क्राउडफंडिंग शब्द जितना मददगार सुनाई देता है, हाल में कुछ लोगों ने उसके पीछे के महत्व को उतना ही गौण बना दिया है। मदद एवं परोपकार के उद्देश्य के लिए बने इस शब्द की महिमा का जिस स्तर पर गलत प्रयोग किया गया है, वह उन लोगों के लिए आँखें खोलने वाला है जो इस माध्यम से पैसे इकठ्ठा करने वालों को दान देते हैं।
हाल ही में ममता बनर्जी की पार्टी के प्रवक्ता और तथाकथित आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले को क्राउडफंडिंग के माध्यम से एकत्र किए गए धन के कथित दुरुपयोग के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। इसी तरह के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने पत्रकार राणा अय्यूब के खिलाफ एक मामला दर्ज किया है। राणा अय्यूब पर आरोप है कि उन्होंने चैरिटी के नाम पर आम जनता से लिए 2.69 करोड़ रुपये की भारी भरकम रकम में से अधिकतर अपने निजी ऐशो आराम पर खर्च कर दी।
चैरिटी के दम पर अपनी निजी जिंदगी संवारने वाले ये दो ही एक्टिविस्ट नहीं है। ऐसे लोगों की सूची लंबी होने के साथ ही इस बात का अहसास करवाती है कि मानवता के कल्याण के नाम पर किस तरह निजी फायदे के लिए काम किया जा रहा है। अपने चैरिटी प्रोग्राम को मानवता की भलाई के लिए बताने वाले ये कार्यकर्ता न सर्फ मदद को लोगों तक पहुँचाने में नाकाम रहे हैं बल्कि जो मदद लोगों तक अन्य संगठन पहुँचा रहे हैं उनपर चोट करने से भी नहीं चूकते।
धरातल की बात करें तो वर्तमान में इन एक्टिविस्ट का कार्य विस्तार इस तरह फैलाव लिए हुए हैं कि जनमानस तक इनके दिखावे के अलावा कुछ पहुँच ही नहीं पाता। हालाँकि इनकी जड़ों को जरा सा कुदेरा जाए तो इनके कारनामे सामने आने लगते हैं।
साकेत गोखले
साकेत गोखले राहुल गांधी के करीबी रहे हैं और आज टीएमसी के सदस्य हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक पृष्ठभूमि का प्रयोग निजी हित के लिए आराम से किया है। क्राउडफंडिंग वेबसाइट जैसे OurDemocracy.in और Razorpay (रेजरपे) का उपयोग करके TMC नेता ने लगभग ₹1.04 करोड़ जुटाए। गोखले ने ‘फाइट विद आरटीआई’, ‘साकेत बनाम मोदी’ और ‘जस्टिस फॉर सुहास गोखले’ नाम से तीन अभियान चलाए।
साकेत गोखले ने पैसे एक कथित तौर पर आरटीआई और सामाजिक कार्यकर्ता के नाम से RTI अधिनियम का प्रयोग करके जानकारी एकत्र करने के नाम पर जुटाया। ईडी के अनुसार उन्होंने उक्त काम पर केवल 4000 रुपये खर्च किए और करीब 4 लाख रुपये शराब और खाने पर खर्च किए। साथ ही उन्होंने लगभग 23.54 लाख रुपये विभिन्न अवसरों पर शेयर बाजार में ट्रेडिंग पर गंवा दिए।
राणा अय्यूब
राणा अय्यूब के बारे में सब जानते हैं कि किस तरह इस्लामोफोबिया शब्द का इस्तेमाल कर इन्होंने अपने घर की रोटियां सेकी हैं। राणा अय्यूब की कथित पत्रकारिता ने तो कोरोना महामारी की आपदा में अवसर खोज निकाला था जिसका उन्होंने जमकर फायदा उठाया।
इस कथित पत्रकार ने महामारी के दौरान असम, बिहार और महाराष्ट्र में झुग्गीवासियों, किसानों और राहत कार्यों के नाम पर लगभग 2.7 करोड़ रुपये जुटाए। ईडी के अनुसार उसने कथित तौर पर राहत कार्य के लिए 29 लाख रुपये खर्च किए, और बाकी अपने और परिवार के सदस्यों के नाम पर बैंक के फिक्स्ड डिपाजिट में इन्वेस्ट किये। साथ ही उन पर एफसीआरए अधिनियम के तहत अवैध रूप से विदेशों से योगदान प्राप्त करने का आरोप है।
तीस्ता सीतलवाड़
प्रोपगेंडा फैलाने और निजी हितों के लिए काम करने को लेकर इनका नाम सबसे पहले लिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। गुजरात दंगों के नाम पर इनके द्वारा फैलाए झूठों का बोझ लंबे समय तक समाज में फैला रहा।
गुजरात पुलिस के अनुसार तीस्ता और उनके पति पर 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए जमा की गई धनराशि में भारी धोखाधड़ी और गबन का आरोप है और इस विषय में न्यायलय में मुकदमा भी चल रहा है। पुलिस के हलफनामे के अनुसार 2008-2013 के दौरान प्राप्त धन का 45% सीतलवाड़ और उनके पति द्वारा सबरंग कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड के स्वामित्व में इस्तेमाल किया गया था।
तीस्ता ने इन वर्षों में जो धन एकत्र किया वह स्पष्ट नहीं है पर इसके साथ उनपर गुलबर्ग सोसाइटी सहित अन्य घोटाले के आरोप भी लगे हैं। वर्ष 2013 में मुस्लिम समाज के लोग ही यह कहते हुए सार्वजनिक रूप से सामने आए कि तीस्ता ने पुनर्वास पर कुछ भी खर्च नहीं किया और गुलबर्ग सोसाइटी को संग्रहालय में परिवर्तित करने का अपना वादा भी नहीं निभाया।
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उन पर और उनके पति पर 2002 के दंगों के बारे में झूठी कहानियां गढ़ने का भी आरोप है। सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता वाली एक एसआईटी में यह पाया गया कि कई घटनाओं को गढ़ा गया था और झूठे गवाहों को काल्पनिक घटनाओं के खिलाफ सबूत के तौर पर सिखाया गया था।
हर्ष मंदर
क्राउड फंडिग के इस खेल में पत्रकार और राजनीतिज्ञ ही नहीं ब्यूरोक्रेटस भी पीछे नहीं है। वर्ष 2021 में रिटायर्ड IAS अफसर और तथाकथित सोशल और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हर्ष मंदर के घर और NGO ऑफिस पर ED द्वारा मनी लॉन्डरिंग की जांच करने की प्रक्रिया में छापे मारे गए।
मंदर उम्मेद अमन घर (लड़के) और खुशी रेनबो होम (लड़कियां) द्वारा चलाए जा रहे दो एनजीओ निशाने पर थे क्योंकि संस्था ने उनकी फंडिंग के स्रोत और अन्य दस्तावेजों का खुलासा करने से इनकार कर दिया था। मंदर जॉर्ज सोरोस द्वारा स्थापित ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन के एक सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं, जो विदेशी सरकारों को अस्थिर करने के लिए काम करने वाले संगठनों को अनुदान देने के लिए जाने जाते हैं।
इसके साथ ही वे क्विल के एक प्रमुख सदस्य भी हैं जो भारत में इस्लामोफोबिया की झूठी कहानी फैलाता है। उन पर दिल्ली के दंगों में सक्रिय भूमिका और उनके द्वारा चलाए जा रहे एनजीओ में होने वाले यौन शोषण का भी आरोप है। साथ ही वे एक इतालवी संगठन के सदस्य हैं जो इतालवी गुप्त सेवा के साथ मिलकर काम करता है।
सामाजिक कार्यकर्ता बताकर मानवता का कल्याण करने की कसमें खाने वाले ये एक्टिविस्ट समाज में भ्रांतियां तो फैला ही रहे हैं, साथ ही इससे कमाई का जरिया भी ढूंढ़ लिया है। शबनम हाशमी की बात करें तो उनके पास कोई कमाई का जरिया न होने के बाद भी वो कई विदेशी दौरे करती रहती हैं। मोदी विरोधी एवं एंटी-राइट कार्यक्रमों को वो फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर चलाती है। ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि इतने रकम उन्हें मिल कहाँ से रही है।
शबनम द्वारा ANHAD’s फाउंडेशन चलाया जाता है जिसकी फंडिंग संदिग्ध होने के कारण गृह मंत्रालय ने इसे हटा दिया है। अनहद को 1,65,25,433 रुपए का विदेशी चंदा मिला था। ईसाई सहायता इस वर्ष में लगभग 84 लाख रुपये के दान के साथ फिर से मुख्य दानकर्ता था। 2011 और 2010 दोनों में OXFAM भी ANHAD के प्रमुख दानदाताओं में से एक था।
दिलचस्प बात यह है कि एक्शन-एड इंडिया भी अनहद के प्रमुख दानदाताओं में से एक है। हमने एक्शन-एड संघों के फंडिंग विवरणों तक पहुंच बनाई और पाया कि उसी वर्ष एक्शन एड को एक एकल दाता – गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा “अन्य पिछड़े वर्ग के कल्याण” के लिए 46053800 रुपये का दान दिया गया था।
इस सूची में हम मेधा पाटकर को किस प्रकार नजर अंदाज कर सकते हैं। ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ केपीछे काम करने वाली ये कार्यकर्ता ‘आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने के नाम पर धन का दुरुपयोग’ करने के आरोप झेल चुकी है। पाटकर द्वारा ₹13 करोड़ से अधिक का गबन करने की बात सामने आई है और 2002 से 2022 के बीच सभी दान के लिए कोई खाता नहीं है। ऐसा करने के लिए ‘नर्मदा नवनिर्माण अभियान’ फाउंडेशन का इस्तेमाल किया गया। उन पर सरकार विरोधी भावनाओं को भड़काने का भी आरोप है।
मेधा पर ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के दौरान मनी लॉन्ड्रिंग का भी संदेह है। ईडी ने 2022 में एक प्राथमिकी दर्ज की थी। राजस्व खुफिया विभाग और आईटी विभाग द्वारा उसके संदिग्ध व्यवहार के बारे में भी जांच शुरू की गई थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें केवल एक वर्ष (2004) में लगभग 1.2 करोड़ रुपये का दान मिला था।
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विडंबना ये है कि सामाजिक परेशानियों के दम पर स्वयं का लाभ साधने वाले एक्टिविस्ट अक्सर उन संगठनों के विरुद्ध खड़े दिखाई देते हैं जिनके प्रयास सराहनीय हैं। कितने ही मौकों पर राणा अय्यूब, गोखले या अन्य वामपंथियों द्वारा आरएसएस, इस्कोन, सेवा इंटरनेशनल जैसे संगठनों की आलोचना ही नहीं बल्कि आरोपों की झड़ी लगा दी जाती है। हालाँकि धरातल पर उनका ये प्रोपगेंड़ा सफल होता नजर नहीं आता है।
वर्ष 1925 में स्थापना के बाद से ही आरएसएस ने 200,000 सेवा परियोजनाओं में योगदान दिया है और सबसे महत्वपूर्ण सेवा परियोजनाओं में से एक महामारी के दौरान थी। आरएसएस अधिकतर स्वयं सेवकों के दान पर चलता है जो गुरु पूर्णिमा के अवसर पर ‘भगवा ध्वज’ को दान देते हैं जिसे वे गुरु मानते हैं। आरएसएस के विदर्भ प्रांत ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 27 लाख परिवारों से 57 करोड़ रुपये की धनराशि एकत्र की। संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कई अन्य सामाजिक पहलुओं को प्रदान करने में भी उत्कृष्टता प्राप्त करता है।
यहाँ तक की महामारी के समय में दुनिया भर के लगभग 92,656 शहरों और कस्बों में लगभग 5,60,000 स्वयंसेवकों ने काम किया, जिसमें 7.3 मिलियन किराने के पैकेट वितरित किए गए, 45 मिलियन भोजन परोसे गए, 9 मिलियन मास्क वितरित किए गए और 2 मिलियन प्रवासी श्रमिकों की सहायता की गई।
स्वयंसेवकों ने 60,000 यूनिट से अधिक रक्तदान भी किया। लगभग 3800 हेल्पलाइन केंद्र स्थापित किए गए और लगभग 9800 बिस्तरों के साथ 287 स्थानों पर आइसोलेशन केंद्र संचालित किए गए। 118 शहरों में कोविड केयर सेंटर भी चलाए जा रहे हैं जहां 7476 बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं।
इस्कोन पर अक्सर युवाओं को साधुत्व की ओर मोड़ने के आरोप लगते हैं, जबकि सच यह है कि वे मात्र अपना धर्म प्रचार कर रहे हैं और जिसकी इजाजत संविधान भी देता है। इस्कोन द्वारा कई अस्पताल भी संचालित है लेकिन तथाकथित एक्टिविस्ट इसके बारे में बात करने से कतराते हैं। महामारी के दौरान अक्षय पात्र ने अक्षय पात्र ने 18 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में 7.5 करोड़ लोगों को भोजन परोसा। इनमें 42 मिलियन से अधिक भोजन शामिल हैं जो उनकी रसोई में पकाया गया था और लगभग 7.7 लाख खाद्य राहत किट वितरित किए गए थे।
मात्र महामारी के दौरान ही नहीं इस्कोन ने हर राष्ट्रीय और स्थानीय आपदा में लोगों को साथ दिया है और मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में उन्हें भोजन उपलब्ध करवाया है चाहे वो असम बाढ़ आपदा हो, ओडिशा साइक्लोन आपदा, केरल बाढ़ आपदा, नॉर्थ कर्नाटक बाढ़, गोरखपुर बाढ, गुजरात एवं चेन्नई बाढ़ आपदा और नेपाल में भूकंप आने पर लाखों लोगों के भोजन की व्यवस्था संस्था द्वारा की गई है।
नेपाल में भूकंप के दौरान अक्षय पात्र, जमशेदजी टाटा ट्रस्ट एवं सिप्रदियन सहायता संस्था द्वारा साथ मिलकर कार्य किया गया जिसमें 84 दिनों तक लगातार लोगों को भोजन उपलब्ध करवाया गया। हिन्दुओं की आस्था का केंद्र श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद द्वारा देशभर से 2100 करोड़ रुपए के अनुदान की व्यवस्था की गई।
साध्वी ऋतंभरा हों या बाबा रामदेव, समाजिक हितों की दिशा में काम कर रहे ऐसे लोगों को अक्सर बुद्धजिवियों के आक्रमण सहन करने पड़ते हैं। ये अलग बात है कि वे स्वयं को कीचड़ से बाहर निकालने में असमर्थ रहे हैं और इसकी पूर्ति ये सामने वाले को अपने साथ खींचकर पूरी करना चाहते हैं।