दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री सिसोदिया की गिरफ्तारी की खबर मीडिया से हटने लगी तो अरविन्द केजरीवाल नए मुद्दे के साथ एक बार फिर ख़बरों में बने रहने के लिए आ गये हैं। इस बार उन्होंने मुद्दा बनाया है दिल्ली सरकार का बजट।
आज यानी 21 मार्च को दिल्ली विधानसभा में बजट पेश होना था। लेकिन इस से पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि केंद्र सरकार ने आज दिल्ली विधानसभा में पेश होने वाले दिल्ली सरकार के बजट पर रोक लगा दी है। इसके लिए केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भी लिख दी है।
IITian मुख्यमंत्री केजरीवाल और श्रेय लेने की लड़ाई
आइए देखते हैं असल में मामला है क्या?
चूँकि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है इसलिए नियमों के अनुसार वार्षिक बजट का विवरण पहले दिल्ली के एलजी यानी उपराज्यपाल को सहमति के लिए भेजा जाता है। यहाँ पर महत्वपूर्ण नियम यह है कि एलजी इस पर अपनी टिप्पणियां भी दे सकता है। इसके बाद इसे मुख्यमंत्री द्वारा मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा जाता है। मंत्रालय फिर इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजता है, जिसके बाद दिल्ली सरकार द्वारा बजट पेश किया जा सकता है।
ठीक हुआ भी नियम के अनुसार ही;
केजरीवाल ने बजट की फाइल एलजी ऑफिस को भेजी। एलजी कार्यालय के अनुसार, 9 मार्च को कुछ टिप्पणियों के साथ वार्षिक बजट को मंजूरी दी और सीएम को फाइल भेजी। फिर इसे मुख्यमंत्री द्वारा मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा गया। लेकिन अब मामला यहाँ फंस गया।
दरअसल, गृह मंत्रालय ने एलजी की टिप्पणियों का संज्ञान लेते हुए केजरीवाल सरकार के समक्ष अपनी चिंताएं व्यक्त की और केजरीवाल सरकार से तीन सवाल पूछ डाले;
पहला- राजधानी जैसे क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के लिए बजट का 20% हिस्सा क्यों रखा?
दूसरा- दिल्ली सरकार विज्ञापन का बजट दोगुना क्यों कर रही है?
तीसरा- आयुष्मान भारत जैसी केंद्रीय योजनाओं का लाभ दिल्ली की गरीब जनता को क्यों नहीं दिया जा रहा?
यहाँ पर आपको याद रखना होगा कि यह सब 17 मार्च को हो चुका था और आज यानी 21 मार्च से चार दिन पहले। तो सवाल ये है कि चार दिनों के भीतर भी दिल्ली सरकार ने इन मुद्दों पर गृह मंत्रालय को जवाब क्यों नहीं भेजा? LG ऑफिस अभी तक इस फाइल का इंतजार कर रहा है।
केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को लिखी हुई चिट्ठी में कहा कि देश के 75 सालों के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है।
सोचने वाली बात ये है कि 75 सालों के इतिहास में ऐसा क्यों हो रहा है? गृह मंत्रालय को दिल्ली के बजट पर चिंता करने की आवश्यकता क्यों पड़ गई ? आवश्यकता पड़ी केजरीवाल सरकार के कुछ कारनामे देखकर।
आम आदमी पार्टी की ‘दिल्ली’ अभी दूर है
विज्ञापन वाली सरकार?
पिछले वर्ष ही एक आरटीआई में खुलासा हुआ की दिल्ली सरकार ने वर्ष 2012 से लेकर 2022 तक यानी पिछले 10 सालों में विज्ञापन पर किये जाने वाले खर्चे में 42 सौ प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। 42 सौ प्रतिशत वृद्धि , आप अंदाजा लगा सकते हैं। लगभग 500 करोड़ रूपये तो सिर्फ पिछले एक वर्ष में ही खर्च कर दिए।
यह विज्ञापन कैसे होते हैं? क्या ये इतने जरुरी होते हैं कि इन पर करोड़ों रूपये खर्च किये जा रहे हैं। आईये बताते हैं आपको
यह आप भी जानते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण सबसे मुख्य समस्याओं में से एक है जिसके समाधान के लिए वर्षों से केजरीवाल अनेक दावे करते रहते हैं। लेकिन अब देखिए जनवरी 2022 में रिलीज़ हुई एक रिपोर्ट जो केजरीवाल के इन दावों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है ।
रिपोर्ट में बताया गया कि अरविंद केजरीवाल ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 68 लाख रुपए खर्च किए लेकिन इसके विज्ञापन पर 23 करोड़ खर्च कर दिए।आप सोचिये एक तरफ 68 लाख और एक तरफ 23 करोड़
इसी रिपोर्ट में यह भी बताया कि पोलूशन को कम करने के लिए प्रयोग में आने वाले डी कंपोजर पर मात्र 3 लाख रूपये खर्च हुए लेकिन इस कार्य का ढोल पीटने के लिए साढ़े सात करोड़ रुपए खर्च कर दिए।
यह सिलसिला मात्र इतना ही नहीं है। इसी वर्ष जनवरी महीने में दिल्ली के एलजी ने दिल्ली के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर आम आदमी पार्टी से 163 करोड पर वसूलने के लिए कहा गया ।किस बात के 163 करोड़ रूपये ?.
बताया गया कि अरविंद केजरीवाल एवं आम आदमी पार्टी ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए इन रुपयों का मिसयूज कर दिया। कई विज्ञापन जारी कर दिए। तो अब आप बताइए कि क्या गृह मंत्रालय की चिंताएं वाजिब नहीं है?
जहां दिल्ली के शिक्षक सैलरी न मिल पाने से परेशान रहते हैं वहां क्या विज्ञापनों के लिए बजट को दुगना करना चाहिए? जहां दिल्ली की जनता बुनियादी ढांचे के लिए जूझ रही है। वहां क्या बुनियादी ढांचे के लिए बजट का सिर्फ 20% हिस्सा खर्च करना चाहिए?
जब सरकारें जनता के लिए कार्य करना बंद कर देती हैं तो संवैधानिक संस्थाओं का कर्तव्य बनता है कि उस सरकार को उसका कर्तव्य याद दिलाये।
और यह तो वैसे भी केजरीवाल सरकार है जिसके मंत्री- उपमुख्यमंत्री तक भ्रष्टाचार के मामलों में जेल में हैं। ऐसी सरकार की नीयत पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?