उत्तराखंड में पिछले एक साल में करीब पांच सौ से अधिक अवैध मजार तोड़कर सरकारी कब्जे को मुक्त (Anti-encroachment drive in Uttarakhand) करने का काम किया गया है, इसके बाद अभी भी बड़ी संख्या में अवैध मजार देवभूमि के चप्पे चप्पे पर मौजूद हैं। इस लेख में हम विस्तार से बता रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड में ‘मजार इकॉनमी’ की कहानी और उससे पैदा होने वाले अपराध की क्रोनॉलॉजी।
हम बात करेंगे देवभूमि उत्तराखंड के एक महत्वपूर्ण और बेहद चर्चित मुद्दे पर – हम बात करेंगे कि देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ और मैदानों में आखिर ये मजारें और चादरें इतनी बड़ी संख्या में कैसे उगती जा रही हैं और शासन प्रशासन इन अवैध ढांचों से कैसे निपट रहा है और ये मजारों का पूरा बिजनेस मॉडल क्या है?
नैनीताल की जामा मस्जिद के कागज कहाँ हैं?
नैनीताल में आलीशान जामा मस्जिद (Nainital Jama Masjid) आप सभी ने देखी होगी, लेकिन देवभूमि में ये इतनी बड़ी मस्जिद कब और कैसे बन गई? किस की अनुमति से बन गई? इसका भूमि का स्वामित्व किसका था? कितनी भूमि थी? इन सभी की जानकारियां एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने जब मांगी तो नैनीताल जिला प्रशासन में इस से संबंधित दस्तावेजों को खंगालने के लिए मार मची हुई है। चर्चा उठी है कि अगर कागज़ ही नहीं मिल रहे हैं तो क्या नैनीताल की इस मस्जिद संबंधी रिकार्ड क्या गायब हो गए हैं?
YouTube: Uttarakhand govt steps up drive to check ‘demographic change’ | Ashish Nautiyal
एक आरटीआई 23.09.2024 को लगाई गई थी जिसमें डीएम नैनीताल से ये जानकारी मांगी गई कि नैनीताल जामा मस्जिद कब वक्फ बोर्ड में दर्ज हुई अथवा बोर्ड द्वारा उसका अधिग्रहण किया गया? ये भी जानकारी मांगी गई है कि जब मस्जिद का पुनर्निर्माण हुआ तब के समय के नक़्शे की कॉपी और अनापत्ति, वर्ष क्या था?
एक माह बीत जाने के बाद भी ये सूचनाएं जिला प्रशासन उन्हें उपलब्ध नहीं करवा पाया है। इसका आशय ये लगाया जा रहा है कि नगर पालिका परिषद की फाइलों से ये जानकारी गायब है, साथ ही राजस्व विभाग के रिकार्ड से भी जानकारियां गायब है। प्रश्न है कि आखिर इस खूबसूरत हिल स्टेशन में कैसे इतनी बड़ी मस्जिद खड़ी कर दी गई इसके गुम्बद भी बनते चले गए? जबकि नैना देवी, गुरुद्वारे और अन्य धार्मिक संस्थाओं को भवन विस्तार की अनुमति आज तक नहीं दी गई।
उत्तराखण्ड में एक साल में 500 से अधिक अवैध मजारें ध्वस्त
उत्तराखंड में पिछले एक साल में करीब पांच सौ से अधिक अवैध मजारें तोड़कर सरकारी कब्जे को मुक्त करने का काम किया गया है, इसके बाद अभी भी बड़ी संख्या में अवैध मजारें देवभूमि के चप्पे चप्पे पर मौजूद हैं। कहीं भूरे शाह लेटे हैं तो कहीं कालू सैय्यद शाह जैसे नामों की एक-एक दर्जन मजारें हैं। ये मामला सिर्फ अवैध मजारों के होने और उसके ध्वस्त किए जाने तक सीमित नहीं है। ये एक सोची समझी रणनीति के तहत देवभूमि में बहुत सालों से चल रहा है।
मज़ारों की फ़्रेंचायजी
अगर मजारों के बनने की इस्लामी नियमावली देखें तो इस्लाम में केवल खुदा के आगे सिर झुकाने के मान्यता है और इस मजहब में जिस किसी को जहां दफनाया जाता है वो जगह कच्ची छोड़ दी जाती है। मान्यता ये कहती है कि मजार किसी फकीर या मजहब के किसी करिश्माई व्यक्ति की दफनाई जगह होती है। इसके उदाहरण अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह या रुड़की में पीरान कलियर दरगाह हैं। इन फकीरों की दरगाह के नाम से देश दुनिया में कोई और मजार या दरगाह न देखी गई और न सुनी गई है।
अब देवभूमि उत्तराखंड में कालू सैय्यद नाम से दर्जनों मजारें बनी हुई हैं, सवाल उठता है कि कालू सैय्यद की ओरिजिनल यानी असली मजार कौन सी है? असली मजार कोई है भी या नहीं, इस पर भी प्रश्न उठते हैं। लेकिन इन कालू सैय्यद नाम से उत्तराखंड के जसपुर, रानीखेत, हल्द्वानी, कालाढूंगी, लोहाघाट जैसी जगहों पर मजारें मौजूद हैं। यहाँ तक कि अल्मोड़ा में भी कालू सैय्यद मजार है और उनके साथ में वहां उनके एक घोड़े की भी मजार है , इस्लाम वाले अंधविश्वासी भाईजान लोग आज तक उस घोड़े को भी अगरबत्ती लगा रहे हैं।
आजकल सुनने में आया है कि कालू सैयद की एक मजार गुजरात में भी है। अब चलिए मान लीजिये कि कालू सैय्यद पीर, हजरत, फकीर रहे होंगे, घोड़े पर भी आए होंगे लेकिन, इस दुनिया को जब उन्होंने अलविदा कहा होगा और एक ही बार कहा होगा तो एक ही जगह हुआ होगा और वहीं उस एक जगह उनकी मजार भी बनी होगी। ऐसा तो कहीं से भी पॉसिबल नहीं है कि एक पीर फकीर को लोगों ने सैकड़ों जगह दफना दिया होगा?
यानि इस सब से हमें क्या सन्देश मिल रहा है? इससे यही पता चलता है कि आदरणीय एवं स्वर्गीय कालू सैय्यद के नाम से जो भी मजारें बनाई जा रही हैं, वो सब उनकी अलग अलग ब्रांचेज हैं और इन्हें इस तरह से अलग अलग शहरों में प्लांट किया जा रहा है कि हिन्दू भी इनके पास आकर इन्हें चढ़ावा दें, इन्हें धूपबत्ती लगाकर वहां मच्छर बैठने से रोकें, उर्स के नाम पर जो मेले लगें उनमें अपने सेक्युलर और सनातनी भाई बहन लोग जाकर जमकर पैसा डोनेट भी करें और इस मजहबी इकॉनमी के मोडल में अपना योगदान देते रहें। इनमें मजहबी जैसे और कव्वालियां तो होती ही हैं, साथ ही साथ अपने सनातनी भाईयों को लगे हाथ खुदा की इबादत भी सिखाई जाती है। ऐसे कालू सैयद मजारों के बिजनेस मोडल के तार बरेलवी मुस्लिमों से जुड़ते हैं, और इसका हेडक्वार्टर जेनेवा या एथेंस में नहीं बल्कि पड़ोसी यूपी के बरेली में है।
सरकारी जमीन पर कब्जे की नियत से ये मजारें बनाई गईं, इनके नीच कुछ भी नहीं निकला। लेकिन इनके ऊपर जो हरी नीली चादर चढ़ाई जाती थी, वो एक बिजनेस मोडल बन गया। इसका शिकार बने भोले भाले उत्तराखण्डी, जिन्हें पीर फकीरों को पूजने, और झाड़ फूंक के नाम पर अन्धविश्वास की ओर भी धकेल दिया गया। इस्लाम में किसी की कब्र पर सजदा करना तो गुनाह है लेकिन उसके आसपास अगरबत्ती, धूप, चादर बेचना मीठी गोलियां बेचना गुनाह नहीं बल्कि बिजनेस है, बिजनेस यानी धंधा और अब्दुल की अम्मी ने तो पहले से ही कहा हुआ है कि कोई भी धंधा बड़ा या छोटा नहीं होता।
यानी सिर्फ एक चादर से कई मुस्लिमों को रोजगार मिल रहा है जबकि ये चादरें हिन्दुओं के घरों तक पहुँच गईं, हिन्दुओं को हर अपराध का शिकार बनाने लगीं जिसमें धर्मान्तरण से लेकर लव जिहाद, नशा, कब्ज़ा और सभी कुछ है। इस सबमें एक सबसे अधिक दुखद बात ये है कि हिन्दू साधु संतों की देवभूमि पर मजारें कैसे बन गयीं, ये बात अखाड़ों के साधु संतों को भी अब जाकर मालूम पड़ी, जब यहाँ इन पर बुलडोजर चलने लगे।
देवभूमि में वन भूमि पर क़ब्जा और धर्मांतरण का बिज़नेस
अब ये तो थी सिर्फ एक कालू सैयद की मजार की बात। उत्तराखंड में वन भूमि से कब्जे हटाने को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त अभियान चलाया और आदेश दिए कि नदी, नालों, वन भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त किया जाए। इसी कड़ी में आजकल आप सोशल मीडिया पर देख रहे होंगे कि धर्मनगरी हरिद्वार में अवैध ढाँचे को एक JCB गिरा रही है। उत्तरकाशी में भी एक अवैध ढाँचे के खिलाफ लोग एकजुट हो गए (Uttarkashi Mosque Dispute)। हरिद्वार में अवैध ढांचा गिरा तो विदेशी ट्विटर एकाउंट्स भी कहने लगे कि अवैध ढांचा बनाने वालों से ऐसे निपटा जाना चाहिए जैसे भारत में देवभूमि उत्तराखंड निपट रही है।
ऐसे एक नहीं बल्कि सैकड़ों और संभवतः लाखों अवैध ढाँचे अभी देवभूमि उत्तराखंड में शेष हैं जो गिराए जाने बाकी हैं। अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर इन अवैध ढांचों से समस्या क्या है या फिर ये अवैध ढाँचे इस उत्तराखंड राज्य में कब कुकुरेटों जैसे उग आए? उत्तराखंड में आजकल तो व्हाट्सप्प में भी लोग ये सन्देश सुबह सुबह भेजने लगे हैं कि सर्दियों में ज्यादा देर तक चादर तानकर मत सोया करो, कहीं कोई आपको मजार न घोषित कर दे।
यानी हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में अवैध ढांचों की और उनके जरिये लगभग हर पहाड़ी और मैदानी इलाकों में कट्टरपंथियों द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण की। और हम सिर्फ अवैध अतिक्रमण को ही नहीं बल्कि इस पूरे इस्लामी कट्टरपंथ के तौर तरीकों पर भी बात करेंगे कि कैसे ये पूरे उत्तराखंड राज्य की डेमोग्राफी यानी जनसांख्यिकी के लिए खतरा बन चुका है।
उत्तराखण्ड में मुस्लिम और ‘मिनी पाकिस्तान’
अब अगर आप उत्तराखंड के इतिहास और ज्योग्राफी को देखें तो आपको इस वीडियो के पीछे छिपे दर्द को समझने में सहूलियत होगी। यहाँ पर पहाड़ी इलाके हैं जो अधिकांश अपनी जनजातीय परम्पराओं से बंधे हुए हैं, यानी लगभग सभी पहाड़ी इलाकों में हिन्दू आबादी है, दूसरा फैक्ट ये है कि इन पहाड़ी इलाकों से लोग नौकरी पेशे के चक्कर में पलायन भी कर रहे हैं। इनके अलावा कुछ पहाड़ी इलाके ऐसे भी हैं जहाँ पर गढ़वाली बोली बोलने वाले मुस्लिम भी हैं। आप उन्हें देखकर ये फर्क नहीं कर पाएंगे कि ये गढ़वाली नहीं हैं। ये मुस्लिम यहाँ तब बस गए थे जब मुगलों के समय यहाँ पर कुछ मुस्लिमों को भगा दिया गया था क्योंकि वो उत्तरखंड के राजाओं और रानियों से युद्ध हार गए थे। दिल्ली या आगरा जो जाते थे उन्हें उनके सीनियर अब्दुल लोग निपटा देते थे। लेकिन ऐसे इलाके बेहद सिमित हुआ करते थे और ज्यादा से ज्यादा इक्का दुक्का किसी इलाके में पांच-दस परिवार बसे हुए थे।
दूसरे हैं उत्तराखंड के मैदानी इलाके, जिनमें धर्मनगरी हरिद्वार और ऋषिकेश और हल्द्वानी, देहरादून भी शामिल हैं। देहरादून , ऋषिकेश और हरिद्वार में आज जितनी मजारें और मस्जिदें हैं, उन्हें अगर आप गिनने बैठेंगे तो गणित की संख्याएं कम पड़ जाएंगी। ऋषिकेश और हरिद्वार में तो अंग्रेजों के समय तक भी ये कानून था कि इन जगहों पर कोई गैर-हिन्दू रात्रि निवास तक नहीं कर सकता। तो फिर प्रश्न ये है कि ये मजारें हर जंगल, सड़क, चौराहे और तो और लोगों की छतों पर कहाँ से पैदा हो गईं?
हल्द्वानी में बनभूलपुरा जैसे इलाके तो आज मिनी पाकिस्तान में तब्दील हो रखे हैं, आप हर महीने सुनते होंगे कि अवैध अतिक्रमण हटाने गए तो पत्थरबाज सड़कों पर उतर आए. इन्हें सहारा देने के लिए कभी अदालतें तो कभी बीबीसी जैसे ग्लोबल मीडिया वाले भी सामने आते रहे हैं। कभी कहा गया कि ये बेचारे सर्दियों में कहाँ जाएंगे तो कभी इस्लामोफोबिया के आरोप लगाए गए।
लेकिन इन अवैध ढांचों को गिराने और सरकारी जमीनों को कब्जे से मुक्त कराने के प्रयास निरंतर जारी हैं। साल २०२२ में जबसे उत्तरखंड में भाजपा सरकार सत्ता में लौटी है, देवभूमि की डेमोग्राफी यहाँ पर बढ़ते मजहबी अपराधों, अतिक्रमण को लेकर निरंतर काम चल रहा है। कई बार तो अवैध अतिक्रमण हटाने में दंगों की स्थिति भी पैदा हुई हैं।
जंगलों और घरों में मज़ारें
जांच शुरू हुई तो उत्तराखंड के जंगलों में अतिक्रमण कर वहां बन रही मजारों और अन्य मजहबी निर्माणों का मामला सामने आया। खुद धामी सरकार ने कहा कि उत्तराखंड में जंगल की भूमि पर कब्जा कर एक हजार से ज्यादा मजारें व अन्य संरचनाएं बनी होने की बात सामने आई है। अभी इन्हें कब्ज़ा मुक्त करने के साथ साथ सर्वे भी जारी है और इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है। पता चला कि उत्तरखंड के तराई और भाबर क्षेत्र के जंगलों में पिछले 15-20 वर्षों में इन संरचनाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। शुरूआती रिपोर्ट में वन क्षेत्रों में लगभग 400 धार्मिक संरचनाओं की बात सामने आई थी। कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में लगभग 40 मजारें अस्तित्व में होने का उल्लेख रिपोर्ट में है।
देवभूमि के जंगलों में मंदिर, गुफाएं, संतों की समाधियां होने का क्रम तो प्राचीनकाल से ही है, लेकिन जंगलों में मजारों का अचानक बढऩा हैरान करता है। यानी लम्बे समय से मजहबी निर्माण के नाम पर जंगल की भूमि कब्जाई जा रही है, ताकि इन्हें कमाई का जरिया बनाया जा सके और मजहबी प्रचार को बढ़ावा दिया जा सके। सरकारें इतनी अधिक सेक्युलर थीं कि जब ये सरकारी जमीनें कब्जाई जा रहीं थीं तब किसीको इसकी कानों कान भनक अगर लगी भी हो तब भी इस पर कोई कार्रवाई करना जरुरी नहीं समझा गया। इसमें उत्तरखंडियत की बात करने वाले नेताओं के लिए सेक्युलर फैब्रिक कर ध्यान रखना भी जरुरी रहा होगा।
जब हमने वन भूमि पर अवैध कब्जों के बारे में मुख्य वन संरक्षक, वन पंचायत एवं वन क्षेत्र में ‘अतिक्रमण हटाओ अभियान’ के नोडल अधिकारी डॉ पराग मधुकर धकाते जी से बात की तो उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार ने लोक स्थानों से अवैध निर्माणों को हटाने के लिए नीति बनाई गई थी, जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों के बाद अब तक 3300 एकड़ से ज़्यादा भूमि को अवैध क़ब्ज़े से मुक्त कर लिया गया है।
ऋषिकेश में अवैध मज़ारें और धर्मांतरण का खेल
इन निर्माणों का देवभूमि की जनसांख्यिकीय बदलाव से सीधा सम्बन्ध भी है , जिसके कई उदाहरण मैं आपको दे चुका हूँ और कुछ पर हम अभी बात करेंगे। कांग्रेस ने इन अवैध मजारों के विषय को राजनीतिक मुद्दा कभी नहीं बनाया।
अब योगनगरी ऋषिकेश पर आते हैं। ऋषिकेश में सबसे हैरान करने वाले मामले सामने आते हैं जहाँ पर हिन्दुओं ने ही अपने घरों में मजारें बनवाई हुई हैं। यानि हिन्दू और पहाड़ी हिन्दुओं से बड़ा सेक्युलर तो कोई और धर्म है ही नहीं, यहाँ पर गढ़वाली लोगों ने पीर बाबा को भी अपना लोकल देवता मान रखा है और जीसस को भी अपना ही देवता मानकर हेलिलुईया कर रहे हैं। यानी सेक्यूलर और एकदम इंक्लूसिव। इसकी वजह ये नहीं है कि उन्होंने इस्लाम को अपना लिया है, इसका अर्थ उन्हें ये यकीन दिलाया गया है कि न ही इस्लाम और न ही ईसाई कोई बाहरी धर्म हैं, उन्हें ये यकीन दिलाया गया है कि ये पहाड़ियों के ही प्राचीन देवता थे, जो समय के गर्भ में कहीं छिपे हुए थे और अब कलिकाल में ऊपर आकर उछाल मार रहे हैं। आप यूट्यूब पर गढ़वाली में पीर की जागर और ईसाईयों के यहोवा की आरती भी सुन सकते हैं।
ये इतना भयानक षड्यंत्र है कि मुस्लिम खादिम लोग सीधे सादे हिंदू गढ़वाली महिलाओं को बरगला कर उनके घरों में घुसपैठ करके उनकी सम्पत्ति पर कब्जे कर रहे हैं। कुछ लोगों को उन्होंने चावल देखने के धंधे भी सिखा कर उगाही का धंधा भी शुरू करवा दिया। सनातन नगरी ऋषिकेश में ये एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है और यहां मुस्लिम लोग इस तरह से स्थानीय लोगों का ब्रेनवाश कर के ही अपनी जगह बना रहे हैं। पिछले साल की बात है जब हिंदू संगठनों ने जिम्मेदारी ली और इन्हें हटाने का अभियान शुरू किया और पता चला कि लगभग हर दूसरे हिन्दू के घर में ऐसी मजारें बनी हुई हैं।
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मानसेरा जी लम्बे समय से देवभूमि उत्तराखंड में अवैध मजारों और उसके बिजनेस मॉड्यूल पर काम कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि ये मज़ारों का बिज़नेस सिर्फ़ क़ब्ज़े तक सीमित नहीं हैं बल्कि हिंदुओं को अंधविश्वास में झोंकने और डिमोग्राफ़ी बदलने का भी खेल है।
यानी ये मजारें सिर्फ एक अवैध कब्जे तक को घेरने तक सीमित नहीं हैं। ये एक लम्बे समय से धीरे धीरे चली आ रही प्रक्रिया का ही नतीजा है जिस कारण देवभूमि में अन्य किस्म के अपराध भी पनप रहे हैं। मजारों से यहाँ पर डेमोग्राफी परिवर्तन क्यों समस्या बनी, आगे हम इस विषय पर बात करेंगे।
उत्तराखण्ड के कई ज़िलों में ‘अवैध रूप से रह रहे मुस्लिमों के सत्यापन’ के अभियान
कुछ दिन पहले उत्तराखंड के ही चमोली के व्यापारियों ने मांग की, कि 31 दिसंबर तक मुसलमानों को चमोली छोड़ देना होगा। अगर मकान मालिक मुसलमानों को घर देंगे तो 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा।
ये वास्तव में लोगों की पहचान के सत्यापन की प्रक्रिया है जिसकी पुष्टि खुद चमोली जिले के जिलाधिकारी कर चुके हैं। ऐसा ही एक जुलूस सालभर के भीतर कई बार उत्तराखंड के ही धारचूला में निकला जिसमें देवभूमि से मुस्लिमों के सत्यापन और अवैध तरीके से बसे मुस्लिमों को निकालने की मांग उठी। सिर्फ धारचूला ही नहीं, पुरोला, बड़कोट, चमोली, पिथौरागढ़, यानी उत्तराखंड के करीब करीब हर जिले में ऐसी मांगें उठी हैं। प्रश्न यही है कि आखिर इतने साल बाद यह सब लोगों को क्यों करना पड़ रह है? यहीं ये क्रिया और प्रतिक्रिया का उदाहरण तो नहीं है? सदियों का आक्रोश और हर अपराध में किसी समुदाय विशेष के मनचले युवक की भूमिका से लोग अब गुस्से में हैं।
सबसे पहले चमोली जिले की ताजा घटना की बात करते हैं – चमोली थराली में एक हिन्दू नाबाालिग लड़की के साथ कुछ मुस्लिम युवकों ने यौन उत्पीड़न किया और उनका अश्लील वीडियो वायरल कर दिया। इस घटना के बाद से स्थानीय लोग भड़के हुए हैं। स्थानीय लोग समुदाय विशेष की तरह कानून तो हाथ में लेते नहीं हैं और न ही पत्थरबाजी करने सड़क पर उतर जाते हैं, इसलिए उन्होंने उप जिलाधिकारी थराली के माध्यम से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन भेजते हुए कहा कि इस घटना के आरोपी दिलबर खान को फांसी की सजा होनी चाहिए। इसी घटना से कुछ दिन पहले ही इसी चमोली जिले के नंदानगर में सैलून पर काम करने वाले मुस्लिम युवक ने भी नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ की और जब तक उसके घरवालों ने FIR की तब तक ये मुस्लिम युवक, अपनी दुकान बंद कर फरार चल रहा है।
एक के बाद एक हुई इन घटनाओं के बाद उत्तराखंड के चमोली में खानसर टाउन में व्यापारियों के एक संगठन ने एक रिज्युलेशन बनाया है जिसमें कहा गया कि इस इलाके में रह रहे अवैध मुस्लिम परिवारों को अल्टीमेटम दिया गया है कि वे लोग 31 दिसंबर तक इस इलाका छोड़ दें।
अब ये तो थीं सिर्फ चमोली जिले के सितम्बर और अक्टूबर महीने की घटनाएं। ऐसे एक नहीं बल्कि अनेकों मुस्लिम उत्तराखंड के अलग अलग गांव, कस्बों, जिलों, दुकानों, बाजारों में मिले हैं जिनके पास भारत की नागरिकता नहीं है। इसके बावजूद ये लोग उत्तराखंड में बसे हुए हैं और जमकर मलाई खा रहे हैं और अपराध कर रहे हैं।
अब आप इन कुछ ख़बरों को देखिये –
१- उत्तरकाशी में मस्जिद बनाने की साजिश, हिंदू संगठनों का विरोध प्रदर्शन
२- हरिद्वार में मजार ध्वस्त, सरकारी जमीन पर कब्जे के लिए बनाई गई, प्रशासन ने चलाया बुल्डोजर
४- मुस्लिम युवक ने किया नाबालिग से दुराचार, वीडियो वायरल होने के बाद अशांत हुआ थराली
५- देहरादून के रेस्टोरेंट और ढाबों पर थूक जिहाद को लेकर पुलिस का सत्यापन अभियान
६- देहरादून: सैलून में छेड़छाड़, मोबिन समेत तीन गिरफ्तार
७- नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाले वसीम, रिहान को 20 साल कठोर कारावास की सजा, 52,000 का जुर्माना भी
८ – चमोली जिले के गौचर कस्बे में हिंदू लड़के से मारपीट, सलमान के खिलाफ FIR दर्ज
१० – शुभम नाम रख कर शोएब खान ने हिंदू महिला को फंसाया, संबंध बनाए, फिर की मारपीट, हुआ गिरफ्तार
११- मसूरी में थूक की चाय बेचने वाले नौशाद और हसन अली गिरफ्तार, नए कानून के तहत हुई कार्रवाई
१३- जनसंख्या असंतुलन: वनों में मुस्लिम गुज्जरों ने सैकड़ों हेक्टेयर जमीन कब्जाई, मुस्लिमों को जंगल में बसाने की साजिश
ऐसी एक नहीं बल्कि कई ख़बरें हैं, और ये मैं आपको पिछले कुछ एक-आध माह की ही बता रहा हूँ। सारी ख़बरें अगर मैं पढ़ने लगा तो 1400 साल लग जाएंगे और तब भी इनके कुकर्मों को पूरी तरह से समेट नहीं पाएंगे। इन घटनाओं का उल्लेख करने का उद्देश्य सिर्फ यही है कि इन सभी अपराधों में आप अपराध की हर कैटेगरी देख सकते हैं। इसमें लव जिहाद भी शामिल है, चोरी-डकैती भी शामिल है, अपराध की अत्याधुनिक कैटेगरी यानी खाने पीने की चीजों में थूकना भी शामिल है, बलात्कार, मारपीट, हत्या, धर्मान्तरण और जमीन पर अतिक्रमण। यानी एकदम 360 डिग्री पर चल रहे हैं भाईजान लोग।
यानि मामला सिर्फ एक अवैध कब्जे और उसपर बुलडोजर चलने तक सीमित नहीं है। ये मामला घुसपैठ के चलते अवैध कब्ज़ा और फिर हर किस्म के संगठित अपराध के बढ़ते मामलों का है। इस सबके चलते देवभूमि की डेमोग्राफी में बहुत बड़ा शिफ्ट आया है। और इसी बदलती डेमोग्राफी के रुझान अब आप राजनीति में भी देख सकते हैं। और ये सब कहीं और नहीं बल्कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में हो रहा है, जहाँ पर धर्मनगरी हैं, जहाँ चार धाम हैं, जहाँ राजा भरत की भूमि है, जहाँ परशुराम ने तपस्या की, जहाँ माँ गंगा का उद्गम है, जहाँ हिमालय है।