राजस्थान में राजनीतिक संभावाएं सत्ता परिवर्तन की ओऱ इशारा कर रही हैं। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी अब जनता को प्रभावित करने के लिए विज्ञापनों का सहारा लेने की कोशिश कर रही है, जो पहले से ही भाजपा को वोट देने का मन बना चुके हैं।
जाहिर है कि पेपर लीक, भ्रष्टाचार और बढते अपराधों के कारण राज्य में कांग्रेस की छवि धूमिल हुई है। दलित आदिवासियों और महिलाओं पर अत्याचार के मामले में राज्य देश में सर्वोच्च स्थान पर है। कांग्रेस की पहचान ऐसी पार्टी के रूप में रही है जो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की रक्षा और संरक्षण करती रही है। यह आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी टिकटों के वितरण में व्यापक रूप से देखा जा सकता है। अब वर्ष, 2013 को देखें या 2018 या फिर राजस्थान में वर्तमान विधानसभा चुनाव, कांग्रेस ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारा हैय़
आगामी विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस के 24 फीसदी उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले हैं। दूसरे शब्दों में, इसके 47 उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि आपराधिक है और उन्होंने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिसका उल्लेख उन्होंने अपने हलफनामे में किया है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) की ताजा संयुक्त रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि कांग्रेस के 167 (84 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति एक करोड़ से अधिक घोषित की है।
वहीं इससे पहले वर्ष, 2013 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारे गए 199 उम्मीदवारों में से 28 यानी की करीब 14 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे। राजस्थान में कांग्रेस ने तब आपराधिक गतिविधियों के आरोपी कई नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट दिए थे। इनमें प्रमुख रूप से महिपाल मदरेणा, मलखान सिंह बिश्नोई और बाबूलाल नागर शामिल थे।
उल्लेखनीय है कि मदरेणा कुख्यात भंवरी देवी मामले से जुड़े थे। याद रहे कि महिपाल मदेरणा और भंवरी देवी की एक सेक्स सीडी सामने आने के बाद कथित तौर पर महिपाल मदेरणा के इशारे पर भंवरी देवी की हत्या कर दी गई थी।
राज्य में बढ़ते अपराध और पार्टी में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की संख्या देखते हुए अब कांग्रेस विज्ञापनदाताओं की शरण ले रही है। जहां प्रदेश के दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में नवंबर 20, 2023 के अखबार के पहले पन्ने पर दिए गए विज्ञापन में मुख्य शीर्षक पर लिखा है, “राजस्थान में कांग्रेस की लहर”।
प्रमुख हिंदी दैनिक राजस्थान पत्रिका का राजस्थान में बड़ा पाठक वर्ग है और कांग्रेस अब मतदाताओं को गुमराह करना चाहती है। पार्टी ने हमेशा मीडिया का इस्तेमाल अपने निहित स्वार्थों के लिए किया है। वहीं ऐसे ही विज्ञापन राजस्थान के दैनिक भास्कर और द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में भी देखे गए हैं।
एडवर्टोरियल (Advertorials) एक प्रकार की सशुल्क संपादकीय सामग्री है।सरल शब्दों में समझाएं तो, जो प्रकाशित होता है वह समाचार पत्रों की सामग्री का हिस्सा नहीं है बल्कि उस सामग्री के लिए भुगतान करने वाले व्यक्ति का हिस्सा है। चुनाव आयोग हाल के दिनों में इन विज्ञापनों को लेकर काफी सख्त रहा है क्योंकि अक्सर ये भ्रामक होते हैं। एक पाठक के लिए कई बार विज्ञापन और संपादकीय सामग्री के बीच अंतर करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
आम तौर पर, समाचार पत्र विज्ञापन प्रकाशित करने से बचते हैं। ऐसे में लग रहा है कि संभवतः, राजस्थान में कांग्रेस नेतृत्व ने संबंधित मीडिया समूह पर ऐसे विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए दबाव डाला है।
गौर करने वाली बात यह है कि राजस्थान में कांग्रेस पहले से ही बंटी हुई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कद्दावर गुर्जर नेता सचिन पायलट के बीच सियासी जंग जगजाहिर है। दिवंगत कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेश पायलट के बेटे सचिन की युवाओं और अपनी जाति के लोगों के बीच अच्छी पकड़ है और लंबे समय से वे मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं।
वर्ष, 2018 के विधानसभा चुनावों की सफलता के बाद कांग्रेस ने पायलट की अपार लोकप्रियता के बावजूद मुख्यमंत्री पद के लिए पायलट की जगह गहलोत को तरजीह दी था। राजनीतिक लाभ के लिए बार-बार एकता का सार्वजनिक प्रदर्शन करने के बावजूद दोनों के रिश्ते में दरार बार-बार नजर आ ही जाती है।
इस बात से इनकार नहीं है कि राजस्थान से कांग्रेस का सफाया होने वाला है। यही कारण है कि पार्टी जीत के लिए हर संभव राजनीतिक योजना लागू कर रही है।
नोट- यह ज्योतिर्मय थपलियाल द्वारा लिखे गए मूल आर्टिकल (Congress Tries To Pass Off Advertorials As Public Opinion On Polls Ahead Of Rajasthan Elections) का प्रतिभा शर्मा द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद है।
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