दिल्ली के प्रमुख ट्रांसपोर्ट हब, जहां पर अंतर्राज्यीय बस अड्डा, रैपिड रेल और मैट्रो है, का नाम अब आदिवासी समुदाय के नेता और महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के नाम पर रख दिया गया है। केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को घोषणा की कि दिल्ली के Sarai Kale Khan ISBT के बाहर स्थित चौक का नाम स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है।
यह घोषणा दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले की गई, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के सराय काले खां अंतरराज्यीय बस टर्मिनस (ISBT) के पास स्थित बांसरा बंबू पार्क में बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया।
इसे दिल्ली को मुगलकाल के औपनिवेशिक दास्ताँ से मुक्ति के एक और कदम के रूप में भी देखा जाना चाहिए। कहा जाता है कि 14-15वीं सदी के मध्य में एक सूफी संत काले खां हुए, जोकि अक्सर अन्य सूफियों के साथ इस सराय में रुकते थे।
सोचने की बात ये है कि आजादी के बाद एक आदिवासी नायक को यह सम्मान देने का काम कॉन्ग्रेस भी कर सकती थी। तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बन चुके अरविन्द केजरीवाल भी कर सकते थे। लेकिन उन्हें Sarai Kale Khan नाम से कभी कोई समस्या नहीं हुई। और अब लोग यही कह रहे हैं कि सारे अच्छे काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही हाथों होने हैं।
बिरसा मुंडा की 3,000 किलोग्राम वजनी प्रतिमा का अनावरण उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर किया गया। बिरसा मुंडा ने 19वीं सदी के अंत में बंगाल प्रेसिडेंसी (अब झारखंड) में एक जनजातीय आंदोलन का नेतृत्व किया था। वह देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माने जाते हैं।
इस अवसर पर मनोहर लाल खट्टर ने कहा, “भगवान बिरसा मुंडा हमारे देश की जनजातीय समुदाय के लिए एक महान नाम हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी प्राकृतिक संपत्तियों की रक्षा के लिए एक बड़ा संघर्ष किया।”
उन्होंने कहा, “ऐसे प्रेरणादायक व्यक्तित्व की स्मृति को संरक्षित करने के लिए, विशेष रूप से युवाओं के लिए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया और ISBT चौक का नाम उनके नाम पर रखा गया।”
सराय काले खान फिलहाल दिल्ली के दक्षिण पूर्व दिल्ली जिले का हिस्सा है। यहाँ पर ही आईएसबीटी भी है और हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से एकदम सटा हुआ इलाका है।
बता दें कि Sarai Kale Khan, जो दिल्ली के सबसे व्यस्त क्षेत्रों में से एक है, खासतौर पर ISBT के कारण, जहां से उत्तर भारत के विभिन्न गंतव्यों के लिए बसें चलती हैं, का मध्यकालीन युग से संबंध है।
‘मॉन्यूमेंट्स ऑफ दिल्ली: लास्टिंग स्प्लेंडर ऑफ द ग्रेट मुग़ल्स एंड अदर्स’ (Monuments of Delhi: Lasting Splendour of the Great Mughals and Others) के तीसरे खंड में मौलवी जफर हसन द्वारा संकलित और 1920 में पहली बार प्रकाशित, में बताया गया है कि “सराय काले खां को मलबे की चिनाई से बनाया गया था और यह मूल रूप से मेहराबदार कमरों से घिरी हुई थी, जिनकी बाहरी दीवारें बुर्जों से सुशोभित थीं।”
पुस्तक के अनुसार, यह सराय उन सरायों में से एक प्रतीत होती है, जिन्हें शेर शाह ने बंगाल से सिंधु तक की सड़क पर ‘एक किरोह’ (लगभग 3 किमी) की दूरी पर बनवाया था।
इन सरायों में, यात्रियों, मुसलमानों और हिंदुओं दोनों को सम्राट के आदेश पर सार्वजनिक खर्च पर भोजन और आश्रय दिया जाता था। साथ ही, वहां घुड़सवार पोस्ट स्थापित किए गए थे, ताकि बंगाल से समाचार प्रतिदिन सम्राट तक पहुंच सके।