कनाडा के ब्रैम्पटन में बीते रविवार को हिंदू मंदिर में पहुंचे लोगों पर खालिस्तानी समर्थक आतंकियों ने हमला कर दिया। हमलावरों के हाथों में खालिस्तानी झंडे थे और उन्होंने मंदिर में मौजूद हिन्दुओं पर लाठी-डंडे बरसाए। कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इसकी निंदा तो की मगर इन आतंकियों पर कार्रवाई के बदले पुलिस से हिन्दुओं को ही अरेस्ट करने को कहा।
कनाडा में हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ और मारपीट की घटना पर भारत ने चिंता जताई और ओटावा में भारतीय उच्चायोग ने इसे लेकर बयान भी जारी करते हुए कहा कि हिंदू सभा मंदिर में भारत विरोधी तत्वों ने ‘जानबूझकर’ हिंसा की।
इस घटना के बाद से जहाँ हर कोई कनाडा में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए चिंतित है, उसी समय अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) ने एक कॉलम प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने ख़ालिस्तानी आतंक और इसके इतिहास को दफन करते हुए भारत से ही कई सवाल पूछे हैं। इस लेख का शीर्षक है “Sikh Activists See It as Freedom. India Calls It Terrorism.”
यानी कि “सिख एक्टिविस्ट जिसे स्वतंत्रता के रूप में देखते हैं, भारत उसे आतंकवाद कहता है।” लेकिन न्यूयॉर्क टाइम को ये जानने की भी आवश्यकता है कि खालिस्तान की मांग सिर्फ एक ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ नहीं बल्कि भारत की संप्रभुता के लिए भी खतरा रहा है।
इस लेख में कई किस्म के दुराग्रह को स्थापित करने का प्रयास करते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि भारत उत्तरी अमेरिका स्थित खालिस्तान आतंकवादियों को ‘आतंकवादी’ बताकर आतंकवाद की परिभाषा को बहुत व्यापक रूप दे रहा है। यही नहीं, अमेरिकी अखबार ने यहाँ तक आरोप लगा दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी छवि चमकाने के लिए ‘खालिस्तान कार्ड’ का उपयोग कर रहे हैं।
इस पूरे लेख को पढ़ने पर मगर कहीं भी खालिस्तान-जनित आतंकवाद या उनकी हालिया धमकियों तक का भी उल्लेख नहीं मिलता है, जिनमें उन्होंने हर रोज भारतीय विमानों को उड़ाने की चेतावनी जारी की हैं। इसमें साल 1985 के एयर इंडिया बम विस्फोटों में 331 लोगों की मौत भी शामिल है, जिसके बारे में स्पष्ट रूप से यह स्थापित सत्य है कि इसे हमले को कनाडाई खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने ही अंजाम दिया था। यह तो पुरानी घटना है लेकिन इस लेख में हाल ही में एयर इंडिया उड़ानों को लेकर खालिस्तान समर्थक आतंकी और अमेरिका में बैठे गुरपतवंत सिंह पन्नुन की धमकियों को भी सामने नहीं रखा गया है लेकिन उसके बयानों को इसने जरूर अपने इस प्रोपगंडा आर्टिकल में जगह दी है।
अगर आपको पाकिस्तान की एक पुराने आर्मी चीफ जिया उल हक़ की भारत को कई जख्म देने और कई हिस्सों में तोड़ने वाली लाइन याद हो तो उसमें जो 2 ‘K’ शामिल हैं उसमें कश्मीर के साथ खालिस्तान का भी नाम है। यानी यहाँ कोई बहुत ज्यादा दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है कि कैसे डीप स्टेट पाकिस्तान के सहयोग से खालिस्तान जैसे मुद्दे को भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा करने के लिए प्रयोग कर रहा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स के इस लेखक को खालिस्तान के गठन का खूनी इतिहास और उसके इरादों के साथ-साथ ये भी याद रखना चाहिए कि खालिस्तान आंदोलन शुरुआत से ही भारत की संप्रभुता के खिलाफ आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देता आ रहा है। जिसमें 1995 में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की आत्मघाती बम विस्फोट से हत्या भी इसी का एक हिस्सा रहा है।
खालिस्तान समर्थक गिरोहों ने आम नागरिकों के खिलाफ भयानक अत्याचार किए हैं, जैसे कि 1991 का ट्रेन नरसंहार, इस नरसंहार में 74 लोगों की हत्या कर दी गई थी। हिन्दू बस यात्रियों की हत्या और घरों में घुसकर महिलाओं के साथ नियमित बलात्कार के कारनामे भी इसी खालिस्तान की मांग करने वालों ने किए हैं।
खालिस्तान का समर्थन करने वाले आतंकवादियों में कुछ प्रमुख नाम सुनिए – पाकिस्तान का वधावा सिंह बब्बर और परमजीत सिंह, जो कि यूके में रहता है, ये बब्बर खालसा इंटरनेशनल का नेतृत्व करते हैं। पाकिस्तान का लखबीर सिंह इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का प्रमुख है, जबकि रणजीत सिंह पाकिस्तान से खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (केजेडएफ) का नेतृत्व करता है।
इसी नेटवर्क का हिस्सा जर्मनी में भूपिंदर सिंह भिंडा और गुरमीत सिंह बग्गा हैं जो KZF के प्रमुख सदस्य हैं। खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) का प्रमुख कनाडा में रहने वाला हरदीप सिंह निज्जर था और गुरपतवंत सिंह पन्नून खालिस्तान समर्थक गिरोह सिख फॉर जस्टिस से जुड़ा है। इसके साथ ही ये वैश्विक खालिस्तानी चरमपंथी नेटवर्क का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
अब अगर न्यूयॉर्क टाइम्स के आर्टिकल पर लौटें, जिसमें कि उन्होंने खालिस्तान समर्थकों की मांग को स्वतंत्रता आंदोलन साबित करने का प्रयास किया है तो उन्हें इन तथ्यों पर भी एक नजर डालनी चाहिए। साथ में ये भी याद रखना चाहिए कि ऐसे लेख लिखकर न्यूयॉर्क टाइम्स उन मासूमों की मौत का भी मजाक बना रहा है जिनकी जान इन खालिस्तान समर्थक आतंकियों ने ली है। यदि कोई संगठन कई सालों से निरंतर आम लोगों की जान के लिए खतरा पैदा कर रहा हो, धमकियां जारी कर रहा हो और किसी देश की सम्प्रभुता के लिए खतरा बना हुआ हो तो न्यूयॉर्क टाइम्स को उसे स्वतंत्रता का आंदोलन करने वाला संगठन नहीं बल्कि आतंकवादी संगठन कहना चाहिए, लेकिन शायद न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए ऐसा कह पाना संभव नहीं है क्योंकि एक तो ये आतंकवाद भारत के खिलाफ है और दूसरा इसलिए कि ये अखबार भी उसी देश के लिए काम करता है, जिसने इन आतंकियों को शरण देने के साथ-साथ उनकी नाजायज मांगों को भी किसी हद तक सही माना है। डीप स्टेट जो चाहता है, वो काम खालिस्तान समर्थक भारत के सन्दर्भ में कर रहा है और ऐसे में न्यूयॉर्क टाइम्स से कुछ और उम्मीद करना बेईमानी ही होगी।