यमुना नदी में बढ़ रहे प्रदूषण पर सार्वजनिक हुए एक सर्वे के आंकड़ों में चिंताजनक स्थिति सामने आई है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) एवं दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में यमुना नदी में पिछले 8 वर्षों में प्रदूषण दोगुना हो गया है।
DPCC एवं दिल्ली जल बोर्ड द्वारा दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना के सामने आंकड़े प्रस्तुत किए गए। इसमें बताया गया है कि सरकार पुरानी समस्याओं को हल करने के लिए पहले से ही काम कर रही है। साथ ही प्रमुख सीवेज उपचार संयंत्र (STP) का उन्नयन दिसंबर के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है।
बता दें कि यमुना की सफाई के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) द्वारा 9 जनवरी को गठित उच्च स्तरीय समिति की पहली बैठक से पहले एलजी ने जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए बैठक बुलाई थी।
डीपीसीसी के आंकड़ों से सामने आया है कि जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का स्तर 2014 पूर्व पल्ला में 2 मिलीग्राम प्रति लीटर की सीमा तक स्थिर था और यहीं से नदी दिल्ली में प्रवेश करती है। इसके बाद अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी-झोपड़ी के समूह से अपशिष्ट जल, एसटीपी और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से निकलने वाले जल की खराब गुणवत्ता से नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जाता है।
बीओडी, जो कि पानी की गुणवत्ता मापन के लिए महत्वपूर्ण पैरामीटर है, इसका जल में तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होना अच्छा माना जाता है। डीपीसीसी के आंकड़ों के अनुसार, बीओडी का नदी में दिल्ली के प्रवेश के बाद प्रदूषण 2014 के बाद से तेजी से बढ़ा है।
यमुना नदी जब दिल्ली छोड़ कर उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है तो ओखला बैराज में बीओडी का स्तर 2014 में 32 मिग्रा/लीटर पाया गया था वो बढ़कर 56 मिग्रा/लीटर तक पहुँच गया है। डीपीसीसी द्वारा प्रत्येक माह पल्ला, वजीराबाद, आईएसबीटी पुल, आईटीओ पुल, निजामुद्दीन पुल, आगरा नहर, ओखला बैराज, असगरपुर में लगातार आंकड़े इकट्ठे किए गए हैं और उनमें स्पष्ट रूप से दिल्ली सरकार द्वारा कोई कदम न उठाने के कारण प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है।
यमुना में प्रदूषण में मात्र एक बार उछाल हरियाणा के कारण आया था जब यमुना नहर की मरम्मत करते हुए हथिनी कुंड बैराज से यमुना में पानी छोड़ा गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट एवं एनजीटी के कहने पर भी आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा नजफगढ़ नाले से प्रदूषण की जांच करने में विफल रहने के कारण प्रदूषण में घातक वृद्धि हुई है।
यह भी पढ़ें- अरविन्द केजरीवाल: स्कूल बनाने की आड़ में ₹1300 करोड़ किए गबन
जहाँ आईएसबीटी में बीओडी का स्तर नजफगढ़ नाले के यमुना में गिरने के ठीक बाद 2014 के 26 मिग्रा/लीटर से बढ़कर 2017 में 52 मिग्रा/लीटर हो गया। साथ ही आज से आँकड़ा 38 मिग्रा/लीटर पर बना हुआ है। नजफगढ़ नाले का यमुना में छोड़े जाने वाले अपशिष्ट जल का करीब 68.71 प्रतिशत हिस्सा है। लगातार सीवेज पानी को यमुना में छोड़ा जा रहा है। शाहदरा ड्रेन की बात करें तो ये दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषक है जहाँ से 10.90 प्रतिशत वेस्ट वाटर डिस्चार्ज होता है।
डीपीसीसी के अनुसार दिल्ली में 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से मात्र 9 ही डीपीसीसी के मानकों का पालन करते पाए गए हैं। डीपीसीसी के नियम कहते हैं कि उपचारित अपशिष्ट जल में बीओडी और टीएसएस (कुल घुलनशील ठोस) 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होना चाहिए.
राजधानी दिल्ली एक दिन में 768 मिलियन गैलन के करीब सीवेज उत्पन्न करती है। इनको 530 एमजीडी की संचयी उपचार क्षमता वाले 35 एसटीपी में उपचारित किया जाता है। हालांकि, इन एसटीपी की साफ करने की क्षमता ही 69 प्रतिशत है जिसके कारण केवल 365 एमजीडी सीवेज का ही ट्रीटमेंट हो पाता है।
बता दें कि दिल्ली जल बोर्ड इन समस्याओं को लेकर पहले से काम कर रहा है। यूटिलिटी के वाइस चेयरमैन सौरभ भारद्वाज का कहना है कि एसटीपी चलाने वाले निजी संचालकों एवं दिल्ली जल बोर्ड द्वारा संचालित संयंत्रों के मामले में कार्यकारी इंजीनियर द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। उनका दावा है कि वित्त विभाग से 6 माह से भुगतान नहीं करने के कारण परियोजनाओं को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।