ऐसा लग रहा है कि राहुल गाँधी की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। चर्चित आपराधिक मानहानि केस में गुजरात हाईकोर्ट से राहुल गाँधी को कोई राहत नहीं मिल पाई। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका ख़ारिज कर दी है।
यह याचिका सूरत कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई थी जिसमें कोर्ट ने राहुल गाँधी को ‘मोदी सरनेम’ मामले में दोषी मानते हुए 2 साल जेल की सजा सुनाई थी और उसके चलते उनकी संसद सदस्यता भी खत्म कर दी गई।
मामला ये था कि कर्नाटक में एक जनसभा में राहुल गाँधी ने टिप्पणी की थी, कि ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी ही कैसे है?’ इसके बाद भाजपा नेता और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। लंबी सुनवाई के बाद सूरत की अदालत ने उन्हें ‘मोदी उपनाम’ वाले सभी लोगों की भावनाएं आहत करने का दोषी पाया और 2 साल की सजा का फैसला सुनाया।
अब हाईकोर्ट ने राहुल गाँधी की याचिका ख़ारिज कर दी है यानी उनकी सजा बरक़रार रहेगी। यह फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने राहुल गाँधी पर जो टिप्पणी की वह जानना महत्वपूर्ण है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने माना कि राहुल गाँधी ने चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए गलत बयान दिया था और स्पष्ट रूप से सनसनी बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी लिया।
कोर्ट ने आगे कहा, “फिर आरोपी यहीं नहीं रुका बल्कि आरोप लगाया कि ‘सारे चोरों के नाम मोदी ही क्यों है’। इस प्रकार वर्तमान मामला निश्चित रूप से अपराध की गंभीरता की श्रेणी में आएगा। यह किसी एक निजी व्यक्ति से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि एक बड़ी आबादी की गरिमा एवं प्रतिष्ठा की बात है।”
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अब राजनीति में शुचिता होना समय की माँग है और प्रतिनिधियों की पृष्ठभूमि साफ़ होनी चाहिए।
अब प्रश्न ये है कि जो राहुल गाँधी लोगों को गुमराह कर अपनी छवि एक साधारण इंसान की पेश करते हैं क्या उन्हें भारत की न्यायपालिका गंभीर अपराधी की श्रेणी में रख रही है?
कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस सजा पर रोक न लगाने से राहुल गाँधी के साथ कोई अन्याय नहीं होगा।आरोपी राहुल गाँधी का आपराधिक इतिहास इस फैसले के लिए विचार करने योग्य है क्योंकि राहुल गाँधी के नाम पर 10 आपराधिक मामले पेंडिंग हैं।
ऐसे ही एक मामले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने उस मुकदमे की बात की जिसमें वीर सावरकर के पोते द्वारा पुणे कोर्ट में राहुल गाँधी के खिलाफ शिकायत दायर की गई है। कोर्ट ने कहा कि इस कथित भाषण में गांधी ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में वीर सावरकर के खिलाफ मानहानि के शब्दों का इस्तेमाल किया था।
‘अपराध की गंभीरता’ के संबंध में हाईकोर्ट ने सूरत ट्रायल कोर्ट के आदेश को भी ध्यान में रखा। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी संसद का सदस्य था और राष्ट्रीय स्तर की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष था वो भी ऐसी पार्टी जिसने देश में 50 से अधिक वर्षों तक शासन किया।
इस पूरी बहस के बीच एक सबसे महत्वपूर्ण बात राहुल गाँधी के विरोधी पक्ष ने रखी। वकीलों ने कहा था कोर्ट से सजा मिलने के बाद भी राहुल गाँधी के स्वभाव में बदलाव नहीं है। वे कोर्ट में राहत मांग रहे हैं और बाहर पब्लिक के बीच में कहते हैं कि मैं कोई भी सजा भुगतने को तैयार हूं।
जब निकली थी अरविन्द केजरीवाल के दावों की हवा
ऐसी बातों से एक और नेता की याद आ जाती है जो आरोप लगाने के मामले में पहले धुआँधार बैटिंग करते थे लेकिन जब मामला कोर्ट में गया तो सारा धुआँ निकल गया था। हम बात कर रहे हैं अरविन्द केजरीवाल की।
वर्ष 2015 में केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के 6 नेताओं ने अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए थे जिस पर जेटली ने केजरीवाल समेत उनकी पार्टी के नेताओं, कुमार विश्वास, संजय सिंह, राघव चड्ढा, आशुतोष और दीपक बाजपेयी को कोर्ट में घसीटते हुए मानहानि का मुकदमा दर्ज किया
लेकिन बुरी तरह घिरने पर केजरीवाल ने माफी मांगने में ही भलाई समझी। राहुल गाँधी और केजरीवाल के मामले में साफ़ अंतर यह है कि केजरीवाल ने माफ़ी मांगी और किनारे हो गए लेकिन राहुल गाँधी पर पहले चोरी फिर सीनाजोरी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
नीरव मोदी को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था?
अब आते हैं इस पूरे मामले के दूसरे पहलू पर, गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस फैसले से नाखुश दिखे और उन्होंने अपनी भड़ास निकालने के लिए भगोड़ों का जिक्र छेड़ दिया।
वो कहते हैं कि राहुल गाँधी ने हमेशा सच की लड़ाई लड़ी है, और आगे भी लड़ते रहेंगे। सच यह है कि ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल “भाई”, विजय माल्या, जतिन मेहता जैसे भगोड़े, मोदी सरकार के निगरानी में जनता के पैसे लेकर, संदिग्ध रूप से विदेश पहुँच गए।
अब खड़गे जी ने नीरव मोदी की चर्चा की है तो यहाँ ये घटना क्रम को जानना जरुरी है। वर्ष 2021 की बात है नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को लेकर मामला ब्रिटेन कोर्ट में चल रहा था। इस बीच भारत के दो पूर्व न्यायाधीशों ने ब्रिटेन की अदालत में भारतीय न्याय व्यवस्था के ख़िलाफ़ गवाही दी। यानी दोनों ने नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का विरोध किया था।
एक थे जस्टिस काटजू और दूसरे थे जस्टिस थिप्से। जस्टिस थिप्से ने कहा था कि चूंकि मामले में किसी भी व्यक्ति को धोखा नहीं दिया गया था, इसलिए नीरव मोदी के खिलाफ धोखाधड़ी का कोई मामला नहीं था और सबसे मजेदार बात ये है कि जस्टिस थिप्से अपने रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे।
आज इसी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष खड़गे नीरव मोदी के नाम पर सरकार को घेर रहे हैं। जिस मेहुल चोकसी के नाम पर खड़गे नरेंद्र मोदी सरकार को ज्ञान दे रहे हैं देखिये उस मेहुल चोकसी को कांग्रेसी इकोसिस्टम कैसे देखता है।
रोहन गुप्ता कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता, रोहन अपने ट्वीट में मेहुल चौकसी को मेहुल भाई कहकर सम्बोधित कर रहे हैं।
जब भारतीय एजेंसियों ने मेहुल चोकसी को कैरिबियन से वापस लाने की कोशिश की और वहाँ की अदालत ने प्रत्यर्पण पर रोक लगा दी तो कांग्रेस के ये प्रवक्ता रोहन गुप्ता ने अपने ट्वीट में क्या लिखा वो आप ख़ुद देखिए।
वैसे कांग्रेस के पास इतनी नैतिकता कैसे बच जाती है कि वो बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज पर बात कर सके?
इस विषय में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन का एक वक्तव्य कोट करने योग्य है। वित्तमंत्री कहती हैं, “कांग्रेस के नेताओं ने जानबूझ कर बैंकों का कर्ज नहीं लौटाने वाले, फंसे कर्जों और राइट-ऑफ (बट्टे खाते) पर देश को गुमराह करने की कोशिश की। 2009-10 और 2013-14 के बीच अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने 145226 करोड़ रुपये की राशि को राइट-ऑफ किया था और आशा है कि राहुल गांधी ने डॉ मनमोहन सिंह से सलाह ली होगी कि यह राइट-ऑफ किस बारे में था।”
वहीं वर्तमान केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में बता चुकी है कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी मामले में इनकी संपत्तियां जब्त कर बैंकों को 18,000 करोड़ रुपए लौटाए जा चुके हैं।
मोदी सरकार अपना काम कर ही रही है और राहुल गाँधी मोदी सरनेम को निशाना बना कर अपना काम कर रहे हैं इसलिए कोर्ट भी उन्हें सजा देकर अपना काम कर रहा है। लेकिन अब राहुल गाँधी के पास कोई काम नहीं बचा है सिवाय यह प्रार्थना करने के कि उनकी सजा सुप्रीम कोर्ट में माफ़ हो जाए।
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