लोकतंत्र के सर्टिफिकेट देने वाले ब्रिटेन को भारत से क्या सीखना चाहिए। सिविलाइजेशन स्टोरीज़ में आज चर्चा करेंगे लोकतंत्र की और साम्राज्यवाद के संरक्षकों की।
ब्रिटेन में 6 मई के दिन ब्रिटेन के नए शासक किंग चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी हुई। किंग चार्ल्स के राज्याभिषेक के लिए लगभग 100 राष्ट्राध्यक्ष, राजपरिवार समेत कई हस्तियाँ शामिल होती हैं। किंग चार्ल्स तृतीय बीते साल सितंबर में अपनी मां महारानी एलिजाबेथ की मौत के बाद यूनाइटेड किंगडम और 14 अन्य देशों के सम्राट के पद के दावेदार बने थे, और शपथ लेते ही वो इन देशों के सम्राट बन जाएंगे। किंग चार्ल्स ने जब शपथ ली तो उसमें देश के कानून और चर्च ऑफ इंग्लैंड को बनाए रखने की शपथ शामिल थी। राजा का अभिषेक यरूशलेम के पवित्र क्रिस्म तेल से किया जाता है और फिर कैंटरबरी के आर्कबिशप द्वारा उन्हें क्राउन ज्वेल्स पहनाया जाता है, क्राउन, यानी इंग्लैंड के सम्राट की शक्ति का प्रतीक!
ताजपोशी को भव्य बनाने के लिए कई क़िस्म की आर्थिक बदहालियों से गुजर रहा इंग्लैंड इस आयोजन पर 10 करोड़ पाउंड (यानी करीब 12.5 करोड़ डॉलर – 10,21,37,37,500 रुपये) खर्च कर रहा है। ये सब खर्च ब्रिटेन की सरकार करती है यानी टैक्स देने वालों के पैसों से ये आराम ख़रीदा जाता है। ब्रिटेन एकमात्र जी-7 इकॉनमी है जो अब तक कोविड से पूरी तरह नहीं उबर पाई है। ये तस्वीर वेस्टमिंस्टर एबे की है। बताया जा रहा है कि एक गरीब ने सर्दी से बचने के लिए वेस्टमिंस्टर के बाहर ही उन अख़बारों का बिस्तर लगाया जो राजा की ताजपोशी की खबरों से भरे हुए हैं। जब ये ब्रिटेन और इसका बीबीसी सारी दुनिया को डेमोक्रेसी के सर्टिफिकेट दे रहा है, ठीक उसी वक्त ये भव्य समारोह का आयोजन भी हो रहा है और वो भी ब्रिटेन के सम्राट की शान में।
क्रांतियों के बीच ब्रिटेन का लोकतंत्र
ब्रिटेन के साम्राज्य के बारे में एक ख़ास बात ये है कि जब पूरे यूरोप में क्रांतियाँ हो रही थीं तब भी इनका साम्राज्य टस से मस नहीं हुआ। आज भी जब यूक्रेन और रुस के बीच जंग छिड़ी है, इंग्लैंड अपनी ताजपोशी में मस्त है। यानी दुनिया को आपस में लड़ते मरते रहने दिया जाए और अपनी सत्ता क़ायम रखी जाए, यही ब्रिटेन के लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है। जब इन्होंने देखा कि दुनिया रेवोलुशन की बात कर रही है, तब इन्होंने १३ से १८वीं सदी के बीच इस तरह के जो एक आध बाग़ी और क्रांतिकारी क़िस्म के लोग आए भी उन्हें साम्राज्य ने अपने नाम के साथ जोड़ लिया और एक डकैत को ‘सर’ बनाकर उसे इंसानियत का मसीहा बता दिया। राजाओं की कुर्सी बचाने के लिए क्रांति को किस तरह से दबाया जाता है ये दुनिया को इंग्लैंड के साम्राज्य से सीखना चाहिए।
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रॉबिनहुड की कहानी
अब इस क़िस्म के डकैत, माफिया जब रॉबिनहुड कहलाते हैं तो बीबीसी को भी देखना चाहिए। बीबीसी आजकल कह रहा है कि गैंगस्टर अतीक अहमद रोबिन हुड था। जब इंग्लैंड में राजा की ताजपोशी हो रही है ठीक उसी वक्त साम्राज्यवाद की निशानी बीबीसी और बीबीसी के पत्रकारों का कहना है कि अतीक अहमद की निर्मम हत्या कर दी गई जबकि वो बेचारा घर से निकला था तो ग़रीबों की मदद करता था, ईद पर लोगों को पैसे देता था, लोगों की शादियाँ करवाता था, बच्चों को यूनिफार्म देता था और घुटे हुए पत्रकारों को बिरियानी खिलाता था।

जब मीडिया एक गैंगस्टर को रॉबिनहुड बोल रहा होता है तो वो असल में ये संदेश देना चाहते हैं कि एक फ़िलेंथ्रॉपिस्ट या समाजसेवक की हत्या हुई है। तो थोड़ा सा ये जान लेना भी ज़रूरी है कि क्या रॉबिनहुड वाक़ई में रॉबिनहुड था या क्या वो रॉबिन हुड और बीबीसी के रॉबिन हुड एक ही हैं या फिर कहानी कुछ और ही तो नहीं है?
रॉबिन हुड (Robin Hood), इस नाम की शुरुआत होती है इंग्लैंड के मध्यकालीन इतिहास से। ये तब की बात है जब इंग्लैंड का साम्राज्य गरीबों पर ज़ुल्म कर रहा था। सामंती व्यवस्था टूट रही थी क्योंकि अमीर अधिक अमीर हो रहे थे और गरीब और ज़्यादा गरीब हो रहे थे। रॉबिन हुड इंग्लैंड में उसी चरित्र की तरह है जैसे हमारे यहाँ सुल्ताना डाकू होता था, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में आज भी इसकी कहानियाँ सुनाई जाती हैं, उसके बारे में भी ऐसे ही कहते थे, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में भी बताया है कि वो अंग्रेजों की ट्रेन से अनाज लूटकर ग़रीबों की मदद करता था। अगर थोड़ा और क़रीब का मैं एग्जाम्पल दूँ तो घर-गाँव में लोकगीतों की और कहानियों की परंपरा होती है। ऐसे ही कुछ पुराने बुजुर्ग उस भूत का उदाहरण भी दे देते हैं जो बीड़ी माचिस देने के बाद ही उसकी जान छोड़ता था। ऐसा ही कुछ रॉबिन हुड का भी मामला है।
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साम्राज्य के लिये चर्च से समझौता करने वाला ब्रिटेन
सोलहवीं सदी में इंग्लैंड में सम्राट के अत्याचारों से जो लोग परेशान थे उन्होंने एक करैक्टर अपनी कथाओं में बनाया और इसे अपना हीरो घोषित कर लिया। आप जानते ही होंगे कि ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाइबिल में चर्च को ही सबसे ऊपर माना जाता है, फिर आते हैं सम्राट और फिर गरीब जनता या मज़दूर वर्ग। इंग्लैंड के सम्राट इतने लोकतांत्रिक थे कि उन्होंने बाइबिल को भी किनारे लगाकर राजा को ही चर्च का हेड बना लिया था। अब सबसे ऊपर सम्राट आ गया। ये तब की बात है जब इंग्लैंड के साम्राज्य का अत्याचार भी ग़रीबों पर बढ़ने लगा था और ऐसे में जिस एक रॉबिन हुड का ज़िक्र मिलता है वो बाग़ी यानी रेबेल क़िस्म का एक चरित्र है। सत्ता से टक्कर लेने वाला ये डकैत लोगों का हीरो बनने लगा। लेकिन उस वक्त इंग्लैंड के जो विद्वान और राजनीतिक चिंतक थे, वो केवल उस वक्त ही नहीं बल्कि लंबे समय के इन्वेस्टमेंट पर सोच रहे थे। उन्होंने यहाँ पर कलाकारी की और रॉबिन हुड को ही बदल दिया।
१३वीं सदी से अब तक रॉबिनहुड के कई वर्जन देखने या सुनने को मिलते हैं। इनमें से एक है वो रोबिन हुड है जिसने notingham पुलिस का सर कलम कर दिया था। रोबिन हुड के बारे में ये तो कहा जाता है कि वो बहुत बड़ा तीरंदाज़ था और अमीर से लूटकर गरीब को दे देता था लेकिन शायद ही कोई ये बात जानता हो कि रॉबिन हुड ने जिहाद लड़ा था, वो एक लड़ाका था यानी क्रूसेडर!
इसके अलावा इंग्लैंड के सम्राट और चिंतकों ने एक और कहानी भी बनाई जिसमें रोबिनहुड एकदम एलीट वर्ग का है, सभ्रांत लड़ाका । यानी जो आदमी उनके ख़िलाफ़ विद्रोह कर सकता था उसे ही साम्राज्य की ओर से हीरो की तरह पेश कर दिया गया और बताया कि ये इतना नोबेल चरित्र था। फ़िलेंथ्रोपिस्ट। ये मैं आपको उस साम्राज्य की कहानी बता रहा हूँ जिसकी ताजपोशी आजकल चर्चा में है। सम्राट ने ये संदेश दिया कि ये तो राजशाही या रजवाड़े का आदमी है जो जंगल में जा कर लोगों के बीच रहता है और उनकी मदद करता ही। रॉबिन हुड के बारे में इतनी कहानियाँ सिर्फ़ इसलिए बनाई जा रही थीं ताकि साम्राज्य के ख़िलाफ़ कोई विद्रोह ना करे।
ब्रिटेन के पास हैं कई रॉबिनहुड
अब वापस आते हैं अतीक अहमद को रॉबिनहुड पर और अब ख़ुद से पूछिये कि ये अतीक अहमद कौनसा वाला रोबिनहुड है, ये ‘सर रॉबिन हुड’ है या फिर Robyn Hode। अगर लोगों के सर काटने वाले ही बीबीसी के हीरो और फ़िलेंथ्रोपिस्ट होते हैं तो फिर कुछ उदाहरण मैं भी आपको देता हूँ जो पोटेंशियल रॉबिनहुड हैं-
32 साल के इमाद अल स्वेलमीन को भी रॉबिनहुड बताया जाना चाहिए जो 14 नवम्बर २०२१ के दिन होममेड बम के साथ लिवरपूल महिला अस्पताल में फूट गया था।
15 October 2021 के दिन सांसद डेविड एमेस की चाकू मारकर हत्या करने वाले ISIS आतंकी अली हरबी अली को भी रॉबिन हुड कहा जाना चाहिये।
20 जून 2020 के दिन २५ साल के खैरी सादल्लाह ने ब्रिटेन के ही रीडिंग पार्क में ३ लोगों की हत्या कर दी थी, उसे 2015 और 2019 के बीच 15 अपराधों के लिए ६ बार दोषी भी ठहराया गया था। उस बेचारे को क्यों आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी? कोर्ट ने तो कह दिया था कि वो बेचारा तो अपने मज़हब के प्रचार के लिए ऐसा कर रहा था।
29 नवंबर 2019 के दिन लंदन ब्रिज पर चाकूबाजी करने वाले 28 साल के उस्मान खान को क्यों मार दिया गया? अगर अतीक अहमद बीबीसी का रॉबिन हुड है तो फिर इन सबका क्या गुनाह था जो इन्हें रॉबिनहुड नहीं कहा गया?
ये तो पिछले कुछ एक आध साल के क़िस्से हैं जबकि इंग्लैंड का तो इतिहास है ऐसे हमलों का, फिर उनका बीबीसी भारत में अतीक अहमद को क्यों रॉबिनहुड बताता है, अपने देश में किसी को रॉबिनहुड बताते बीबीसी को क्यों शर्म आती है? या फिर बीबीसी जानता है कि रॉबिन हुड कोई नोबेल मैन नहीं बल्कि इंग्लैंड के साम्राज्य का एक प्यादा था जिसे साम्राज्य को बचाने के लिए आगे रख दिया गया था। उसी साम्राज्य का प्यादा, जो आज भी लोकतंत्र को किनारे रखते हुए ताजपोशी कर रहा है। वही ब्रिटेन, जो सारी दुनिया को डेमोक्रेसी का ज्ञान देता है वो आज भी ताजपोशी कर रहा है। साम्राज्य से ऊपर उसे चर्च तक पसंद नहीं रही। फ़ौज भी वहाँ पर राजा के ही हवाले है । और ध्रुव राठी कहता है कि फ़्रेंच रेवोलुशन के बाद ही दुनिया में डेमोक्रेसी यानी लोकतंत्र की शुरुआत हुई। सवाल तो ये होना चाहिये कि भारत में भी साम्राज्य रहे लेकिन यहाँ कभी इस क़िस्म के रेवोलुशन क्यों नहीं हुए?
भारत की सभ्यता में है लोकतंत्र
इसका जवाब भारत और इसके लोकतंत्र के इतिहास में छिपा हुआ है। लोकतंत्र के सिद्धांत की उत्पत्ति ही वेदों से हुई है। सभा और समिति का ज़िक्र कहीं मिलता है, तो ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलता है। इन बैठकों में उस समय के राजा, मंत्रियों और विद्वानों से विचार-विमर्श के बाद ही कोई फ़ैसला लिया जाता था। यहां तक कि विभिन्न विचारधाराओं के लोगों को विभिन्न समूहों में विभाजित किया गया था और आपसी परामर्श के बाद निर्णय लिया गया था। राजा को भी सभा या विधानसभा द्वारा हटाया जा सकता था। हमारे राजा जनता की सुनते थे। ऋग्वेद कहता है कि राजा या नेता का पद ऐसा नहीं है कि उसे छेड़ा नहीं जा सकता, राजा को सभा द्वारा हटाया जा सकता था। तो फिर ध्रुव राठी से पूछना चाहिये कि कहीं बिग बैंग भी फ़्रेंच रेवोल्यूशन के बाद ही तो नहीं हुआ था?
भारत में तो राजा बनते भी धर्म की रक्षा के लिए थे ना कि ऐयाशी के लिए, और जो राजा ग़लत करते थे उन्हें इसका दंड भी मिलता था। राजा अपनी प्रजा की आवाज़ भी सुनते थे, आप भगवान राम का उदाहरण देखिए, जो वनवास भी गये। इसी तरह से महाभारत को देखिए जहां जन सदन नाम से शांति पर्व का ज़िक्र मिलता है। शान्तिपर्व में राजधर्म का महत्त्व उसकी श्रेष्ठता और राजा के आदर्श चरित्र को बताता है। लेकिन इंग्लैंड में तो राजा ही सबसे ऊपर रहे, ख़ुद को सुरक्षित करने के लिए षड्यंत्र करते रहे। और आज भी हो ही रहे हैं।
अब बीबीसी का विरोधाभास देखिए कि पिछले एक साल में ही अगर हम इन पर नज़र डालें तो कभी इन्होंने भारत में लोकतंत्र की हत्या का एजेंडा चलाया है तो कभी कहते हैं कि यहाँ पर अतिक्रमण के ख़िलाफ़ क़ानून अपना काम करता है तो समुदाय विशेष के लोगों को समस्या हो जाती है। आज वो ताजपोशी की कहानियों में सना हुआ है। आज वही बीबीसी अतीक अहमद जैसे गैंगस्टर में रॉबिन हुड तलाश कर रहा है। लेकिन हमारी रिक्वेस्ट बीबीसी से ये है कि वो उन सभी किरदारों को भी रॉबिन हुड नाम दे जिनका ज़िक्र हमने आज की स्टोरी में किया है और दुनिया को भी इंग्लैंड के महान साम्राज्य के बारे में बताए। फ़िलहाल तो बीबीसी ख़ुद इस साम्राज्य के सामने जाता दिख रहा है कि हम आपके बारे में कितना लिख और बोल सकते हैं हमें बता दीजिए। बीबीसी के लिए डेमोक्रेसी का यही पहला सबक़ है।