आज (9 सितंबर, 2022) परम वीर चक्र कैप्टन विक्रम बत्रा की जयंती है और सारे देशभक्त भारतीयों के साथ हमने भी उन्हें याद किया। ट्विटर पर ‘शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा’ लिखते हुए आज कई लोगों ने ट्वीट किया। जो हिंदी नहीं समझते उन्होंने अंग्रेजी में ‘मार्टियर’ (Martyr) लिख दिया। आज हम बताएंगे कि क्यों शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
क्यों शहीद नहीं कहना/लिखना चाहिए?
आज 130 करोड़ देशवासियों ने कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान कई लोग ऐसे भी थे जिन्होंने सोशल मीडिया पर कैप्टन विक्रम बत्रा को शहीद या मार्टियर बताते हुए ट्वीट किया।
2017 में एक आरटीआई के जवाब में केंद्रीय रक्षा और गृह मंत्रालय ने यह जानकारी दी थी कि आर्मी और पुलिस में ‘शहीद या मार्टियर’ शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
इस साल 28 मार्च को, संसद सत्र के दौरान, रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने ‘शहीद’ शब्द पर राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के डॉ शांतनु सेन द्वारा पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर दिया।
उन्होंने अपने जवाब में सदन को बताया कि भारतीय सुरक्षा बल ‘मार्टियर’ शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं।
भारतीय रक्षा बल भी बार-बार इस बात पर जोर देते आए हैं कि लाइन ऑफ़ ड्यूटी में जान देने वाले जवानों के लिए ‘शहीद और मार्टियर’ शब्दों का इस्तेमाल ना हो।
क्यों है शहीद या मार्टियर पर आपत्ति
भारतीय समाज में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को शहीद या मार्टियर कहने का प्रचलन काफी समय से है।
शहीद शब्द की परिभाषा जब हमने खोजी तो पता चला कि इसका मतलब इस्लामी शहीद होता है, वहीं मार्टियर शब्द ईसाई धर्म से जुड़ा हुआ है। ‘मार्टियर’ शब्द की जड़ें ग्रीक शब्द ‘मार्टूर’ में हैं। विभिन्न शब्दकोश ‘मार्टियर’ को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करते हैं जो धर्म न त्यागने पर स्वेच्छा से मृत्यु दंड स्वीकार करता है।
भारतीय सुरक्षा बल किसी भी धर्म को विशेष नहीं मानते और न ही धर्म के नाम पर अपने प्राण न्योछावर करते हैं इसीलिए उनके लिए शहीद या मार्टियर जैसे शब्दों का प्रयोग अनुचित है।
शहीद नहीं तो फिर क्या?
फरवरी 2022 में, सेना ने अपने सभी कमांड को पत्र जारी करते हुए ‘शहीद’ शब्द के इस्तेमाल रोकने के लिए कहा।
इसके बजाय, ‘अपनी जान दे दी’, ‘कार्रवाई में मारे गए’, ‘देश के लिए सर्वोच्च बलिदान’, ‘भारतीय सेना के जाबांज सैनिक’, ‘लड़ाई में हताहत’ और ‘वीरगति’ जैसे वाक्यांशों का उपयोग करने के लिए कहा गया है।
RIP की जगह ओम शांति
किसी के मरने पर अक्सर लोग ‘RIP’ लिखते हैं। यूरोपियन या फिर कहें ईसाई समाज में यही कहने का प्रचलन है। 200 साल भारत भी एक यूरोपी शक्ति का गुलाम था। 1947 में हम आजाद तो हुए लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता से हम ग्रसित हो गए थे।
ईसाई धर्म में, यह माना जाता है कि “जजमेंट डे” पर यीशु जीवित आएंगे और उन सभी महान लोगों को जीवन देंगे जो पहले से ही मर चुके हैं और सभी बुरे लोग मृत रहेंगे इसलिए ईसाई अपने प्रियजनों को इस उम्मीद के साथ दफनाते हैं कि यीशु उन्हें न्याय के दिन जीवित कर देंगे। तब तक वे उन्हें ‘RIP’ कहते हैं। ऐसा ही इस्लाम के साथ भी है। कयामत के दिन तक सभी अपनी कब्रों में रहेंगे और फिर कयामत के दिन सबका हिसाब होगा।
हिंदू धर्म में, किसी भी आत्मा के लिए अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है, जिसका अर्थ है ईश्वर से जुड़ना और पुनर्जन्म नहीं लेना। लेकिन मोक्ष प्राप्त करने के लिए आपके पास पुण्य या पाप का कोई संतुलन नहीं होना चाहिए। यदि आप पुण्य या पाप के साथ शरीर छोड़ते हैं तो आप अपने पापम या पुण्य के शेष को खर्च करने के लिए फिर से जन्म लेंगे।
आप जीवन और मृत्यु चक्र से अलग हो और भगवन के साथ हो इसीलिए हिन्दू अपने मृत को “ओम शांति” कह कर विदा करते हैं।
बीते कुछ समय से भारतीय समाज में एक नई चेतना जागी है। RIP के स्थान पर लोग अब ओम शांति कह रहे हैं। सरकार के बड़े मंत्रियों से लेकर आम नागरिक अब पाश्चात्य संस्कृति के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को भी बढ़ावा दे रहें हैं।