राष्ट्रपत्नी से लेकर, ऐसी राष्ट्रपति किसी देश को न मिले और Evil Philosophy को Represent करने वाली, यह सभी संज्ञाएं देने के बाद अब कॉन्ग्रेस और इनके साथी दल आज कह रहे हैं कि महामहिम का अपमान हो गया।
इन्हें दिक्कत यह नहीं है कि प्रधानमंत्री संसद भवन का उद्घाटन कर रहे हैं बल्कि असल दिक्कत यह है कि UPA की सर्वेसर्वा रही सोनिया गांधी से उद्घाटन क्यों नहीं करवाया जा रहा है?
अब सवाल उठता है कि सोनिया गांधी का क्या अधिकार कि वे संसद भवन का उद्घाटन करेंगी?
इस सवाल का जवाब तो सोनियां गांधी ही दे सकती हैं लेकिन फिर एक सवाल है कि उनका क्या अधिकार था, जब उन्होंने साल 2020 में छतीसगढ़ विधानसभा का भूमिपूजन किया था। उनके पास क्या अधिकार था, जब उन्होंने इंफाल में नए विधानसभा परिसर का उद्घाटन किया।
उद्घाटन का कॉन्ग्रेसी चस्का ऐसा है कि अपनी परंपरा के अनुरूप सोनिया गांधी भी बिना किसी संवैधानिक अधिकार के उद्घाटन पर उद्घाटन कर देती हैं।
फिर चाहे शिलांग का एक हेल्थ इन्स्टीट्यूशन हो या फिर राजस्थान में वाटर प्रोजेक्ट। देश का पहला ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट हो या फिर बान्द्रा वरली सी लिंक।
उद्घाटनों का इतिहास ऐसा कि AMU के किशनगंज सेन्टर का शिलान्यास भी सोनिया गांधी ही करती हैं।
इसी तरह गुवाहाटी हाईकोर्ट जिसकी इंफाल बेंच का उद्घाटन तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया 14 मार्च, 1992 को करते हैं और साल 2011 में उसी हाईकोर्ट की एक बिल्डिंग का उद्घाटन सोनिया गांधी कर देती हैं।
आज कॉन्ग्रेस और विपक्षी दल भले ही राष्ट्रपति के नाम पर ढिंढोरा पीट रही है लेकिन गैर भाजपा शासित प्रदेश चाहे तेलंगाना की बात हो, आंध्र प्रदेश की हो या फिर असम या झारखंड की, यहां की संसद या संसद के किसी भवन के उद्घाटन के अवसर पर राज्यपाल को भी नहीं बुलाया गया था।
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