भारत में रक्षा उत्पादन पहली बार 1 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है और वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 1.07 लाख करोड़ रुपये है। यह पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 12% से अधिक की वृद्धि है। रक्षा उत्पादन में वृद्धि के पीछे देश में बने हथियार और अन्य सामान बढ़ा हुआ सरकारी खर्च में वृद्धि, रक्षा उत्पादों की बढ़ती घरेलू मांग और मेक इन इंडिया पहल शामिल हैं।
भारत लगातार अपने रक्षा उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर रहा है। 2020-21 में, देश ने 13.9 बिलियन डॉलर के रक्षा उपकरणों का आयात किया। आयात पर यह निर्भरता सरकार के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय रही है क्योंकि इसने भारत को वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावटों के प्रति संवेदनशील बना दिया है।
भारत सरकार हाल के वर्षों में रक्षा पर अपना खर्च बढ़ा रही है। वर्ष 2022-23 में, सरकार ने रक्षा बजट के रूप में 76,320 करोड़ रुपये आवंटित किए जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 10.7% अधिक है। इस बढ़े हुए खर्च का इस्तेमाल नए हथियार और उपकरण हासिल करने, मौजूदा सिस्टम को अपग्रेड करने और नई तकनीकों को विकसित करने के लिए किया जा रहा है।
रक्षा उत्पादों की घरेलू मांग भी लगातार बढ़ रही है। भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है, लेकिन सरकार आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य हथियारों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना है। सरकार की यह पहल रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सफल रही है, और इससे भारत में नए हथियार बनाने की फैक्ट्रियों की स्थापना भी हुई है।
2014 में शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल ने घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इससे नए हथियार भी विकसित हुए हैं। इस पहल का उद्देश्य रक्षा उपकरणों के विकास और उत्पादन के लिए घरेलू कंपनियों को प्रोत्साहित करके रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। इन्हीं प्रयासों के चलते, रक्षा मंत्रालय के अनुसार रक्षा खरीद में घरेलू उत्पादन का हिस्सा 2014-15 में 40% से बढ़कर 2022-23 में 65% हो गया है।
DRDO से मिले आंकड़ों के अनुसार, भारत में रक्षा निर्माण इकाइयों की संख्या वर्ष 2014 में 215 से बढ़कर वर्ष 2022 में 500 से अधिक हो गई है।
रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में 1.07 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादन में योगदान देने वाले प्रमुख क्षेत्रों में एयरोस्पेस (35,000 करोड़ रुपये), नौसेना प्रणाली (25,000 करोड़ रुपये), थल सेना द्वारा प्रयोग किए जाने साजोसामान (20,000 करोड़ रुपये), और इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार (17,000 करोड़ रुपये) शामिल हैं। बढ़े और घरेलू रक्षा उद्योग के विस्तार के कारण इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। इन सभी क्षेत्रों में वृद्धि के पीछे लगातार बढ़ता निवेश और तकनीक के स्तर पर बढ़त है।
रक्षा क्षेत्र अब भारत के बड़े रोजगारप्रदाताओं में से एक है। देश के 10 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। रक्षा क्षेत्र भारत की जीडीपी में 2% से अधिक योगदान देता है। पिछले पांच वर्षों में भारत का रक्षा निर्यात 20% की औसत वार्षिक दर से बढ़ा है।
केंद्र सरकार देश में रक्षा उत्पादन बढ़ाने के लिए लगातार विदेशी निवेश आकर्षित करने और घरेलू टैलेंट को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है।
इसके अतिरिक्त, सरकार लगातार सेना और निर्माताओं के बीच के सहयोग को भी बढ़ाने के प्रयास कर रही है जिससे सेनाओं की जरूरतों को समझ कर नए उत्पाद बनाए जा सकें।
रक्षा उत्पादन में वृद्धि भारत के लिए एक सकारात्मक विकास है। यह आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने, नए रोजगार पैदा करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करेगा। सरकार को घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाते रहना चाहिए, क्योंकि इससे भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने और देश को और अधिक आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी।
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