आज हम सब्ज़ी वाले के पास जाते हैं तो ये बहाना नहीं बना सकते कि ‘कैश नहीं है’, मोची से लेकर स्ट्रीट फ़ूड के व्यापारी अब खुद को डिजिटल फ्रेंडली बना चुके हैं। जिस अंतिम व्यक्ति के कल्याण की बात महात्मा गांधी कहा करते थे, आज वह अंतिम व्यक्ति डिजिटल भारत का हिस्सा है। तो क्या हम कह सकते हैं कि आज अगर गाँधी जी होते तो वे जरूर मुस्कुरा रहे होते।
साल 2022 में भारत में UPI लोगों के बीच पेमेंट का एक एक लोकप्रिय तरीका बन गया है। UPI के माध्यम से हुए डिजिटल भुगतानों ने साल 2022 में कीर्तिमान हासिल किए हैं। आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 के आखिरी माह, यानी दिसंबर में डिजिटल लेनदेन की मात्रा 7.82 बिलियन के रिकॉर्ड को छू गई जिसकी कीमत ₹12.82 ट्रिलियन है।
साल दर साल के आधार पर, दिसंबर माह में UPI भुगतान की मात्रा में 71% और इन ट्रांज़ेक्शन के मूल्य में 55% की वृद्धि हुई। आंकड़े बताते हैं कि ‘कैशलेश’ भुगतान का यह माध्यम महीने दर महीने लोकप्रिय हो रहा है और अब 381 बैंक यह सुविधा देते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी UPI भुगतान के इस रिकॉर्ड पर ट्वीट करते हुए ख़ुशी जाहिर की है। उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा, “जिस तरह से आपने यूपीआई की बढ़ती लोकप्रियता को सामने लाया है, वह मुझे पसंद आया। मैं डिजिटल भुगतान को अपनाने के लिए अपने साथी भारतीयों की सराहना करता हूं!”
इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीयों की तकनीक और नई प्रणाली के प्रति रूचि की सराहना करते हुए यह भी लिखा कि ‘भारतीयों ने तकनीक और नई चीजों के लिए उल्लेखनीय अनुकूलता दिखाई है’।
भारत को डिजिटल बनाने में नोटबंदी (Demonetisation) की भूमिका
ये आंकड़े ऐसे समय में सामने आए हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार द्वारा साल 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले को वैध ठहराया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी सरकार ने कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए जो कदम उठाए उनमें से शायद सबसे अहम ‘जन-धन अकाउंट’ खुलवाना था।
इसके बाद आप साल 2016 के नोटबंदी के फैसले को देखिए। एक जन-धन अकाउंट ने जहाँ महिला और पुरुषों की तमाम आर्थिक बाध्यताएं समाप्त कर दीं, वहीं नोटबंदी के वक्त इन्हीं जन-धन खातों ने इन लोगों को डिजिटल भुगतान व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने में मदद की। जबकि न्यायालय में नोटबंदी को वैध या अवैध बताने के लिए पांच न्यायाधीशों में से एक को लगता है कि नोटबंदी का फैसला मोदी सरकार द्वारा जल्दबाजी में लिया गया था।
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वास्तव में भारत ने डिजिटल भुगतान प्रणाली को जिस सहुलियत के साथ अपनाया है, वह शायद ही किसी अन्य देश में इस तरह से देखी गई हो। अर्बन एवं रूरल में बंटे इस देश में आज हर किसी के पास UPI से भुगतान करने की आजादी है और ग्रामीण लोग भी खुद को इस व्यवस्था से सहज महसूस कर रहे हैं।
याद कीजिए उन सभी लोगों को जिन्होंने सिर्फ राजनीतिक द्वेष और राजनीतिक लाभ के लिए एक नोटबंदी के फैसले को हर बार गलत साबित करने की कोशिश की। आज भारत की अर्थव्यवस्था को ‘कैशलेश’ बनाने में इस एक फैसले का कितना बड़ा योगदान है।
कैशलेस अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था के कैशलेस होने का यह भी तात्पर्य होता है कि बाजार में नकली करेंसी की उतनी ही कमी होना, यानी अब फेक करेंसी की समस्या से भारत काफी हद तक आजाद हुआ है। नोटबंदी के प्रमुख कारणों में सरकार ने कोर्ट के समक्ष अपने हलफनामे में नकली करेंसी को भी बताया है।
इसके अलावा, आतंकवाद का पोषण करने वालों की फंडिंग को आइसोलेट करने में भी नोटबंदी ने बड़ी भूमिका निभाई है। पाकिस्तान जैसे देश और वह राजनीतिक दाल, जिसके तमाम बड़े-छोटे नेता आज भारत को जोड़ने का दावा कर रहे हैं, एक समानान्तर (पैरेलल इकॉनमी) अर्थव्यवस्था के ज़रिए देश पर राज कर रहे थे और वह भी सिर्फ फेक करेंसी के आधार पर।
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भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली और आँकड़े
पिछले दो वर्षों से यूपीआई लेनदेन की मात्रा और मूल्य का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा, Covid महामारी संबंधी प्रतिबंधों के कारण कुछ महीनों में मामूली उतार-चढ़ाव भी देखा गया।
2022 कैलेंडर ईयर में देश में UPI के माध्यम से 74 billion से अधिक ट्रांज़ेक्शन किये गए। इन सभी भुगतानों की कीमत NPICI (National payments corporation of India) के डेटा के हिसाब से ₹125.94 ट्रिलियन थी। साल 2021 में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में 71.54 trillion रुपये के 38 बिलियन से अधिक ट्रांजेक्शन देखने को मिली। इसलिए एक साल में ऑनलाइन पेमेंट की प्रक्रिया में 90% बढ़ी और इसके मूल्य में 76% की वृद्धि हुई है।
अगर आप इस चार्ट पर नज़र डालेंगे तो साल 2016 में UPI लॉंच हुआ था और ठीक इसके तीन साल बाद UPI की पहली बार ‘बिलियन ट्रांज़ेक्शन’ साल 2019 में पार हुई थी। तब से लेकर अब तक डिजिटल पेमेंट्स बिलियंस की संख्या में आगे बढ़ते ही दिख रही हैं
वहीं, एक साल बाद अक्टूबर 2020 में इसमें 2 बिलियन ट्रांज़ेक्शन प्रोसेस दर्ज हुई हैं और अगले 10 महीनो में UPI के ज़रिए करीब 3 बिलियंस ट्रांजेक्शन हुए।
इसके साथ पिछले कैलेंडर वर्ष में ₹125 लाख करोड़ के लिए 7,404 करोड़ का लेन देन देखा गया।
देखते ही देखते सिर्फ तीन महीनों में ट्रांज़ेक्शन 3 बिलियन से हर महीने 4 बिलियन में पहुँचने लगीं। वहीं, अगला इंक्रीमेंट ट्रांजेक्शन 3 महीने में देखा गया। अगर आप देखेंगे तो 5 बिलियन ट्रांजेक्शन से 6 बिलियन तक का सफर सिर्फ चार महीनो में कवर कर लिया गया। और अगले तीन महीनो में लेन देन 7 बिलियन से ऊपर हो गया।
शहरी लिब्रल्स को क्यों नहीं रास आता ग्रामीण भारत का डिजिटल होना?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बीच UPI भुगतान और डिजिटल भारत के आँकड़े हमारे समक्ष हैं। क्या यह बताने के लिए ये काफी नहीं है कि मोदी सरकार द्वारा लिया गया नोटबन्दी का फैसला भारत को, उसी कल्याणकारी राज्य की ओरे लेकर जाता है, जिसकी बात संविधान सभा में की गई थी, जिसकी बात महात्मा गाँधी ने हमारे ‘राष्ट्रनिर्माताओं’ से कही थी।
तो फिर अगर यही वो भारत है जिसका आखिरी व्यक्ति भी आज डिजिटल भुगतान का हिस्सा बनकर खुश है, तो क्या वे सभी लोग, जो वर्षों से नोटबंदी के फैसले के खिलाफ तमाम तरह के प्रायोजित अभियान चलाते रहे, क्या वे लोग महात्मा गाँधी के सपनों के भारत के खिलाफ भी हैं? क्या वे लोग नहीं चाहते कि भारत का अंतिम व्यक्ति भी उसी सुविधा का लाभ ले जिसका लाभ मेट्रो शहरों में बैठा व्यक्ति लेता है? क्या इस दूरी को कम करने के प्रयास करने वाले व्यक्ति को ही लिबरल्स की जुबान में फासिस्ट कहा जाता है?