हाल ही में कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता आलोक शर्मा एक न्यूज़ चैनल डिबेट में यह कहते हुए दिखाई दिए कि यूपीए अध्यक्ष का पद एक संवैधानिक पद होता है। आलोक शर्मा ने बयान दिया कि वर्ष 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्षा होने के नाते एक संवैधानिक पद धारण करती थीं।
इस बयान के बाद न्यूज़ डिबेट में एंकर ने तर्कों के साथ आलोक शर्मा को संवैधानिक पद का अर्थ समझाया।
इस बीच एक बार फिर से तत्कालीन यूपीए सरकार में सोनिया गांधी की भूमिका पर चर्चा भी शुरू हुई है। इस क्रम में वर्ष 2006 का घटनाक्रम जानना आवश्यक हो जाता है जिसमें सोनिया गांधी को लाभ का पद धारण करने के मामले में सांसद के अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
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क्या था पूरा मामला?
वर्ष २००४ में यूपीए सरकार ने सत्ता में आते ही NAC (National Advisory Council) का गठन किया था। यह सरकार द्वारा वित्तपोषित संस्था थी। माने वेतन भत्ता खर्च सब सरकार के जिम्मे। इस एनएसी का अध्यक्ष सोनिया गांधी को बनाया गया था।
उद्देश्य यह बताया गया कि यह कॉउन्सिल नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देगी। हालांकि, यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि यह कॉउन्सिल असल मायनों में ‘सुपर सरकार’ की भूमिका में कार्य करती थी।
लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन को लाभ के पद मामले में अपनी राज्यसभा सीट से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
दरअसल, नियम के अनुसार कोई भी सांसद और विधायक अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे किसी पद पर नहीं रह सकता है, जहां से उसे वेतन, भत्ता या फिर दूसरा अलाउंस मिलता हो।
उस वक़्त जया बच्चन यूपी फिल्म डेवलपमेंट काउंसिल की सदस्य भी थीं और सांसद भी थी। बताया गया कि कांग्रेस पार्टी ने यह मामला उछाला और जया बच्चन को राज्यसभा सीट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
इसके बदले समाजवादी पार्टी ने भी रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी पर एनएसी के अध्यक्ष होने के चलते निशाना साधा।
इसके बाद कथित तौर पर ‘लाभ के पद’ पर बैठे तत्कालीन 44 सांसदों के ख़िलाफ़ शिकायतें आई थीं जिसमें सोनिया गांधी सहित कर्ण सिंह से लेकर सोमनाथ चटर्जी तक कई नाम शामिल थे।
इस विवाद के बाद सोनिया गांधी को सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा हालांकि बाद में वर्ष 2006 में ही सोनिया गांधी रायबरेली से फिर से लोकसभा के लिए चुनी गई।
अब सवाल यही था कि सोनिया गांधी को कैसे ‘सुपर सरकार’ के पद पर बरक़रार रखा जाए।
इसके लिए (UPA) सरकार ने बाद में NAC अध्यक्ष सहित 56 पदों को लाभ के पद से छूट देने के लिए एक विधेयक पेश किया। जिस बिल को संसद ने मई 2006 में मंजूरी दे दी।
बाद में वर्ष 2010 में फिर से सोनिया गांधी ने एनएसी के अध्यक्ष पद पर वापसी की जिसके चलते सोनिया गांधी को कैबिनेट का दर्जा भी दिया गया।
यह भी तय हुआ कि सलाहकार परिषद के अन्य सदस्यों का नामांकन सोनिया गांधी ही करेंगी और सदस्यों का कार्यकाल एक साल का होगा जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है।
इसलिए यह समझने की आवश्यकता है कि यूपीए अध्यक्ष का पद संवैधानिक नहीं था और न ही कभी हो सकता है। विडंबना यह है कि सोनिया गांधी को कैबिनेट रैंक से नवाजने के लिए संसद एक कानून लेकर आ गई थी।
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