देश के बैंकिंग सेक्टर की हालत दिन प्रति दिन सुधर रही है। कड़े बैंकिंग कानूनों और फोन फॉर लोन जैसी योजनाएं बंद होने के बाद से लगातार बैंक घाटे से बाहर आ रहे है। इसके अतिरिक्त बैंकों द्वारा दिए गए कर्जों के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी NPA होने एवं GNPA के प्रतिशत में लगातार कमी आ रही है।
देश की प्रमुख वित्तीय संस्था ASSOCHAM और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी CRISIL द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बैंकों का सकल NPA (GNPA) वित्त वर्ष 2023-24 के अंत तक 4% के नीचे जा सकता है जो पिछले एक दशक में इसका सबसे निचला स्तर होगा।
गौरतलब है कि यूपीए शासनकाल में बड़े पैमाने पर बैंकों में वित्तीय लापरवाही की गई थी, इसके कारण बैंकों की सेहत खराब हो गई थी, अधिकांश बैंक घाटे में जा रहे थे और उनके द्वारा दिये गए कर्ज वापस नहीं आ रहे थे। इसको प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2014 के बाद से कई कड़े कानूनों के माध्यम से सही करने का प्रयास किया है।
क्या होता है GNPA और GNPA अनुपात?
GNPA यानी ग्रोस नॉन परफार्मिंग आसेट्स किसी भी बैंक द्वारा दिए गए कर्ज का वह कुल हिस्सा होते हैं जिनकी वसूली नही हो पा रही होती है। सामान्यतः जब 90 दिनों तक किसी कर्ज की वसूली में अनियमितता होती है तो उसे NPA की श्रेणी में डाला जाता है।
वहीं GNPA अनुपात, बैंक द्वारा दिए गए कुल कर्ज का वह प्रतिशत होता है जो कि NPA हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि एक बैंक 1,000 रुपए का कुल कर्ज देता है और उसमें से 70 रुपए NPA की श्रेणी में हो जाते हैं तो उक्त बैंक का GNPA अनुपात 7% होगा। यह जितना कम होता है उतना ही बैंक की सेहत अच्छी होती है।
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GNPA के बढ़ने से बैंक को अपनी बैलेंस शीट को सही रखने के लिए इन लोन की भरपाई अन्य तरीके से करनी पड़ती है या इन्हें ‘राईट ऑफ’ करना पड़ता है।
क्या कहती है CRISIL-ASSOCHAM की रिपोर्ट?
CRISIL-ASSOCHAM की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक देश के बैंको का GNPA अनुपात 90 बेसिस पॉइंट घटकर 5% के नीचे आ जाएगा। वहीँ वित्त वर्ष 2023-24 के अंत तक यह 100 बेसिस घटकर 4% के नीचे आ जाएगा जो कि इसका एक दशक के भीतर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन होगा।
क्रिसिल की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, इसमें सबसे बड़ी भूमिका सरकार की नेशनल डेब्ट रिस्ट्रक्चरिंग कंपनी लिमिटेड की है क्योंकि इसने कर्जों को दुबारा से व्यवस्थित करने पर काफी काम किया है।
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रिपोर्ट के अनुसार, NPA हुए कर्जों में सबसे अधिक सुधार कॉर्पोरेट सेक्टर को दिए हुए कर्जों में आएगा। इस सेक्टर को दिए गए कर्जों का NPA रेशियो 2% आ सकता है। वर्ष 2018 में कर्जों की सही पहचान, उनका निस्तारण और निपटान करने की नीति के बाद लगभग 16% तक पहुँच गया था।
क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में बैंकों की बैलेंस शीट में आए सुधार और कर्जे दिए जाने के पहले सही आकलन के कारण बैंकिंग क्षेत्र में सुधार आ रहा है। इसके कारण अच्छी साख वाले कर्जेदारों को कर्जा भी मिल पा रहा है।
क्या है अब भारत के बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति?
भारत का बैंकिंग क्षेत्र वर्तमान में काफी मजबूत स्थिति में है। पिछले कुछ समय में विशेष कर सरकारी बैंकों की स्थिति में बड़ा बदलाव आया है। अधिकांशतः घाटे में रहने वाली सरकारी बैंक अब सरकार को बड़े स्तर पर मुनाफा कमा कर दे रही हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश की सभी सरकारी बैंकों का मुनाफा लगभग 66,000 करोड़ रुपए रहा, जबकि चालू वित्त वर्ष 2022-23 की तिमाही में 15,306 करोड़ रुपए, दूसरी तिमाही में 25,685 करोड़ रुपए और तीसरी तिमाही में 29,175 करोड़ रुपए कमाए हैं।
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चालू वित्त वर्ष में अभी तक की कमाई 70 हजार करोड़ रुपए के पार पहुँच चुकी है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह कमाई चालू वित्त वर्ष की समाप्ति पर 1 लाख करोड़ के पार पहुँच जाएगी।