देश में लगातार लगातार कॉलेजियम और न्यायाधीशों की नियुक्ति के ऊपर चल रही बहस में एक और नया मोड़ कानून मंत्री के संसद में दिए गए एक बयान से आ गया है। केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद के उच्च सदन राज्यसभा के वर्तमान में चल रहे शीतकालीन सत्र में प्रश्न काल के दौरान देश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्तियों पर अहम बातें कही हैं।
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सदस्यों के प्रश्नों का जवाब देते हुए कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति, वंचित वर्गों का इन नियुक्तियों में प्रतिनिधित्व समेत वर्ष 2015 में संसद द्वारा एकमत से पास किए गए NJAC कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने पर भी बात की।
पिछले कुछ समय से लगातार कानून मंत्री एवं कई महत्वपूर्ण व्यक्ति देश में न्यायिक नियुक्तियों के तरीके के ऊपर बात कर रहे हैं। वहीं, कई दलित अधिकारों के कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में दलितों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व ना होने को लेकर मुखर हैं।
सुप्रीम कोर्ट साल में 163 दिन नहीं करता है काम
संसद के उच्च सदन राज्यसभा में कॉन्ग्रेस से सांसद राजीव शुक्ला ने प्रश्न काल में प्रश्न पूछा कि क्या यह सत्य बात है कि देश का सुप्रीम कोर्ट साल में मात्र 200 दिन काम करता है? इसके अतिरिक्त हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट साल में औसतन कितने दिन काम करते हैं?
साथ ही शुक्ला ने देश के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अटके हुए मुकदमों की संख्या भी पूछी एवं उन्हें कम करने के लिए सरकार के द्वारा उठाए जा रहे क़दमों के बारे में भी पूछा।
जवाब में देश के केन्द्रीय कानून मन्त्री किरेन रिजिजू ने बताया कि वर्ष 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 202 दिन काम किया था। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की छुट्टियों का फैसला सरकार नहीं बल्कि वह न्यायालय ही करते हैं।
कानून मंत्री ने अपने जवाब में बताया कि सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2021 में 202 दिन, 2020 में 217 दिन और वर्ष 2019 में 224 दिन काम किया। वहीं कानून मंत्री ने कहा कि देश के हाई कोर्ट साल में औसतन 210 दिन काम करते हैं।
वहीं न्यायालयों में लटके मुकदमों के ऊपर मंत्री ने कहा कि देश में इनके पीछे न्यायाधीशों के पदों के खाली होने का बड़ा रोल है। इन पदों को भरने के लिए सरकार के पास अत्यंत सीमित अधिकार है।
कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों के अतिरिक्त सरकार के पास कोई और नियुक्ति करने का विकल्प नहीं है ऐसे में पदों के खाली रह जाने से आगे मुकदमों की संख्या बढ़ती रहती है।
NJAC कानून को रद्द करने का फैसला सही नहीं
न्यायिक व्यवस्थाओं के बारे में राजीव शुक्ल ने दूसरा प्रश्न पूछा कि क्या सरकार NJAC बिल को दोबारा लाने के विषय में विचार कर रही है?
गौरतलब है कि NJAC (नेशनल ज्युडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन) बिल को देश की संसद के दोनों सदन ने वर्ष 2015 में एकमत से पास किया था। इस बिल के अंतर्गत देश के न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से सम्बंधित एक कमीशन का गठन होना था।
यह एक छः सदस्यीय कमीशन होता जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीश , कानून मन्त्री और 2 नामित सदस्य होते, इनमें से एक नामित सदस्य अनूसूचित जाति/जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग या महिला होती।
नामित सदस्यों का चुनाव सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोक सभा के नेता प्रतिपक्ष वाली समिति करती। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए अक्टूबर 2015 में खारिज कर दिया था। तब से लगातार यह बहस जारी है। इसी मुद्दे पर आज केन्द्रीय कानून मंत्री ने संसद में अपनी बात रखी।
रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा वर्ष 2015 में NJAC कानून को असंवैधानिक करार देने का फैसला सही नहीं था। यह बात उस पांच सदस्यीय बेंच के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने भी कहा है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दलों के सदस्यों और बड़े वकीलों ने भी यही बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट में आज तक अनूसूचित जनजति से सिर्फ एक न्यायाधीश
संसद में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर जारी चर्चा के दौरान द्रमुक सांसद तिरुची चिवा ने उच्च स्तर पर न्यायिक नियुक्तियों में अनूसूचित जाति/जनजाति, महिलाओं और अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व के विषय में प्रश्न पूछा।
जवाब में केन्द्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने कहा कि सरकार ने हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से यह कहा है कि वह नियुक्ति के लिए नाम भजते समय इन वर्गों का ध्यान रखें। साथ ही रिजिजू ने यह भी कहा कि आज तक सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जनजाति से केवल 1 ही न्यायाधीश हुए हैं। वर्तमान में हमारे पास 4 न्यायाधीश अनुसूचित जाति से हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण ना हो लेकिन वंचित वर्गों का ध्यान रखा जाना चाहिए।