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Home » धनतेरस को ही माँ लक्ष्मी ने किया था श्री विष्णु का वरण, इस बार बन रहे ये शुभयोग
प्रमुख खबर

धनतेरस को ही माँ लक्ष्मी ने किया था श्री विष्णु का वरण, इस बार बन रहे ये शुभयोग

Mudit AgrawalBy Mudit AgrawalOctober 20, 2022No Comments9 Mins Read
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धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
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हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की प्रदोष कालीन त्रयोदशी को धनतेरस मनाई जाती है। 22 अक्टूबर को 16:02 तक द्वादशी तिथि है, इसके बाद त्रयोदशी तिथि है जो प्रदोष काल में रहेगी, इसलिए इस साल इसी दिन धनतेरस मनाई जाएगी।

समुद्रमंथन से प्रकट हुईं लक्ष्मी ने विष्णु जी को पहनाई थी माला

कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्रमंथन के दौरान देवी लक्ष्मी और धन्वंतरि का प्रादुर्भाव एक साथ हुआ था। तब से यह तिथि भारतवर्ष में लक्ष्मी पूजा और चिकित्सक दिवस के रूप में मनाई जाती है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध के आठवें अध्याय में भगवती लक्ष्मी के प्रादुर्भाव की कथा आई है-

धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
समुद्र मंथन से लक्ष्मी अवतरण, चित्र: Saitharunvs

समुद्रमंथन के समय जब शिवजी ने हलाहल विष का पान किया था, तो उसके बाद समुद्र से एक के बाद एक अनेक रत्न निकले, जिनमें कामधेनु, उच्चैश्रवा, ऐरावत, कौस्तुभ, कल्पवृक्ष, और अप्सराएं शामिल थीं।

ततश्चाविर्भूत साक्षात्श्री: रमा भगवत्परा।
रंजयन्ती दिश:सर्वा: विद्युत् सौदामिनी यथा।

इसके बाद भगवान् की नित्यशक्ति साक्षात् श्री भगवती लक्ष्मी देवी के समुद्र से बाहर प्रकट होते ही उनकी बिजली जैसी चमकीली छटा से सारी दिशाएँ जगमग हो उठीं, और उनकी सुन्दरता, उदारता, यौवन, रूप और महिमा की ओर सबका मन खिंच गया।

धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
माँ लक्ष्मी, चित्र: राजा रवि वर्मा

देवता, असुर, मनुष्य सभी में उन्हें पाने और उनके स्वागत की होड़ मच गई, पर लक्ष्मी आसानी से किसी के सिर पर हाथ नहीं रखती। इन्द्र दौड़े दौड़े अपने हाथों से उनके बैठने के लिए बड़ा अद्भुत आसन ले आए, उनके अभिषेक के लिए सारी नदियाँ सोने के घड़ों में पवित्र जल भरकर लाने लगीं, और पृथ्वी ने तुरंत ओषधियाँ दीं, गौओं ने पंचगव्य और वसन्त ऋतु ने चैत्र वैशाख जैसा मौसम कर दिया।

तब सारे ऋषि आए और उन्होंने इन सबसे विधिपूर्वक लक्ष्मीजी का अभिषेक किया। यह देख गन्धर्वों ने मधुर संगीत की तान छेड़ दी, नर्तकियाँ नाच उठीं। इतने में बादल मृदंग, डमरू, ढोल, नगारे, नरसिंगे, शंख, बाँसुरी और वीणा बजाने लगे।

धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
माँ लक्ष्मी का अभिषेक करते दिग्गज

तब भगवती लक्ष्मी देवी, जिनके हाथ में सुंदर कमल था, वे सिंहासन पर विराजमान हो गयीं। जैसे ही द्विजों ने श्रीसूक्त के सस्वर पाठों से लक्ष्मीजी की स्तुति शुरू की, आठ दिशाओं के अष्ट दिग्गजों ने सुगन्धित जल से भरे कलशों से लक्ष्मी जी को स्नान कराना आरम्भ कर दिया।

समुद्र उनके पहनने के लिए पीले रेशमी वस्त्र ले आया। वरुण ने उन्हें ऐसी वैजयन्ती माला भेंट की, जिसकी सुगन्ध से भौंरे मतवाले होने लगे। प्रजापति विश्वकर्मा ने लक्ष्मी जी को तरह तरह के गहने चढ़ाए, सरस्वती ने मोतियों का हार दिया, प्रजापिता ब्रह्मा ने कमल दिया और नागों ने दो कुण्डल समर्पित किए।

लक्ष्मी जी ने रचाया स्वयंवर और ढूँढने लगीं वर

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जब स्वस्त्ययन पूरा हुआ तो लज्जा के साथ मंद मंद मुस्कुराने वाली देवी लक्ष्मी अपने हाथों में कमल की माला लेकर उसे सर्वगुणसम्पन्न पुरुष को पहनाने के लिए चलीं। उस समय चन्दन और केसर का लेप की हुईं और पतली कमर वाली लक्ष्मीजी के चेहरे की शोभा का वर्णन ही नहीं किया जा सकता।

उनके सुन्दर गालों पर लटके कुण्डल सबका ध्यान खींच रहे थे। सोने की लता जैसी लक्ष्मी जी के चलने पर उनकी पायजेब से बड़ी मधुर झंकार निकल रही थी। वे चाहती थीं कि उन्हें कोई निर्दोष, निश्चल और सर्वगुणसंपन्न पुरुष मिले तो वह उसका वरण कर उसे अपना ध्रुव के समान अटल पति बनाएँ। लेकिन सभी गन्धर्वों, यक्षों, असुरों, सिद्धों, चारणों, देवताओं आदि में उनकी चाहत का पुरुष उन्हें नहीं मिला।

कुशल व्यापारी की तरह लक्ष्मी करती हैं सभी का समाकलन

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वे सोच रही थीं कोई तपस्वी है, पर क्रोध को न जीत सका है। किसी में ज्ञान तो है, पर वह अनासक्त नहीं हैं। कोई बड़ा महान है, पर काम को नहीं जीत पाया। किसी के पास बहुत ऐश्वर्य है, पर फिर भी दूसरों के अधीन है। किसी में धर्माचरण तो है, पर जीवों के प्रति प्रेम नहीं है। किसी में त्याग है, पर केवल त्याग तो मुक्ति का कारण नहीं है।

इनमें से बहुत से वीर भी हैं, पर वह भी काल के अधीन हैं। कोई भी सनकादि के समान विषयों से रहित नहीं हैं। कुछ ऋषियों की आयु बहुत लंबी है, पर उनका व्यवहार मेरे लायक नहीं है। और जिनमें व्यवहार अनुकूल है, तो उनकी आयु का कुछ ठिकाना नहीं। कुछ में दोनों ही बातें हैं, पर उनकी वेशभूषा अमंगल है। अब केवल एक भगवान् विष्णु बचे – जो इन सभी मंगलमय गुणों की खान हैं, पर वे मुझे चाहते ही नहीं!

और अंततः देवी लक्ष्मी ने श्री विष्णु को पहना दी माला

धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
माला पहनाकर भगवान् विष्णु का वरण करतीं माँ लक्ष्मी

इस तरह श्री लक्ष्मी को यह सभी सद्गुण केवल भगवान् विष्णु में दिखे, जिन्हें वह हमेशा से चाहती हैं और धनत्रयोदशी के दिन, उन भगवान्‌ विष्णु को उन्होंने अपना वर चुन लिया। सभी गुण श्रीविष्णु को चाहते हैं, पर वे निर्गुण बने रहते हैं।

लक्ष्मी जी ने मुकुंद नारायण के गले में वह ताजे नए कमलों की सुन्दर माला पहना दी और  शर्मीली मुसकान और प्यार से देखती हुई उनके पास ही खड़ी हो गयीं। तब भगवान विष्णु ने सारे जगत की माँ, और सभी सम्पत्तियों की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी को अपने वक्षःस्थलपर पर हमेशा के लिए स्थान दिया।

लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah

भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान होकर माँ लक्ष्मी ने करुणा से देखते हुए त्रिलोक की अपनी प्यारी प्रजा पर कृपा की। शंख, तुरही, मृदंग बजने लगे। गन्धर्व और अप्सराएं नाचने-गाने लगे। ब्रह्मा, शिव, अंगिरा आदि फूल बरसाते हुए भगवान की पुरुषसूक्त से स्तुति करने लगे।

माँ लक्ष्मी की कृपा से सारे देवता, और प्रजा श्री और गुणों से पूर्ण होकर सुखी हो गए, पर उनकी उपेक्षा से राक्षस बलहीन, आलसी, निर्लज्ज और लालची हो गए।

इसके तुरंत बाद धन त्रयोदशी को ही हुआ भगवान् धन्वन्तरि का प्राकट्य

धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
समुद्र मंथन से प्रकट हुए भगवान् धन्वन्तरि

इसके बाद जब फिर से समुद्रमन्थन शुरू हुआ, तो उससे से एक अलौकिक पुरुष प्रकट हुआ। लंबी और मोटी भुजाएँ, लाल आँखें, साँवला रंग, गले में माला, आभूषणों से सजा शरीर, उस पर पीताम्बर, कानों में मणियाँ, चौड़ी छाती, तरुणावस्था, सिंह पराक्रम, अनुपम सौन्दर्य, घुंघराले बाल वाला वह पुरुष हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश लेकर प्रकट हुआ।

वह विष्णु भगवान्‌ के अंश अवतार, आयुर्वेद के प्रवर्तक धन्वन्तरि थे। जब राक्षसों की नजर उन पर और उनके हाथ में अमृत से भरे कलश पर पड़ी, तब असुरों ने तुरंत जबरन उस अमृत कलश को छीन लिया, इसके बाद देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और असुरों को मोहित करके देवों को अमृतपान कराया।

भारत का प्राचीनतम डॉक्टर्स डे धन्वन्तरि जयंती है। आयुर्वेद के संस्थापक धन्वन्तरि के अनुसार आयु की रक्षा के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिए। दवा कराने से अच्छा है बीमार ही न पड़ा जाए। 2016 से धन्वन्तरि जयन्ती धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस घोषित किया गया है।

धनतेरस पर दीपकों का है महत्त्व

अखिल भारतीय विद्वात् परिषद्, काशी के डॉ. कामेश्वर उपाध्याय ने बताया कि धनतेरस दीपों द्वारा आराधना का पर्व है, इसी दिन से पंचदिवसीय दीपपर्व शुरू हो जाता है। इस दिन गाय के घी के दीप से भगवती लक्ष्मी की आरती का अपूर्व महत्व है।

धनतेरस लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah
माँ लक्ष्मी को सबसे ज्यादा प्रिय हैं कमल

कमल के आसन पर लक्ष्मी देवी को बैठा कर कमल के द्वारा उनकी पूजा करनी चाहिए। लक्ष्मी कमलासना, कमलालया, कमलप्रिया हैं। उन्हें कमल सबसे ज्यादा प्रिय है। श्रीसूक्त में कहा है,

पद्मानने पद्मनिपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षिः।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्म मयिसंनिधत्स्व।।
पद्मानने पद्मउरु पद्माक्षि पद्मसंभवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहं।।

हे माँ लक्ष्मी! आपका मुख कमल जैसा है, और आप कमल पर निवास करती हैं, कमल आपको प्यारा है और आपके नेत्र भी कमल जैसे हैं। हे विश्व को प्रिय और विश्वरूप हरि के अनुकूल रहने वाली माँ लक्ष्मी, आपके चरण कमल मेरे हृदय पर रखिए। मैं पद्मानना, पद्मउरु, पद्माक्षि और पद्म से प्रकट हुईं माँ लक्ष्मी की पूजा करता हूँ ताकि मुझे सुख प्राप्त हो।

22 अक्टूबर धनतेरस को इस मुहूर्त्त में करें लक्ष्मी पूजा

परिवार की समृद्धि से राष्ट्र समृद्धि के द्वार खुलते हैं। इस साल 22 अक्टूबर, शनिवार को धनतेरस और धन्वन्तरि जयंती पर गाय के घी या तिल के तेल से जगदम्बा लक्ष्मी की आरती कर परिवार में समृद्धि की प्रार्थना करें। श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी आरती और श्रीमद्भागवत पुराण के अष्टम स्कन्ध के अष्टम अध्याय का पाठ कर माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करें। धनतेरस में लक्ष्मी पूजन के लिए प्रदोषकाल यानि सूर्यास्त से 72 मिनट तक का समय सबसे महत्वपूर्ण रहेगा, इस दौरान त्रयोदशी तिथि रहेगी।

मुहूर्त्त – अपने शहर के सूर्यास्त समय से 72 मिनट तक प्रदोष काल में

धनतेरस को माँ लक्ष्मी ने देवों को समृद्ध किया था, उनके यहाँ प्रवेश किया था, इसलिए आज के दिन सोना, चाँदी जैसी शुभ वस्तुएं खरीदनी चाहिए, जो प्रतीक हैं कि हमारे घर में भी आज लक्ष्मी आगमन हुआ। कुबेर के कोषागार में बैठी लक्ष्मी के कारण कुबेर का कोष कभी नहीं घटता। भारत में मुद्राओं पर गौ, वृष या धान की बाली उत्कीर्ण रहती थी, क्योंकि शुभ प्रतीकों से शुभ बढता है।

इस बार धनतेरस का ज्योतिषीय महत्त्व

लक्ष्मी विष्णु समुद्र मंथन धन्वन्तरि अमृत भागवत श्रीमद्भागवत पुराण अष्टम स्कंध दिवाली पूजा Dhanteras Diwali Lakshmi Vishnu Dhanwantari Samudra Manthan Bhagwat Puran 8th canto Vivaah

22 अक्टूबर को ही त्रिपुष्कर योग का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है। दोपहर 12:58 बजे से 16:02 बजे तक द्वादशी तिथि, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शनिवार के योग से त्रिपुष्कर योग बन रहा है। त्रिपुष्कर योग में किए हर शुभ व अशुभ कार्य का तीन गुणा फल प्राप्त होता है। इस समय दान-पुण्य, खरीदना बेचना सब तिगुना फल देता है। नए शुभकार्य का शुभारंभ शुभ होता है।

सोना, चाँदी आदि वस्तुओं की खरीद भी शुभ होती है, इस योग में कर्ज नहीं देना चाहिए। इस योग में दुर्घटना, मृत्यु आदि अशुभ होती है इसलिए इस दौरान अशुभ या अनचाहा कार्य नहीं करना चाहिए।

इस बार धनतेरस के दिन दुर्लभ कृष्णपक्ष के शनि प्रदोष का संयोग भी बन रहा है, स्कन्दपुराण के ब्राह्मखण्ड के ब्रह्मोत्तरखण्ड में स्वयं हनुमान जी ने कहा है कि कृष्णपक्ष में शनिप्रदोष बहुत दुर्लभ है और यह शिवजी को अत्यंत प्रिय है।

एष गोपसुतो दिष्ट्या प्रदोषे मंदवा सरे । अमंत्रेणापि संपूज्य शिवं शिवमवाप्तवान् ।।
मंदवारे प्रदोषोऽयं दुर्लभः सर्वदेहिनाम् । तत्रापि दुर्लभतरः कृष्णपक्षे समागते ।।

लक्ष्मी प्रादुर्भाव दिवस और धन्वन्तरि जयन्ती धनतेरस की शुभकामनाएं।

सन्दर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, अष्टम स्कन्ध

पंचांग सम्बन्धी उपर्युक्त जानकारियाँ श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग, राजस्थान से ली गई हैं जो पूरे देश में एक समान हैं।

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