एकात्म मानववाद के प्रणेता और भारत के नवनिर्माण नहीं बल्कि पुनर्निर्माण की अलख जगाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म आज यानि 25 सितम्बर, 1916 के दिन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में हुआ था। ब्रज भूमि में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय आगे चलकर भारतीय जनसंघ से जुड़े और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संगठनकर्ता भी रहे।
पंडित दीनदयाल समाजवाद और साम्यवाद के समर्थक कभी नहीं रहे। उनका मानना था कि यह सिद्धांत भारतीय समाज के अनुरूप नहीं है। हिंदुत्व के प्रबल समर्थक पंडित दीनदयाल को दिसंबर 1967, को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया।
शिक्षा
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राजस्थान के पिलानी से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया था। इसके बाद वर्ष 1939 में सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से स्नातक की डिग्री ली थी अंग्रेजी के लिए उन्होंने सेंट जॉन कॉलेज, आगरा में आवेदन किया था। हालाँकि, वो यह डिग्री नहीं ले पाए थे।
वर्ष 1937 में स्नातक की पढ़ाई के दौरान पंडित दीनदयाल अपने मित्र बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए। एमए की पढ़ाई के लिए जब वो आगरा पहुँचे तो आरएसएस में सेवा देने लगे। यहीं उनकी पहचान नानाजी देशमुख और भाउ जुगड़े से हुई थी।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
समाज के पुनरुत्थान के लिए काम करने वाले पंडित दीनदयाल ने शिक्षा लेने के बाद नौकरी की नहीं देश सेवा की राह को अपनाया। पढ़ाई छोड़ने के साथ ही वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक बन गए थे।
वर्ष 1942, में वो आरएसएस के 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर गए थे, यहीं वो आरएसएस के आजीवन प्रचारक भी बने। समाज भारतीय परंपरा और संस्कृति के अनुसार हो और राष्ट्रवाद के इस छवि को साकार करने के लिए उन्होंने आरएसएस के कार्यों में स्वयं को समर्पित कर दिया था।
भारतीय जनसंघ की स्थापना
वर्ष 1951, में भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी, जिसमें पंडित दीनदयाल को पहले महासचिव के रूप में नियुक्त किया था। दीनदयाल उपाध्याय अपने समर्पण और निष्ठा के जरिए 1967 तक इस पद पर बने रहे। उनके काम से प्रभावित होकर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था “अगर मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूँ”
हालाँकि, वर्ष 1953 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया और संगठन की संपूर्ण जिम्मेदारी पंडित दीनदयाल पर आ गई। भारतीय जनसंघ के वर्ष 1967 में कालीकट में हुए 14वें अधिवेशन में अध्यक्ष पर पर उन्हें निर्वाचित किया गया।
एकात्म मानववाद
पंडित दीनदयाल एकात्म मानववाद के प्रणेता रहे। दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ पंडित दीनदयाल ने एकात्म मानववाद का मॉडल प्रस्तुत किया था, जिसका आधार स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल था, जिसके विकास के केंद्र में मानव है।
पूंजीवादी व्यक्तिवाद और मार्क्सवादी समाजवाद के पंडित दीनदयाल विरोधी थे। उन्होंने हमेशा आधुनिक तकनीक और पश्चिमी विकास का स्वागत किया था। हालाँकि, समाजवाद के समर्थक उन्हें रूढ़िवाद से जोड़ कर ही देख पाते हैं। एकात्म मानववाद के रूप में पंडित दीनदयाल भारत की राजनीति और समाज को उस ओर मोड़ने की कोशिश की जो कि सौ फीसदी भारतीय मूल्यों पर आधारित है।
इस वैचारिक दर्शन को उन्होंने मुंबई में 22 से 25 अप्रैल, 1965 चार अध्यायों में दिए भाषण में दिया। इतिहास में अगर किसी ने ‘मानव-मात्र’ पर आधारित चिंतन को दर्शाया है तो वो एकात्म मानववाद है। इसमें दीनदयाल उपाध्याय मानव के संपूर्ण सृष्टि के साथ संबंध पर व्यापक दृष्टिकोण की चर्चा करते हैं एवं वो मानव को विभाजित करके देखने में विश्वास नहीं रखते थे।
दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार, भारतीय समाज को संचालित करने के लिए विदेशी विचार, समाजवाद या साम्यवाद की आवश्यकता नहीं। यह समाज भारतीय दर्शन के रूप में संचालित हो सकता है।
- एकात्म मानववाद में व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन बताया गया है, जो कि व्यक्ति के सम्मानपूर्वक जीवन जीने का आधार है। यह प्राकृतिक संसाधनों के सीमित उपयोग पर जोर देता है।
- एकात्मक मानववाद राजनीति पर ही नहीं, आर्थिक, सामाजिक, लोकतंत्र और स्वतंत्रता की बात करता है। इस के विचार में विविधता विद्यमान है, जो कि भारतीय समाज के लिए उपयुक्त नजर आता है।
- विश्वभर में विकास के मॉडल प्रचलित हैं, हालाँकि, भिन्न परिवेशों में वो एकीकृत और संधारणीय नजर नहीं आते हैं। यहीं पर एकात्म मानववाद की धारणा सामने आती है जो भारतीय समाज के अनुरूप है।
एकात्म मानववाद का उद्देश्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति गरिमापूर्ण जीवन उपलब्ध करवाना है। एक ऐसा जीवन जो ‘अंत्योदय’ पर आधारित है। ‘अंत्योदय’ मतलब समाज की अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का उदय। भारतीय लोककल्याणकारी समाज में ‘अंत्योदय’ की प्रांसगिकता है जहाँ निचले स्तर तक सरकार के कार्य और लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले।
सनातन धर्म से जुड़े पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था
पंडित दीनदयान उपाध्याय ने सनातन विचारधारा पर टिके एकात्म मानववाद को युगों तक प्रासंगिक रहने वाले दर्शन व्यक्त किए। अपनी पुस्तक एकात्म मानववाद (Integral Humanism) में साम्यवाद और पूँजीवाद की आलोचना कर इसे भारतीय समाज के विपरीत बताया। इनका मानना था कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है।
विकेंद्रित व्यवस्था के पक्षधर रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार आज भी प्रासंगिक है। जिस समाजवाद के चंगुल से बाहर निकालने के लिए वे प्रयासरत रहे उसे स्वतंत्रता के बाद आई सरकारों द्वारा संरक्षण दिया गया। समाजवाद ने भारतीय समाज और आर्थिक विकास दोनों को पंगू करने का काम किया।
11 फरवरी 1968 को पंडित दीनदयाल का शव उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे जंक्शन पर मिला। इसे एक सुनियोजित हत्या से जोड़ा जाता है। हालाँकि, इस मामले में व्यवस्थित जाँच सामने नहीं आई है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद इसपर नए सिरे से जाँच किए जाने की बातें सामने आई थी।
यूपी में भाजपा सरकार आने के बाद ही मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा है। इसके साथ ही मोदी सरकार की कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का नाम भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा है, जिसमें दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना है।