केजरीवाल सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की आज सीबीआई में फिर पेशी है। जाहिर है, सिसोदिया के लिए भगत सिंह को याद करने का एक और मौका है। उन्होंने मौके को जाने नहीं दिया। सुबह ही ट्वीट करते हुए लिखा;
“आज फिर CBI जा रहा हूँ, सारी जाँच में पूरा सहयोग करूँगा। लाखों बच्चों का प्यार और करोड़ों देशवासियों का प्यार साथ है। कुछ महीने जेल में रहना पड़े तो परवाह नहीं। भगत सिंह के अनुयायी हैं। ऐसे झूठे आरोपों की वजह से जेल जाना तो छोटी चीज है।”
सिसोदिया और उनके नेता केजरीवाल पिछले कई महीनों से हर सीबीआई और ED में पेशी से पहले गिरफ्तारी की भविष्यवाणी करते रहे हैं लेकिन ये सीबीआई और ED हैं कि हर बार गिरफ्तार ना करके इन्हें निराश कर देते हैं। हर नोटिस पर सिसोदिया नहा धोकर तेल कंघी कर राजा बेटा बनकर अपने मन में जोर-जोर से मेरा रंग दे बसंती चोला गाते इस आशा में निकलते हैं कि आज तो गिरफ्तार होकर ही रहेंगे। सीबीआई के दफ्तर तक जाते हैं, सवाल-जवाब प्रतियोगिता में भाग लेते हैं और वापस आ जाते हैं। ऐसे में आप समझ सकते हैं इनकी निराशा का लेवल।
गिरफ्तारी होती नहीं और ये अगली पेशी पर गिरफ्तार होने की आशा में सीबीआई की नोटिस की राह ताकने लगते हैं। यह सोचते हुए व्यस्त हो जाते हैं कि; अगली बार पेशी के दिन ट्वीट में भगत सिंह को याद करते हुए किस अलंकार का प्रयोग किया जाए? क्या लिख दिया जाए कि जब हम सीबीआई दफ्तर के लिए सिर पर नैतिकता की अपनी गगरी रख कर चलें तो उसमें से ईमानदारी छलकती जाए। इधर हम सीबीआई के दफ्तर वाली राह पर चलते चलें और उधर ट्विटर के दोनों ओर लोग कटोरा लिए गगरी से छलक रही ईमानदारी ऐसे लूटें जैसे किसी बस्ती के पियक्कड़ ट्रक पलट जाने पर बीयर की बोतल लूट लेते हैं।
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सीबीआई और ED के इस रोलिंग प्लान में सिसोदिया का तो कुछ नहीं हो रहा लेकिन भगत सिंह की बड़ी फ़ज़ीहत हो रही है। अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सिसोदिया उनकी और उन्हें अपनी नैतिक शक्ति का स्रोत मानने वाले करोड़ों भारतीयों की बेइज्जती कर रहे हैं। सिसोदिया को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि भगत सिंह ने ना तो अपने कर्म दुनिया से छिपाए और ना ही उन कर्मों के लिए उन्हें किसी के सामने सफाई देने की जरूरत पड़ी।
सिसोदिया अपनी धूर्तता से इस बात को किनारे कर लेते हैं कि भगत सिंह का जेल जाना भारतमाता के लिए किए गए उनके कर्मों का परिणाम था। भगत सिंह और उनके साथियों को अपने कर्म छिपाने के लिए कभी ना तो सबूत नष्ट करने की आवश्यकता पड़ी और ना ही डेढ़ सौ मोबाइल फोन बदलने की।
दरअसल हर बार खुद की तुलना भगत सिंह से करने के चक्कर में सिसोदिया भगत सिंह की जीवनी से कर्म पर्व वाला अध्याय गायब कर चुके हैं। यही कारण है कि वे हर बार इस तुलना को जेल पर्व से शुरू करते हैं और जेल पर्व पर ही खत्म कर देते हैं। शायद उन्हें पता है कि उन्होंने यदि कर्म पर्व वाला अध्याय खोला तो शहीद होने की योजना पर पानी फिर जाएगा।
भगत सिंह को लेकर सिसोदिया का यह दर्शन उन्होंने अपने गुरु केजरीवाल से उधार लिया है जो तथाकथित सरोकारों वाले एक टीवी इंटरव्यू में खुद भगत सिंह के सहारे राजनीति का महासागर पार करने की कोशिश में गोते लगाते पकड़े गए थे।
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