कई क़िस्म के विवाद एवं हास्य के बीच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आख़िरकार जम्मू कश्मीर पहुँच गई है। जम्मू में मंगलवार (24 जनवरी, 2024) को कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत नगरोटा से हुई। भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य जिस तरह से बताया जा रहा है, वह यह है कि इस यात्रा के ज़रिए लोगों को भारत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जोड़ा जाएगा।
ये यात्रा अब ख़त्म होने के कगार पर है लेकिन अब तक भी कांग्रेस या शायद राहुल गांधी भी इस यात्रा का असली उद्देश्य ख़ुद भी नहीं पता कर पाए हैं। इस यात्रा का मक़सद लोगों को गले लगाना था, ठंड के विरुद्ध अपने यौवन का प्रदर्शन करना था, या फिर ये साबित करना कि आख़िर राहुल गांधी कार्ल मार्क्स से किस तरह अलग हैं। यह राज भी संभवतः इस यात्रा के साथ ही समाप्त हो जाएगा।
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भारत को जोड़ने के लिए यात्रा का दावा करने वाले राहुल गांधी की यात्रा के जम्मू कश्मीर पहुँचते ही कांग्रेस के प्राचीन नेता दिग्विजय सिंह का भी बयान सामने आ गया है। इस बयान के बाद पूरी कांग्रेस ही मानो एक-दूसरे से चिपक गई और पूरी तरह से बिखर गई।
कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने अपने बयान में वही काम किया है जो कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी वोटों की ख़ातिर करते रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने भी अपने एक ख़ास वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिए सेना से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँगे थे। कुछ इसी तर्ज़ पर दिग्विजय सिंह ने भी अब सबूत की माँग की है।
जब राहुल गांधी का तेजस्वी क़ाफ़िला जम्मू कश्मीर से गुजर रहा है, ऐसे में दिग्विजय सिंह ने सेना से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँग लिए। लोग दबी-छिपी ज़ुबान से यह भी कह रहे हैं कि दिग्विजय सिंह के रूप में भाजपा ने 2024 के आम चुनावों की तैयारी भी कर ली है। हालाँकि, मणि शंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह, सैम पित्रोदा समय-समय पर भाजपा को ‘फ़ायदा’ पहुँचाते हुए देखे भी गए हैं।
दिग्विजय सिंह के बयान के बाद कांग्रेस ने उनके बयान को निजी बताते हुए किनारा कर लिया। ‘टंच माल’ जे लिए प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता के बयान पर जब मीडिया ने उनसे बात करना चाही तो जयराम रमेश ने दिग्विजय सिंह को धक्का देकर पीछे कर दिया और खुद माइक पर बोलने लगे। कांग्रेस महासचिव ने कहा कि ‘हमने सभी सवालों के जवाब दे दिए हैं। आप जाकर प्रधानमंत्री से सवाल पूछें’।
यानी दिग्विजय सिंह क्या कहते हैं क्या नहीं, सेना से ले कर पाकिस्तान पर उनकी क्या राय है इसकी ज़िम्मेदारी भी प्रधानमंत्री की ही तय की गई है। ऐसा ना हो कि किसी दिन दिग्विजय सिंह जैसे सत्यान्वेषियों से उनके सवाल उलट दिये जाएँ और यह साबित करने के प्रमाण माँग लिए जाएँ कि भारत में हुए किसी भी आतंकवादी घटना में उनकी संलिप्तता नहीं है, इस बात का वे सबूत दें।
हालाँकि, इस देश में महज़ ‘कागज’ माँग लेने पर किस तरह की प्रतिक्रिया देखी जा सकती हैं, इसका गवाह भारत का इतिहास ही है। शाहीनबाग को गुजरे अभी बहुत वर्ष तो नहीं बीते हैं।
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मणि शंकर अय्यर तो पाकिस्तान से भारत के लोकतंत्र को भंग करने की माँग तक करने चले गए थे। राष्ट्रभक्ति को गाली बिना देने वाली कांग्रेस आज एक राष्ट्रभक्त बनने को मरी जाती है। हिंदुत्व शब्द को गाली बना देने वाली कांग्रेस आज हिंदू से अधिक हिंदू होने का दावा भी कर रही है। यह सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही संभव हो रहा है।
यदि कांग्रेस के समर्थक उनका हित चाहते हैं तो उन्हें कांग्रेस को मतदान करने से पहले अभी कुछ पंचवर्षीय और सड़क पर यात्रा के नाम पर घुमाना चाहिये। अशोक गहलोत ने भी सालभर पहले एक बयान में कह दिया था कि ‘इनकी अभी रगड़ाई नहीं हुई है’।
एक गौर करने वाली बात यह भी है कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ने के नाम पर जो यह यात्रा शुरू की है, इसकी एक ख़ास बात यह है कि यह जिस जिस चरण और स्थान से गुजरी है, वहाँ-वहाँ स्थानीय मुद्दों पर यह लोगों को जोड़ने के बजाय बाँटती हुई ही नज़र आई।
वनवासी इलाक़ों की बात हो या फिर दक्षिण में ईसाई सभाओं की। भारत जोड़ने जैसी बातें तो इन गोष्ठियों में कहीं भी नहीं देखी गई। यह कुछ-कुछ ‘इंडिया बनाम आइडिया ऑफ़ इंडिया’ जैसे ‘वोकशास्त्र’ जैसा ही है, यानी आप भारत जोड़ने की बात तो करें लेकिन भारत को जगह-जगह पर कुरेदते हुए।
अब मामला जम्मू कश्मीर पहुँच चुका है। सुनने में आया है कि घाटी में ही इस यात्रा की आख़िरी झांकी भी निकलनी है। मामला संवेदनशील है और ऐसे में दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के बयान बिना किसी रणनीति के सामने आए हों यह भी संभव नहीं है।
इतना अवश्य है कि कांग्रेस को संभवतः अब जा कर ‘लोकतंत्र’ जैसी किसी चीज से पाला पड़ा हो। जिसे अब तो वह साल 2014 के बाद से ही ‘संघी, गोदी, भक्त’ जैसी गालियाँ देते आए थे, आज कांग्रेस के लिए यही लोग सत्ता की राह में सबसे बड़ा अड़ंगा बन चुके हैं।