मणिपुर के मुद्दे को लेकर संसद के दोनों सदनों को बार-बार स्थगित करना पड़ रहा है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का कहना है कि संसद की कार्यवाहियों में समन्वित और सुनियोजित बाधाएं संसद की गरिमा को कम करती हैं। राज्य की विधानसभाओं और संसद में बिना किसी बाधा के गंभीर मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी और प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं को लेकर सदन में चर्चा शुरू की थी। विदेश मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी विदेश यात्राओं में कौनसे महत्वपूर्ण समझौते किए गए हैं और यह किस प्रकार राष्ट्र हित में है। इन्हीं संविधान निर्माताओं द्वारा चर्चाओं और विमर्श कार्य के लिए संसद भवन और इसकी कार्यप्रणाली की कल्पना भी की गई होगी। हालांकि सदन का महत्व और इसके कार्यप्रणाली का मखौल बनने से संसदीय लोकतंत्र को हानि पहुँची है। यही कारण है कि सदन में बात नहीं सुने जाने पर विदेश मंत्री एस जयशंकर को वीडियो जारी करके अपनी बात कहनी पड़ी। इस घटना से एक प्रश्न यह उठता है कि वीडियो के जरिए अगर संसदीय कार्य किए जाने की नौबत आ गई तो संसद का क्या औचित्य है?
राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर बहस से बचते आए विपक्ष को अगर संसदीय लोकतंत्र में आई कमी और सदन की गरिमा भंग करने के लिए जिम्मेदार समझा जाए को क्या यह अतिश्योक्ति होगी?
अगर किसी को भी संदेह है कि मणिपुर की स्थिति के कारण विपक्ष सदन को संचालित नहीं होने दे रहा है तो उसे याद करना चाहिए इससे पहले वाले सत्र में क्यों सदन को बार-बार स्थगित करना पड़ा था? किसान बिल को लेकर हुई चर्चाओं से विपक्ष क्यों भागता रहा? राफेल पर क्यों हंगामा करने के बाद माफी मांगनी पड़ी और क्यों अडानी के मुद्दे को सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए इस्तेमाल किया गया?
मणिपुर का मामला विपक्ष की विफलता की ढ़ाल नहीं बन सकता है और इसे बनाया भी नहीं जाना चाहिए। यह संसदीय लोकतंत्र की विफलता है कि देश को ऐसे कमजोर विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है जिसने सदन का इस्तेमाल छिछली राजनीति और विरोध प्रदर्शन के लिए ही किया है।
यह भी सत्य है कि मणिपुर पर प्रधानमंत्री के बयान को लेकर हंगामा मचा रहा विपक्ष चर्चा से बचने का प्रयास कर रहा है। राष्ट्रहित की योजनाओं और विकास के मुद्दों से भागने के लिए विपक्ष ने संसद को अपनी आंदोलनकारी प्रवृति के लिए उपयोग लिया है। कृषि कानूनों के समय कांग्रेस के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने सदन में जो हंगामा किया था वो किसी भी प्रकार से स्वस्थ बहस का हिस्सा नहीं माना जा सकता। राज्यसभा की टेबल पर चढ़कर नारेबाजी और सभापति की कुर्सी की तरफ फाइल फेंकना किसी आंदोलनजीवी का व्यवहार माना जा सकता है। सरकार के विरुद्ध निराशा प्रकट करने का यह तरीका संसदीय लोकतंत्र का उल्लंघन है।
विपक्ष संसदीय कार्यप्रणाली में गिरावट का भार सरकार पर डालने का प्रयास जरूर करता है पर उसे इस बात का भान है कि यह राजनीतिक कदम से इतर कुछ और नहीं है। मणिपुर के मामले को ही ले लें तो सरकार ने इसपर चर्चा के लिए विपक्ष का सहयोग मांगा है। हालांकि विपक्ष इसके लिए तैयार नहीं है। विपक्ष द्वारा लाए गए नो कॉन्फिडेंस मोशन को जब स्वीकार कर लिया गया तो अब वे उसपर भी चर्चा करने का तैयार नहीं है। जाहिर है विपक्ष को चर्चा नहीं चाहिए।
यह भी गौर करने वाली बात है कि विपक्ष का विरोधी रवैया आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों को लेकर सबसे अधिक सामने आता है। आर्थिक क्षेत्र में हुए विकास पर विपक्ष चर्चा करने के लिए अडानी को मुद्दा बनाता है। SIT की रिपोर्ट विपक्ष के दावे को गलत साबित कर चुकी है। विपक्ष के लिए तथ्यहीन दावे करना मुद्दा नहीं है। योजनाओं की विषय वस्तु भले ही बदल जाए प्रवृति एक ही है।
दरअसल, विपक्ष में बैठकर यह दल सरकार की कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना चाहते हैं। राफेल सौदे पर जेपीसी की मांग को राहुल गांधी विपक्ष के हंगामे के नेतृत्वकर्ता बनें थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल सौदे के पक्ष में फैसला दिया गया था पर संसद में जो हुआ वो सब ने देखा है। सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट के बाद राहुल गांधी की जेपीसी की मांग विपक्ष के अनुसार न्यायालय की अवमानना नहीं मानी जाएगी। यह अलग बाद है कि इन्हीं नेतृत्वकर्ता को बाद में बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी।
पिछले कई वर्षों में संसदीय चर्चा और विमर्श के लिए विपक्ष कभी सहजता से तैयार नहीं रहा है। उनकी गंभीरता मामले को विवाद में बदलने के प्रति अधिक रही है। पीआरएस विधायी अनुसंधान डेटा के अनुसार, 1950-60 के दशक के बाद से संसद की बैठकों की संख्या आधी हो गई है और पिछले लगातार आठ सत्रों से संसद के दोनों सदनों को अपने निर्धारित समय से पहले स्थगित कर दिया गया है।
कृषि कानून, एनआरसी, सीएए, राफेल यहां तक की बजट सत्र में भी सदन के कार्यप्रणाली के प्रति विपक्ष गंभीर नहीं रहा है। आर्थिक प्रशासनिक सुधार पर चर्चा से बचना विपक्ष का निज के बचाव का तरीका समझा जाना चाहिए। विपक्ष की कार्यप्रणाली ने यह संदेश दिया है कि सूरत बदलने से उन्हें कोई मतलब नहीं बस हंगामा खड़ा करना ही मकसद बन गया है।
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