कोई भी राष्ट्र हो, उसकी एक अलग नीति होती है, होनी चाहिए। भारत इस मामले में अभागा था कि लगभग 7 दशकों तक यह बस पिछलग्गू बना रहा। भले ही नेहरूवादी समाजवाद ने गुटनिरपेक्षता का पुछल्ला ताना हुआ था, लेकिन वह बस कहने को ही था। हमारे पहले प्रधानमंत्री चूँकि मन से यूरोपियन ही थे, इसलिए उन्होंने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया जो भारत को एक संप्रभु राष्ट्र की तरह अन-औपनिवेशिक (यानी डी-कोलोनाइज) कर सके, हमारी समृद्ध विरासत को सामने ला सके।
धन्यवाद दीजिए 2014 के बाद की सरकार का, जिसने औपनिवेशिक संस्कृति के प्रतीकों को एक के बाद एक ढहाना शुरू किया। जी हाँ, हम आपको बाकायदा प्रधानमंत्री मोदी के उन 7 फैसलों को बताएँगे, जिनसे राजनीति राष्ट्रनीति बन गई।
तो, शुरू करते हैं:
1. राजपथ का नाम बदलना और सुभाष बाबू की मूर्ति लगाना
8 सितंबर 2022 को पीएम मोदी के एक फैसले ने गुलामी की शताब्दी पुरानी निशानी को बदल दिया। राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ कर दिया गया। ये वही राजपथ है जो कभी किंग्स्वे कहा जाता था।
कर्तव्य पथ का दायरा रायसीना हिल्स पर बने राष्ट्रपति भवन से शुरू होता है और विजय चौक, इंडिया गेट, फिर नई दिल्ली की सड़कों से होते हुए लाल किले पर खत्म हो जाता है। हरेक साल 26 जनवरी की परेड इन्हीं सड़कों पर होती है। इसके साथ ही इंडिया गेट पर उसी जगह सुभाष बाबू की 28 फीट ऊंची और 65 मीट्रिक टन वजनी प्रतिमा भी स्थापित की गई, जहाँ 23 जनवरी 2022 को पराक्रम-दिवस के अवसर पर नेताजी की होलोग्राम की प्रतिमा रखी गई थी।
ये फैसला भारत को अन-औपनिवेशिक करनेवाली दिशा में एक मील का पत्थर था।
2. बीटिंग रिट्रीट की धुन को बदलना
इसी साल यानी 2022 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने बीटिंग रिट्रीट की धुन को भी बदल दिया। कमाल की बात यह थी कि पूरे 7 दशकों तक किसी को यह समझ में नहीं आया कि हम अपने गणतंत्र दिवस के समाप्ति-समारोह में भला ‘अबाइड विद मी’ की धुन क्यों बजाते हैं? यह धुन ब्रिटिश क्वीन एलिजाबेथ की शादी के समय बजाई गई थी। हालाँकि, 1952 से ही गणतंत्र दिवस समारोह में सारे धुन ही ब्रिटिश रहते थे। यह नेहरू जी की अतिशय सदाशयता और यूरोपियन मेक का होने को दिखाता है।
आपको बता दें कि बीटिंग रिट्रीट चार दिवसीय गणतंत्र दिवस समारोह का आखिरी दिन होता है, जब सैन्य बैंड अपनी धुनों के साथ परेड करते हैं और इस समारोह का समापन होता है।
3.नौसेना का बदला झंडा
इसी साल यानी 2022 में 2 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय नौसेना के नए निशान का अनावरण किया। इस नए निशान से गुलामी का प्रतीक भी हटा दिया गया है। अभी तक नौसेना के ध्वज पर सेंट जॉर्ज का क्रॉस होता था, उसे हटाकर अब वहाँ भारतीय प्रतीक शिवाजी की शाही मुहर को लगा दिया गया है। साथ ही वैदिक मंत्र ‘शं नो वरुणः’ यानी समुद्र के देवता वरुण हमारे ऊपर कृपा करें को वहाँ लगाया गया है। यह भी पिछले 7 दशकों से चली आ रही औपनिवेशिक भूल थी।
4. वित्तमंत्री का फिर से बहीखाता उठाना
2019 में प्रधानमंत्री मोदीनीत सरकार की वित्तमंत्री ने बजट का ब्रीफकेस उठाना बंद किया और बहीखाता लेना शुरू किया। यह भारतीय वित्तीय परंपरा को बढ़ावा देना है। हमारे यहाँ आज भी दीपावली के दिन हरेक दुकानदार अपने बही-खाते को बंद कर नया खाता शुरू करता है। यह सांस्कृतिक अध्यारोपण मोदी से ही संभव था।
5. अंदमान के तीन द्वीपों का नाम बदलना
अंदमान के तीन द्वीपों का नाम ब्रिटिश जनरल के नाम पर था, जिन्हें मोदीनीत सरकार के दौरान बदला गया। ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी रॉस के नाम पर जो रॉस आइलैंड था, उसे बदलकर बोस द्वीप किया गया। ब्रिटिश ब्रिगेडियर नील के नाम पर जिस द्वीप का नाम था, उसे बदलकर शहीद द्वीप का नामकरण हुआ और जिस हैवलॉक द्वीप को एक और ब्रिटिश जनरल हेनरी हैवलॉक के नाम पर रखा गया था, उसे बदलकर स्वराज द्वीप रखा गया है।
आपको क्या लगता है, प्रिय पाठकों? ये केवल संकेत और प्रतीक हैं या एक बड़े सांस्कृतिक जागरण का चिह्न?