यह विषय लिख लाख कर लोग थक चुके हैं, फिर मैं क्यों इसे उठा रहा हूँ?
क्योंकि मुझे बिकिनी पसंद है। अच्छे फिगर की लड़कियों पर, सही कॉन्टेक्स्ट में मुझे यह सुंदर परिधान लगता है।
बिकिनी मूलतः अंग प्रदर्शन का परिधान नहीं है, यह सी-बीच को, समुंदर की लहरों को, रेत को, धूप को एन्जॉय करने का परिधान है। अगर शारीरिक सौष्ठव हो तो यह सुंदर लगता है, लेकिन सबको सूट नहीं करता।
अगर आप एक खुले समाज में सी-बीच पर जाएँ तो आपको सुंदर, असुंदर, दुबली, मोटी, युवा और बूढ़ी… हर महिला बिकिनी में ही दिखेगी। उसका सेक्स अपील से उतना ही संबंध है, जितना किसी अन्य परिधान का। आपको अगर सी-बीच पर बिकिनी कामोत्तेजक परिधान लगता है, तो आप उस समाज में एक बीमार व्यक्ति, एक पोटेंशियल सेक्स ऑफेंडर गिने जाएँगे।
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अब आते हैं दीपिका की बिकिनी पर, मैं यह झूठ नहीं बोलूंगा कि मुझे दीपिका बिकिनी में अच्छी नहीं लगी। यह भी नहीं बोलूंगा कि (अन्य पुरुषों की ही तरह ही) मैंने उसके बिकिनी सीन को रिवाइंड करके नहीं देखा। हाँ, अगर आपने इतनी पब्लिसिटी नहीं दी होती तो नहीं देखा होता, बहुत से नूरा फतेही के विडियोज हैं, जिनके बारे मुझे मालूम नहीं था और मैंने नहीं देखे थे। जबकि नूरा फतेही किसी भी दिन दीपिका पर बाईस पड़ती है और अगर दीपका के वीडियो को तीन बार रिवाइंड किया तो नूरा कम से कम पाँच बार रिवाइंड किया जाना डिजर्व करती है, तो हमारे विरोध ने दीपिका की विजिबिलिटी बढ़ाई ही है।
फिर दीपिका का विरोध कैसे करें? क्यों करें?
अरे, वह दीपिका है… लिबरल भारत तोड़ो गैंग की, जेएनयू के देशद्रोहियों की कॉमरेड है। ख़ुद को किंग कहने वाले खान के साथ आ रही है। इतना काफी नहीं है क्या? उसके लिए बिकिनी जैसी सुंदर चीज को बीच में लाकर उसे फायदा क्यों पहुँचाना जो कि सबको बहुत पसंद है… उन्हें भी, जो इसे नफरत की नजर से बार बार देख रहे हैं।
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बॉलीवुड बी ग्रेड सिनेमा है, जो अपने को अपग्रेड करके सी ग्रेड बनने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इस दिशा में अभी बहुत प्रयास जरूरी हैं, इंटरनेट की दुनिया है, सब कुछ फ्री डेटा के साथ मुफ्त अवेलेबल है।
बॉलीवुड को पोर्न-हब और रेडट्यूब से जबरदस्त कॉम्पिटिशन है। दीपिका जैसियों को बहुत मेहनत करने की जरूरत है। उन्हें बिकिनी जैसे सुंदर परिधान की सीमाओं से बाहर आना होगा, बॉयकॉट तो होगा… पर मैसेज सही जाना चाहिए। दीपिका से शिकायत है, वह अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी, आखिर कब तक हम शरोन स्टोन को रिवाइंड कर कर के देखते रहेंगे?
यह व्यंग्य ‘विषैला वामपन्थ’ पुस्तक के लेखक डॉ राजीव मिश्रा द्वारा लिखा गया है