कॉन्ग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुनाव लगभग दो दशक बाद 17 अक्टूबर, 2022 को होने जा रहा है। इस पर भी पार्टी के भीतर राजनीति गर्मा गई है। सवाल चुनाव में पारदर्शिता को लेकर उठ रहा है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने तो ट्वीट कर कहा “जब पार्टी की मतदाता सूची सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ही नहीं है, तो यह चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र कैसे हो सकता है? निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए ज़रूरी है कि मतदाताओं के नाम और पते कांग्रेस की वेबसाइट पर पारदर्शी तरीक़े से प्रकाशित किए जाएं।” इसके अलावा, आनन्द शर्मा, कार्ति चिदंबरम और शशि थरूर जैसे नेता भी चुनाव में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
कॉन्ग्रेस के नेताओं को आशंका है कि गांधी परिवार इस चुनाव को प्रभावित कर सकता है। यह आशंका भी स्वाभाविक है, क्योंकि अब तक गांधी परिवार ही पार्टी का सर्वेसर्वा रहा है और पहले भी गांधी परिवार पर चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लग चुका है।
बीते 75 वर्षों में नेहरू-गांधी परिवार से कॉन्ग्रेस पार्टी के सर्वाधिक अध्यक्ष
साल 2000 में पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गांधी के खिलाफ जितेन्द्र प्रसाद ने चुनाव लड़ा तो उन्हें मात्र 94 वोट मिले। तब आरोप लगा था कि डेलिगेट यानी जो मतदाता सूची थी, उसमें फर्जी मतदाताओं को शामिल किया गया था। यही नहीं जितेन्द्र प्रसाद जब भोपाल में चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी के कार्यालय पहुंचे तो कार्यालय ही बन्द था और उन्हें काले झण्डे तक दिखाए गए।
साल 1947 से लेकर अब तक कई गांधी और गैर-गांधी परिवार के लोग अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। हालांकि सबसे अधिक वर्षों तक नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य ही पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं।
बतौर पार्टी अध्यक्ष सबसे अधिक 22 साल का कार्यकाल सोनिया गांधी का रहा है। सोनिया गांधी ने साल 1998 में अध्यक्ष पद संभाला था और अब तक संभाल रही हैं।
साल 2017 से 2019 तक राहुल गांधी सर्वसम्मति से पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव की हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद पार्टी की कमान एक बार फिर सोनिया गांधी के हाथों में आ गई।
साल 1951 से 1954 तक जवाहर लाल नेहरू कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे। कॉन्ग्रेस पार्टी में वंशवाद का चलन इन्दिरा गांधी के समय से ही शुरू हुआ। इन्दिरा गांधी साल 1969 से 1978 तक कॉन्ग्रेस पार्टी की अध्यक्षा रहीं। हालांकि, इस अवधि के बीच भी गैर-गांधी अध्यक्ष बने लेकिन उन पर यह आरोप लगते रहे कि ये गांधी परिवार के ही हितैषी हैं।
इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी बिना चुनाव लड़े सर्वसम्मति से कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन गए। राजीव गांधी 1985 से लेकर 1991 तक अध्यक्ष पद पर बने रहे। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद पार्टी की जिम्मेदारी सोनिया गांधी के हाथों में देने की योजना बनी। हालांकि सोनिया गांधी ने उस समय पार्टी की कमान अपने हाथों में लेने से इन्कार कर दिया।
कॉन्ग्रेस पार्टी के भीतर परिवारवाद, वंशवाद की कलह अब सार्वजनिक हो चुकी है। कॉन्ग्रेस के कई कद्दावर नेता पार्टी छोड़कर चले गए हैं। हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ते हुए कॉन्ग्रेस को गांधी परिवार तक सीमित रखने का आरोप भी लगाया था।
ऐसे में इस बार भी पहले की तरह गांधी परिवार या फिर गांधी परिवार का हितैषी अध्यक्ष बन जाएगा इसी आशंका के चलते पारदर्शी चुनाव की बात हो रही है।