पश्चिम बंगाल में चुनाव और राजनीतिक हिंसा पिछले लगभग पाँच दशकों से साथ-साथ चलते रहे हैं। इसे लोकतंत्र की डरावनी और भद्दी तस्वीर कहा जा सकता है। यही कारण है कि न्यायालय को राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य सरकार, दोनों की जिम्मेदारी लेनी पड़ रही है। पंचायत चुनावों से पहले राज्य के सभी ज़िलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती का कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। दिलचस्प बात यह है कि इस आदेश पर पश्चिम बंगाल सरकार हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तो गई लेकिन उसे राहत नहीं मिली। केंद्र सरकार ने भी राज्य में केंद्रीय सुरक्षा बलों की उपस्थिति का प्रबंध कर दिया है।
पश्चिम बंगाल में राजनीति हिंसा का हाल यह है कि राज्यपाल राज्यपाल को कहना पड़ा कि चुनाव में जीत वोटों की गिनती पर आधारित होनी चाहिए न कि शवों की संख्या पर। यह वो सच्चाई है जो ममता बनर्जी समझती तो हैं पर सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करती। यही कारण है कि वे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की उपस्थिति को मतदाताओं को डराने का हथियार बताते हुए ज़रा भी नहीं हिचकती। देखा जाए तो केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को चुनाव परिणाम को प्रभावित करने का कारण मानना हास्यपद है क्योंकि पिछले पंचायत चुनावों में इन्हीं अर्धसैनिक बलों की उपस्थिति में क्या परिणाम आए, वह सबके सामने है।
2003 के पंचायत चुनावों में भी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती में मतदान हुआ था उसके बाद भी 70 से अधिक लोगों की हत्या हो गई थी। दरअसल पश्चिम बंगाल में राजनीतिक और चुनावी हिंसा मतदान तक सीमित कभी नहीं रही। यह चुनाव से पूर्व ही शुरू हो जाती है और परिणाम के अनुसार हिंसक होती जाती है। केंद्रीय सुरक्षा बल तो चुनाव प्रक्रिया को सुरक्षा प्रदान करने के लिए है। इनकी उपस्थिति महज चुनाव के सुचारू ढंग से संचालन तक सीमित रहती है। वास्तव में चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की ताकत तो राज्य में व्याप्त राजनीतिक हिंसा से पैदा हुए भय में होती है। यह ऐसी बात है जिसे हर उस व्यक्ति को याद रखनी है, जिसे लगता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप और केंद्रीय अर्धसैनिक बल चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं।
केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती टीएमसी की हार सुनिश्चित करेगी, ऐसा तो ममता बनर्जी भी नहीं मानती है। उनका तो विश्वास है कि राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव हो रहे हैं। पंचायत चुनाव के दौरान अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और 11 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। ममता बनर्जी की परिभाषा में यह शांतिपूर्ण है। प्रश्न यह है कि राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव हो रहे हैं तो कोर्ट ने सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश क्यों दिया?
पंचायत चुनावों में ममता बनर्जी सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता सक्रिय है। यह जमीनी राजनीति से अधिक जमीनी आधार खिसकने के कारण है। टीएमसी शासन काल में राज्य ने चुनावी ही नहीं हर प्रकार की हिंसा का सामना किया है। दरअसल, चुनाव परिणामों को हिंसात्मक शासन से प्रभावित होने का खतरा है जिसका आरोपण केंद्रीय सुरक्षा बलों पर किया जा रहा है। ममता बनर्जी ने अभी तक अपने जनतंत्र की परिभाषा में हिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया है, फिर वो विपक्ष में रहीं हों या सत्ता में। शायद यही कारण है कि न्यायपालिका या चुनाव आयोग के हस्तक्षेप से लगाये गये सुरक्षा उपाय ‘उनके लोकतंत्र’ के लिए खतरनाक प्रतीत होते हैं। ऐसे में केंद्रीय सुरक्षा बलों से चुनाव प्रक्रिया सुरक्षित होगी। इससे राज्य सरकार क्यों असुरक्षित महसूस कर रही है, इसका कारण स्पष्ट है।
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