लम्बे समय से छिपते-छिपाते मनीष सिसोदिया आखिरकार जेल पहुंच चुके हैं। सीबीआई ने उन्हें नई शराब नीति में कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के मामले में गिरफ्तार किया था। इससे बड़ा झटका यह था कि सुप्रीम कोर्ट ने बेल एप्लीकेशन की सुनवाई नहीं की और उन्हें हाईकोर्ट जाने के लिए कहा। सिसोदिया और केजरीवाल के पास कोई विकल्प नहीं बचा और सिसोदिया ने इस्तीफा दे दिया।
प्रश्न तो यह भी है कि सिसोदिया का इस्तीफा 2 दिन के अंदर और केजरीवाल के ‘भारत रत्न’ सत्येंद्र जैन के इस्तीफे लिए 9 महीने क्यों लग गए? यह सियासत है, यहाँ “जंग में कत़्ल सिपाही होंगे, सुर्खरु ज़िल्ले इलाही होंगे”
खैर, सिसोदिया ने अपना इस्तीफा दिल्ली में भले दिया हो लेकिन इससे हलचल दक्षिण भारत में भी सुनाई दी। यह हलचल तेलंगाना में हुई। दरअसल जिस शराब नीति में भ्रष्टाचार के चलते सिसोदिया जेल में है उसके तार तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता से भी जुड़े हैं। ईडी ने शराब नीति मामले में चार्जशीट में के कविता का नाम लिया था। उन पर एक शराब कंपनी में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने का आरोप है। जांच एजेंसी ने पिछले वर्ष हैदराबाद में उनसे पूछताछ भी की थी।
केसीआर-केजरीवाल की दोस्ती!
पिछले वर्ष से शुरू हुई एजेंसियों की इस जांच का परिणाम आरोप प्रत्यारोप के रूप में तो देखा ही गया लेकिन साथ में देश में एक नया राजनैतिक समीकरण देखा गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की दोस्ती गहरी हो गयी। पहले केसीआर दिल्ली के स्कूलों का दौरा कर आये तो इसका धन्यवाद केजरीवाल ने तेलंगाना जाकर किया जहाँ वे केसीआर द्वारा आयोजित एक मेगा रैली में शामिल हुए। इससे पहले एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए दक्षिण भारत से फंडिंग हुई थी जिसमें दक्षिण के बड़े-बड़े कारोबारी शामिल थे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इसमें भी केसीआर से जुड़े कारोबारियों की और अरविन्द केजरीवाल की सांठगांठ थी?
अक्सर घोषित या अघोषित राजनैतिक गठबंधन चुनावी समीकरण साधने के लिए होते हैं जहाँ एक दूसरे के जनाधार पर दल एकजुट होते हैं लेकिन केजरीवाल का तेलंगाना में कौन सा वोट बैंक है या फिर केसीआर दिल्ली जाकर कितने वोटर्स को प्रभावित कर पाते हैं ? तो फिर इस एकजुटता का आधार क्या है?
इसका आधार है भ्रष्टाचार को छुपाये रखना। “भ्रष्टाचार में हम तुम्हें बचाते हैं तुम हमें बचाओ और जब दोनों फंसते नज़र आएंगे तो जवाब तो है ही कि हम मोदी से लड़ रहे हैं और केंद्र सरकार एजेंसी का दुरुपयोग कर रही है।”दोनों मुख्यमंन्त्रियों से यह जवाब ही अपेक्षित है लेकिन प्रश्न यह है
केसीआर को किसका डर है ?
के कविता से जुड़े मामले के अलावा भी केसीआर के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। तेलंगाना के सबसे बड़े प्रोजेक्ट में से एक कालेश्वरम प्रोजेक्ट को देश का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है।केसीआर सबसे अमीर नेताओं में से एक हैं लेकिन तेलंगाना में अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है। राज्य को उनके अधीन 4.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
केसीआर पिछले चुनाव में किये गए बड़े बड़े वादे भी पूरे नहीं कर पाए हैं जैसे किसानों के लिए कर्ज़ माफ़ी, महिलाओं के लिए ब्याज मुक्त लोन एवं हर घर में नौकरी, गरीबों के लिए 2BHK फ्लैट। आगामी महीनों में तेलंगाना में चुनाव प्रस्तावित हैं ऐसे में मुस्लिम तुष्टिकरण से ग्रसित और भ्रष्टाचार से घिरे केसीआर की मुश्किलें बढ़नी तय हैं।
यह भी पढ़ें: 2024 चुनाव: दिल्ली की दौड़ में CM KCR के लिए तेलंगाना बचाना होगा चुनौती
यही कारण है कि सत्ता में वापसी के लिए उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी से भी हाथ मिला लिया है और आगामी एमएलसी चुनावों में उन्होंने ओवैसी की पार्टी को खुला समर्थन दे दिया है ताकि साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में ओवैसी को वे चुनिंदा सीटों तक ही सीमित रखें और उनके मुस्लिम वोट बंटे नहीं।
लेकिन साथ ही चुनावी वर्ष में केसीआर तेलंगाना में मंदिर निर्माण के लिए करोड़ो भी दान कर रहे हैं। राज्य में हिन्दू धर्म के कार्यक्रमों को सीमित करने वाले,
इमामों को तनख्वाह देने वाले केसीआर अचानक मंदिर की ओर क्यों मुड़ गए?
इसका जवाब है भाजपा का मिशन तेलंगाना। वर्ष 2020 का हैदराबाद नगर निगम चुनाव तो पूरे देश को याद ही है जहाँ भाजपा चार सीटों से बढ़कर 48 पर पहुंची थी। इसके बाद भाजपा ने 2023 विधानसभा चुनाव जीतने का लक्ष्य रख लिया था। प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार अपनी प्रजा संग्राम यात्रा से पहले ही छाप छोड़ चुके हैं। यात्रा की तारीफ़ प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं। वहीं भाजपा अगले 1 महीने तक राज्यव्यापी ‘प्रजा गोसा भाजपा भरोसा’ नाम का अभियान चलाएगी इसमें पार्टी के तमाम नेता 119 विधानसभा सीटों पर रैलियां करेंगे और इस अभियान के समापन में प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल होंगे।
अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को घेरा जाएगा। दिल्ली में सिसोदिया के इस्तीफ़ा देने के बाद उनके इस्तीफे की मांग भी शुरू हो गयी है। जांच एजेंसी एवं अदालत ने भ्रष्टाचार पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। यह रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी प्रभावित नहीं है। ऐसे में राष्ट्रीय नेता बनने की आंकाक्षा रख रहे केसीआर के पास आरोप लगाने का भी कोई विकल्प नहीं बचता है। संभावना तो यह भी है कि केसीआर समय से पहले चुनाव करा सकते हैं।
केसीआर देश में तीसरा मोर्चा बनाने की जुगत में थे लेकिन अब अपने ही राज्य में घिर चुके हैं। इन सभी मुश्किलों के बीच उन्हें अपने बेटे को भी भविष्य के नेता के तौर पर स्थापित करना है। केसीआर को इन मुद्दों पर अपनी बात जरूर रखनी चाहिए। उनके उत्तर उनका राजनीतिक भविष्य तय करेंगे लेकिन क्या जनता उनके जवाबों से सहमत हो पाएगी? यह कुछ महीनों में ही तय हो जाएगा।
यह भी पढ़ें: 2022 में भाजपा के वो निर्णय, जो पार्टी के लिए 2024 के रण में मददगार साबित होंगे