आज ही के दिन यानी 11 फरवरी, 1968 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय मृत पाए गए थे। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या किसने की, यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है।
हालांकि इस पर कई क़िस्म की चर्चा समय-समय पर होती रहती हैं। हम इस चर्चा से अलग इस विषय पर बात करेंगे कि जनसंघ से निकली भाजपा ने इतने दशकों बाद भी कैसे दीनदयाल जी के विचारों को प्रासंगिक बनाया हुआ है और कांग्रेस सहित अन्य दल अपने संस्थापकों के विचारों को अग्रणी बनाने में किस स्तर पर है?
कांग्रेस पार्टी जो स्वयं ही सबसे पुरानी पार्टी का तमगा लिए हुए है, इस दावे के अनुरूप कांग्रेस के संस्थापक एओ ह्यूम को वर्तमान राजनीति में कांग्रेस स्वयं ही कहीं याद करते नहीं दिखती है। करे भी कैसे? क्यों कि एओ ह्यूम ने तो कांग्रेस की स्थापना भारत में व्याप्त असंतोष से सुरक्षा हेतु सेफ्टी वाल्व के रूप में की थी।
स्वन्त्रता के पश्चात जवाहरलाल नेहरू ही कांग्रेस का चेहरा बन गए। यही वो समय भी था जब महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के विलय की बात भी सामने रखी थी। हालाँकि नेहरू की पार्टी को ले कर कभी कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं थी, जिसे बचाने का दबाव आज कांग्रेस पर रहे। नेहरू की देन कहा जाने वाला एक पंचशील सिद्धांत अवश्य था, जिसे पंडित नेहरू के नाम से जोड़ा जाता रहा लेकिन समय के साथ उसका परिणाम देखने के बाद इस सिद्धांत को स्वयं उनकी पुत्री ने किनारे कर दिया था।
आजादी के बाद से अब तक कॉन्ग्रेस पार्टी महात्मा गांधी को अपना आदर्श बताने के साथ ही उनके पदचिन्हों पर चलने का दावा करती रही पर व्यवहारिकता में उनके सिद्धांतों और उन पर आधारित योजनाओं का क्रियान्वयन करने में विफल दिखाई दी। हाँ, आवश्यकता पड़ने पर यही कांग्रेस बापू का नाम लेने से कभी नहीं चूकी।
संस्थापकों की विचारधारा दल के लिए इसलिए अहम मानी जाती है क्योंकि दल के आधार के रूप में उसे दिशा दिखाने का काम ये विचार और सिद्धांत ही करते हैं। समय के अनुसार इन विचारों में छोटे बदलाव अवश्य आ सकते हैं लेकिन मूल के साथ टिके रहना ही दल को राजनीति में सफल बनाता है।
इसका उदहारण है भाजपा एवं दीनदयाल उपाध्याय के विचार। पंडित दीन दयाल उपाध्याय राजनीतिज्ञ होने के साथ एक दार्शनिक भी थे। उनका प्रमुख दर्शन एकात्म मानववाद माना जाता है जिसका उद्देश्य एक ऐसा ‘स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल’ प्रस्तुत करना था जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो। अन्त्योदय का सिद्धांत भी इसी से जुड़ा है।
वर्त्तमान में यह तत्व झलकता है केंद्र की भाजपा सरकार की जनकल्याण कारी योजनाओं में। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन पहुँचाना हो या अंतिम व्यक्ति तक घर-जल पहुँचाना, इन सबका आधार पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद का दर्शन ही है।
दीनदयाल जी ने पश्चिमी पूंजीवाद एवं ‘मार्क्सवादी समाजवाद’, दोनों का विरोध किया लेकिन आधुनिक तकनीक एवं पश्चिमी विज्ञान का स्वागत किया। उनका कहना था कि एक सबल राष्ट्र ही विश्व को योगदान दे सकता है। वर्तमान भारत सरकार ने कोरोनाकाल में इस विचार को अच्छे तरीके से प्रतिफलित किया जब भारत ने दवा और कोविड वैक्सीन भेजकर कई राष्ट्रों की मदद की। यही सिद्धांत हाल के ऑपरेशन दोस्त में भी लागू हो रहा है जो तुर्किये में आये भूकंप के बाद राहत कार्यों में मदद कर रहा है।
वहीं पंडित उपाध्याय के एक अन्य विचार के अनुसार देश के आर्थिक विकास का आधार खेती है। भाजपा पर किसान-विरोधी होने के आरोप भले लगते रहे, सरकार ने कृषि सुधारों पर फोकस करने का प्रयास किया पर देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार ये सुधार वापस लेने पड़े। हाल के बजट में सरकार ने ऑर्गेनिक खेती और श्रीअन्न (मोटे अनाज) पर काफी फोकस किया है। बजटीय घोषणाओं की किसानों तक पहुंचाने के लिए छह से 12 फरवरी तक देशभर में किसान चौपाल भी आयोजित की जायेगी।
श्रीअन्न: ताकि ‘गरीब के अनाज’ से भरे हर भारतीय का पेट
अन्य राजनीतिक दल अपने संस्थापकों के सिद्धांतों को लागू करने की तुलना में कहाँ पाए जाते हैं? सबसे नया दल आम आदमी पार्टी जिसका जन्म ही ‘राजनीति बदलने’ को लेकर हुआ था। यह दल हर दिन भ्रष्टाचार को लेकर ख़बरों में बना रहता है। यहां तक कि इस दल की राज्य सरकारों के कई मंत्री भी भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त हो चुके हैं।
“आम आदमी” का सबसे ताजा उदाहरण यह है कि एक खबर के अनुसार पंजाब के सीएम भगवंत मान की पत्नी गुरप्रीत कौर मान की सुरक्षा 15 पुलिस वालों की जगह अब 40 पुलिस वाले करेंगे। इस दल के गठन की प्रेरणा रहे अन्ना हजारे आज कहाँ हैं यह स्वयं केजरीवाल को भी नहीं मालूम।
ऐसे ही समाजवादी पार्टी, आरजेडी और जेडीयू का आकलन भी किया जाना चाहिए, जो लोहिया और जेपी के सिद्धांतों पर चलने का दावा करते हैं। लेकिन इस दल के नेताओं ने उनके समाजवाद को ‘मसाजवाद’ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सामाजिक न्याय की आड़ में बिहार राजनीतिक प्रशासनिक विफलता का ऐसा मॉडल बना जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई। वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तो सिर्फ एक परिवार की सत्ता तक ही सीमित रह गई।
यह भी पढ़ें: लोहिया के समाजवाद से मसाजवाद की ओर बढ़ते राजनीतिज्ञ
ऐसे ही एक अन्य दल तृणमूल कांग्रेस की ओर नजर घुमाएं जिसने लेफ्ट की हिंसा को अपनी राजनीति का आधार बनाया। आज वही तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में हिंसा की एक नई कहानी लिख रही है। राजनीतिक लाभ के लिए राजनीतिक हिंसा भड़काना और धर्म के आधार पर द्वेष ही आज तृणमूल कांग्रेस का अस्तित्व है।
इन सभी राजनीतिक दलों और उनकी नीतियों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि भले ही आज दीनदयाल उपाध्याय व्यवाहारिक रूप में एक चेहरे के तौर पर दल के स्टार प्रचारक नहीं हैं लेकिन उनके सिद्धांतों का पालन कर भाजपा ने उन्हें आज भी जीवित बनाये रखा है। शायद यही कारण भी है कि भाजपा 2 लोकसभा सीटों से आगे निकल कर आज विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन चुकी है।