वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में पिछले 12 महीनों की समान अवधि की तुलना में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में गिरावट आई है। Q1 FY24 में कुल FDI प्रवाह 34% गिरकर $10.94 बिलियन हो गया, जो FY23 की पहली तिमाही में $16.59 बिलियन था।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भारत में गैर-ऋण वित्तीय प्रवाह का एक प्रमुख स्रोत है और देश के औद्योगीकरण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में एफडीआई प्रवाह में वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरावट देखी गई।
उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों (DPIIT) के अनुसार, कुल एफडीआई, जिसमें पुनर्निवेश आय, ताजा इक्विटी, और अन्य पूंजी शामिल है, वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में गिरकर 17.56 बिलियन डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 22.34 बिलियन डॉलर था। 3 अरब डॉलर के निवेश के साथ सिंगापुर शीर्ष निवेशक देश रहा। उसके बाद 1.5 अरब डॉलर के साथ नीदरलैंड था। इस दौरान मॉरीशस, सिंगापुर, अमेरिका और यूएई से एफडीआई में गिरावट दर्ज की गई।
जिन प्रमुख क्षेत्रों में एफडीआई में गिरावट दर्ज की गई उनमें व्यापार, फार्मास्यूटिकल्स, कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर तथा ऑटोमोबाइल शामिल हैं। दूसरी ओर, निर्माण गतिविधियों (बुनियादी ढांचे) और सेवाओं ने अधिक विदेशी निवेश आकर्षित किया। राज्यों में, महाराष्ट्र, दिल्ली और कर्नाटक को सबसे अधिक एफडीआई प्राप्त हुआ। पहली तिमाही में गिरावट का श्रेय भू-राजनीतिक तनाव, बढ़ती ब्याज दरों और मुद्रास्फीति के दबाव से उत्पन्न वैश्विक अनिश्चितताओं को दिया जा सकता है।
एफडीआई में गिरावट के प्रमुख कारण क्या हो सकते हैं? क्यों अप्रैल-जून 2023 के दौरान भारत में एफडीआई प्रवाह में गिरावट देखी गई :—
सबसे पहले अगर FDI के प्रमुख कारण पर नजर डालें तो अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि इसका सबसे बड़ा कारण है क्योंकि पिछली 4 तिमाहियों में, यूएस फेड द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी से अमेरिका में रिटर्न बढ़ा, जिससे विदेशी निवेश कम आकर्षक हो गया। इससे अमेरिका से बाहर जाने वाली एफडीआई पर बड़ा असर पड़ा है।
एक कारण यह भी है कि भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक मंदी के कारण वैश्विक अनिश्चितताओं ने निवेशकों की जोखिम उठाने की क्षमता को कम कर दिया।
भारत में रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में कड़े मानदंड, उच्च कर और धीमी वसूली की वजह से FDI पर असर डाला है।
आसान विदेशी धन प्रवाह कम होने से भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम को फंडिंग की कमी का सामना करना पड़ रहा है और इसका असर भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम पर पिछले कई तिमाही से दिखाई भी दे रहा है। देखा जाए तो वर्तमान में केवल व्यवहार्य स्टार्टअप ही निवेश आकर्षित कर पा रहे हैं।यानी की जिन स्टार्टअप में योग्यता होंगी केवल वे ही स्टार्टअप FDI पा सकेंगे।
एफडीआई में आने वाली इस कमी के परिणामस्वरूप पहले से चल रहे प्रोजेक्ट, खासकर स्टार्टअप सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था FDI का एक बड़ा और आकर्षक केंद्र रही है। ऐसे में प्रवाह कम होने से भारतीय कंपनियों की निवेश योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। उद्योग के आधुनिकीकरण और उसके विस्तार के लिए बनाई गई योजनाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और उनकी प्रगति धीमी हो सकती है। इसका असर मध्यम से दीर्घकालिक विकास को प्रभावित कर सकता है।
कम एफडीआई का मतलब है देश में कम अमेरिकी डॉलर आना, जिससे रुपये पर दबाव पड़ेगा और भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आएगी। ऐसे समय में मौद्रिक अस्थिरता का प्रबंधन अर्थव्यवस्था के सभी स्टेकहोल्डर के लिए एक चुनौती होगी।
विदेशी पूँजी के समर्थन के बिना श्रमिकों का प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन भी धीमा हो सकता है। इसके साथ ही कम एफडीआई प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुसंधान एवं विकास सहयोग को सीमित करके वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की स्थिति को बाधित कर सकता है। ऐसे में निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए मजबूत उपायों की जरूरत होगी। सरकार को आने वाली तिमाहियों में अधिक विदेशी पूंजी आकर्षित करने के लिए सुधारों और अधिक अनुकूल कारोबारी माहौल विकसित करने पर ध्यान देना होगा।
ऐसे स्तिथि में भारत को अपनी सूझ–बूझ और नई नीतियों से विनिर्माण क्षमता में सुधार पर स्पष्ट ध्यान केंद्रित करना चाहिए। साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिए अधिक व्यापार अनुकूल आर्थिक नीतियों के साथ-साथ प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर में सुधार से भारत इस समस्या से निकल कर के आने वाले वर्ष में बड़े पैमाने पर वैश्विक मंदी के बीच खड़े होने में अपने आप को सक्षम बना सकता है।