ ये कि 1990 में चेनप्पा रेड्डी कमिश्न ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक के अंदर अल्पसंख्यकों को ओबीसी के कोटे के अंतर्गत आरक्षण देने की सिफारिश की।
जुलाई, 1994 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने रेड्डी कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का आदेश दे दिया।
उसके बाद से कर्नाटक के ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण में से मुस्लिमों को भी आरक्षण दिया जाने लगा। वर्तमान में भी कर्नाटक में 4 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिमों को दिया जाता है।
अब एक सवाल आपके मन में उठ सकता है कि आंध्र-प्रदेश और केंद्र के स्तर पर जब कांग्रेस सफल नहीं हुई फिर कर्नाटक में कैसे हो गई?
समझिए, संविधान का आर्टिकल 15 और आर्टिकल 16 राज्य सरकार को यह अधिकार देता है कि वो सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्ग के लिए और SC-ST वर्ग के लिए स्पेशल प्रावधान कर सकता है।
कांग्रेस और मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाली पार्टियां इसी प्रावधान का लाभ उठाते हुए मुस्लिमों को OBC के अंतर्गत आरक्षण देने का प्रयास करती हैं।
याद रखिए कि ये प्रावधान राज्य सरकार को संपूर्ण अधिकार नहीं देते क्योंकि कोर्ट के आदेश के अनुसार इस प्रावधान को लागू करते समय राज्य सरकारों को कुछ आर्हताओं को पूरा करना होता है।
एक आर्हता है कि अगर कोर्ट कहेगा तो सरकार को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि जिस समुदाय को उसने आरक्षण के लिए शामिल किया है वो समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा है।
एक बात और याद रखनी चाहिए कि अकेली कांग्रेस पार्टी ही नहीं है जो मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए जुगाड़बाजी करती रहती है बल्कि TMC भी इसी में शामिल है।
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए 77 मुस्लिम जातियों को OBC की सूची में शामिल कर लिया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने बाद में राज्य सरकार के इस फैसले को निरस्त कर दिया।
इस तरह से एक बात स्पष्ट कि कांग्रेस पार्टी और इंडी गठबंधन के दल मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए बार-बार किसी न किसी तरह से मुस्लिमों को आरक्षण देने के जतन में लगे रहते हैं और अब जब गृह मंत्री अमित शाह ने यही बात राज्य सभा में कही तब वे कह रहे हैं कि अरे हमने ऐसा कब किया?
यह दिखाता है कि इन दलों की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है, शायद इसीलिए जनता बार-बार इन्हें सत्ता से बाहर रहने का आदेश सुनाती है।