सोशल मीडिया पर एक खबर वायरल की जा रही है कि कर्नाटक के पंचायत चुनावों में भाजपा के समर्थन से प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन PFI की राजनीतिक शाखा SDPI का एक उम्मीदवार जीता। इस खबर को कई मुख्यधारा के मीडिया चैनल ने भी दिखाया है। हालाँकि, भाजपा ने आधिकारिक रूप से इस खबर का खंडन किया है और इस मामले की पूरी सच्चाई सामने आ गई है।
मीडिया चैनल्स का दावा है कि मंगलुरु के तालापदी ग्राम पंचायत में भाजपा के समर्थन से SDPI से जुड़े टी इस्माइल नाम के उम्मीदवार ने प्रधान का चुनाव जीता। इसी के साथ यह बताया गया कि भाजपा की पुष्पवती शेट्टी ने उप प्रधान का चुनाव जीता। इस पूरी खबर में दावा किया गया कि भाजपा से जुड़े हुए कुछ लोगों ने इस्माइल का समर्थन किया।
इस पूरी खबर की सच्चाई यह है कि इस चुनाव में भाजपा समर्थित सत्यवती और SDPI की तरफ से टी इस्माइल आमने-सामने थे। प्रधान पद जीतेने के लिए 24 सदस्यों में से 13 सदस्यों का समर्थन हासिल किया जाना था। भाजपा समर्थित उम्मीदवार के पास 24 में से 13 सदस्य, SDPI के पास 10 सदस्य और कॉन्ग्रेस के पास एक सदस्य था। यह सदस्य भी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं बल्कि समर्थित ही थे।
मतदान से पूर्व SDPI और कॉन्ग्रेस समर्थक एक-एक सदस्य अनुपस्थित हो गए जिससे आवश्यक वोटों की 12 हो गई। इसके पश्चात हुए मतदान में इस्माइल और सत्यवती में मुकाबला बराबरी पर छूटा क्योंकि दोनों को बराबर वोट हासिल हुए। ऐसी स्थिति में चुनाव अधिकारी के द्वारा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए और स्थापित प्रक्रिया का उपयोग करते हुए टी इस्माइल को विजेता घोषित कर दिया गया।
यहाँ पर प्रश्न ये उठता है कि ये आखिर संगठन कैसे है? यहाँ पर तो दो भाजपा समर्थित कार्यकर्ता एक दूसरे के ही खिलाफ हो गए और उन्होंने SDPI के इस्माइल के लिए क्रॉस वोटिंग कर डाली, वो भी एक मामूली से पंचायत चुनाव में।
स्थानीय समाचार पोर्टल Varthabharati के अनुसार, भाजपा समर्थित उम्मीदवार सत्यवती को इस के साथ ही उप प्रधान घोषित किया गया। बाद में आई जानकारी में पता चला कि सत्यवती के समर्थक दो सदस्यों, जिनके नाम फयाज और मोहम्मद हैं, ने इस्माइल के लिए वोट किया था जिसके कारण दोनों के बीच मुकाबला बराबरी पर छूटा। ऐसे में भाजपा के SDPI समर्थन का कोई प्रश्न नहीं उठता। इस पूरी खबर का पार्टी ने भी खंडन किया है।
भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ट्विटर पर इस खबर के विषय में लिखा, “यह एक फेक न्यूज है। पहली बात तो कर्नाटक में पंचायत चुनाव पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़े ही नहीं जाते तो भला इसमें समर्थन फिर कैसे हो सकता है? उसके अलावा SDPI का समर्थन करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।”
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