दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम बालिका से बलात्कार के आरोपित को बलात्कार और POCSO के मामलों से बरी किया है। यह निर्णय कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरक़रार रखते हुए दिया। यह मामला पीड़िता के जीजा (जिससे बाद में उसका विवाह भी हुआ) के विरुद्ध पीड़िता की मां ने दर्ज करवाया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता की आयु यौन संबंधों के समय 15 वर्ष थी और दोनों का विवाह भी हो चुका था ऐसे में व्यक्ति के विरुद्ध बलात्कार का मामला नहीं बनता है। गौरतलब है कि इस्लामी कानून के अंतर्गत बालिका के 15 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद विवाह की मान्यता है। इसी के अंतर्गत कोर्ट ने यह माना कि आरोपित पर यौन उत्पीड़न का मामला नहीं लगाया जा सकता।
यह मामला फरवरी, 2015 में दर्ज करवाया गया था। जानकारी के अनुसार, पीड़िता दिसम्बर, 2014 में कुछ दिनों के लिए बिहार गई थी जहाँ पर उसने कय्यूम नाम के व्यक्ति से विवाह किया जो कि उसका जीजा भी था। आरोपित ने उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए जिसके बाद वह गर्भवती हो गई। इस बात का पता चलने पर पीड़िता की माँ ने उसके विरुद्ध बलात्कार और POCSO के तहत मामला दर्ज करवाया।
इस मामले में पीड़िता ने बयान दिया कि उसके और आरोपित कय्यूम के बीच सम्बन्ध बनने से पहले विवाह हो चुका था जिसका उसके अभिभावकों को पता नहीं था। हालाँकि, मामला दर्ज करवाते समय FIR में लिखा गया था कि आरोपित अक्टूबर-नवम्बर 2014 में कई बार उसके घर आया और उससे सम्बन्ध बनाए। पीड़िता के बयान के आधार पर ही कोर्ट ने कहा कि जब सम्बन्ध विवाह के उपरान्त बनाए गए हैं तो यह आरोप नहीं बनते और कय्यूम को बरी कर दिया।
फरवरी 2015 में दर्ज की गई एफआईआर में आरोप लगाया गया कि ‘अक्टूबर और नवंबर 2014’ में जब लड़की अकेली थी तो ‘उसका असली जीजा’, उसके घर ‘चार से पांच बार’ आया और उसके साथ बलात्कार किया।
गौरतलब है कि इस मामले में आरोपित और पीड़िता दोनों ही मुस्लिम थे इसलिए उन्हीं नियमों का सहारा लेते हुए आरोपित को बरी किया गया। अन्य धर्मों के विषय में सहमति से यौन संबंधों की आयु 18 वर्ष है और विवाह की न्यूनतम आयु भी बालिकाओं के लिए 18 वर्ष है। मुस्लिम धर्म की बालिकाएं 15 वर्ष की आयु के बाद विवाह कर सकती हैं और उनके पति के साथ सम्बन्ध POCSO के अंतर्गत नहीं आएँगे।
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