यदि आपको नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना, राजपथ और रेस कोर्स रोड के नाम में परिवर्तन और सेंट्रल विस्टा का विरोध याद है तो आपके लिए भारत नाम पर विवाद को समझना आसान हो जाएगा। इन सभी विवादों के पीछे का आधार भी एक है और तर्क भी, यह बात और है कि देश का नाम बदलने को लेकर केंद्र सरकार द्वारा कोई चर्चा नहीं की गई है। संविधान के मुताबिक भारत या इंडिया नाम का प्रयोग नाम बदलने की श्रेणी में आता भी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों द्वारा इस मुद्दे को उठाना असल में भारत नाम को अधिक प्रचलन में लाने के कारण है।
कांग्रेस भारत को प्रचलन से बाहर रखना चाहती है। इसका कारण पिछले कुछ समय में आरंभ हुई वि-औपनिवेशिकरण की प्रक्रिया है, क्योंकि पार्टी को भारतीयता के उदय के साथ सेंगोल की तरह ही अन्य ऐतिहासिक गलतियां सामने आने का डर सता रहा है।
अपने ही द्वारा उठाए मुद्दे पर अपने ही दल का बचाव करने के लिए सुप्रिया श्रीनेत आगे भी आई और अपने स्वनिर्मित इतिहास की व्याख्या भी की। भारत नाम के मूल संस्कृति से जुड़ाव पर श्रीनेत दावा किया है कि इंडिया शब्द इंडस नदी से निकलकर आया है। यह अच्छा है कि इतिहास को कुरेदने की पहल कांग्रेस प्रवक्ता की ओर से ही की गई अन्यथा सिंधु नदी के इंडस बनने की उपनिवेशवादी प्रक्रिया याद दिलाने पर पर वे विरोधी को संघी घोषित कर सकती थीं।
कांग्रेस का विरोध और नामकरण की महत्ता जानने के लिए इतिहास के जरिए ही यह समझना जरूरी है कि ‘इंडिया दैट इज, भारत’ क्यों है। यही प्रक्रिया हमें यह समझने में मदद करेगी कि कांग्रेस को भारत से क्या समस्या है।
इंडिया दैट इज भारत
संविधान सभा में देश के नामकरण पर चर्चा के बाद इंडिया दैट इज भारत मान्य किया गया। हालांकि लंबे सांस्कृतिक इतिहास और सभ्यता के मूल स्वरूप के जीवित रहने के बावजूद अकेले भारत को अपनाने पर बात क्यों नहीं बनी, इसका कारण भारतीयता के विस्तार से ही जुड़ा हुआ है।
संविधान सभा के सदस्यों का विश्वास था कि पूर्ण स्वतंत्रता के लिए औपनिवेशिक नाम का त्याग कर भारतीयता को अपनाना जरूरी है। नाम में क्या रखा है और यह क्यों महत्वपूर्ण है, इसके लिए संविधान सभा के सदस्य कमलापति त्रिपाठी को सुनना जरूरी है। उनका कहना था कि वे भारत नाम से मंत्रमुग्ध है। यह नाम शास्त्रों, धार्मिक ग्रंथों और हमारी संस्कृति ने हमें दिया है। जब कोई देश गुलामी में होता है तो वह अपनी आत्मा खो देता है। एक हजार वर्ष की गुलामी के दौरान हमारे देश ने भी अपना सब कुछ खो दिया। आज एक हजार वर्ष तक गुलामी में रहने के बाद यह स्वतंत्र देश अपना नाम पुनः प्राप्त करेगा और हम आशा करते हैं कि अपना खोया हुआ नाम पुनः प्राप्त कर यह अपनी आंतरिक चेतना और बाह्य स्वरूप को पुनः प्राप्त कर लेगा और अपनी आत्मा की प्रेरणा से कार्य करना प्रारम्भ कर देगा।
इसी आत्मा को रोकते हुए इंडिया के नाम को आगे रखना ही औपनिवेशिक बेड़ियों से बंधे रहने का पहला कदम था।
जिस तर्क और आधार से कांग्रेस और इससे निकली पार्टियां बचने का प्रयास कर रही हैं उन्हीं आधारों पर सविंधान सभा में खुलकर चर्चा की गई थी। सभा में उन शास्त्रों, धार्मिक ग्रंथों की चर्चा की गई जिनमें भारत के नाम का उल्लेख था। मद्रास से सभा के सदस्य कल्लूर सुब्बा राव ने वेदों का जिक्र कर बताया था कि भारत नाम का उदय कहां से होता है। इसी मद्रास को चेन्नई में बदलने वाले डीएमके नेताओं के लिए इस विस्तार को समझना संभव नहीं है। तमिल संस्कृति और सभ्यता पर चादर डालने वाले वामपंथियों को भारतीयता के संदर्भ में गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। इसलिए एक बार फिर प्रश्न कांग्रेस पर ही आता है कि जिस सभ्यता को आधार मानकर स्वीकार किया गया था कि इंडिया जो कि हमेशा से भारत है उससे आज पार्टी के अनुयायी बचने का प्रयास क्यों कर रहे हैं।
इंडिया दैट इज भारत इस बात का प्रमाण है कि इंडिया को भारतीय पहचान की आवश्यकता रही है। भारत हजारों वर्षों की उस संस्कृति के विस्तार को अपने साथ लाता है जिसे कांग्रेस 75 वर्षों से रोकने का प्रयास कर रही है। भारत के साथ वह सभ्यता जुड़ी हुई है जिसको आक्रमणकारियों और उपनिवेशिकों ने खत्म करने का प्रयास किया था। इसी भारत का उदय औपनिवेशिक निशानों के लिए खतरा है। उन्हीं निशानों के लिए जिसके बचाव के लिए कांग्रेस सदा से प्रयासरत रही है। भारत के नाम से उन लोगों को परेशानी है जो स्वतंत्र भारत के झंडे पर ब्रिटिश निशान चाहते थे और जिन्होंने भारतीय नौसेना के झंडे पर ब्रिटिश निशान बनाकर रखा था।
भारत, इंडिया और हिंदुस्तान पर अपना दावा कर अपने राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीट रहे कांग्रेस के अनुयायी यह क्यों नहीं बताते कि संविधान सभा में भारत को बढावा दे रहे मध्य और उत्तर भारतीय आज कांग्रेस की विचारधारा के अनुयायी नहीं है पर इंडिया के जरिए ब्रिटिश काल को जिंदा रखने की कोशिश करने वाले दल कांग्रेस में रहे और आज अलग होकर भी गठबंधन में साथ आ गए हैं।
देश का भारत नाम उनके लिए खतरा है जो देश की स्वतंत्रता के बाद भी ब्रिटिश कॉमनवेल्थ से जुड़े रहने का बहाना ढूंढ़ रहे थे और देश को संप्रभु स्वतंत्र गणराज्य में स्वतंत्र शब्द पर संदेहास्पद थे क्योंकि इससे ब्रिटिश कॉमनवेल्थ से संबंध बिगड़ने का खतरा था। यह बात आज नहीं बल्कि संविधान सभा में ही कही गई और इसे कोई हिंदूवादी नेता नहीं बल्कि अखिल भारतीय मुस्लिम लीग से निकलकर आए कांग्रेसी नेता मौलाना हसरत मोहानी कह रहे थे जिनकी मांग भारत के राज्यों को संप्रभुता प्रदान करने को लेकर थी।
भारत नाम पर विवाद करने वाले कांग्रेसी आज केंद्र सरकार पर इतिहास बदलने का आरोप लगाते हैं। इस बात का एक पहलू क्या यह नहीं है कि इंडिया के जरिए भारत का इतिहास दबाने का प्रयास किया गया था और जब आज इसके पुनरुत्थान की संभावाएं नजर आ रही हैं तो इसका विरोध किया जा रहा है। वास्तविकता यही है कि कांग्रेस देश की औपनिवेशिक बेड़ियां टूटने से कुलबुलाई हुई है। सभ्यता के उदय पर हर बार केंद्र सरकार पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली कांग्रेस से भी कुछ प्रश्न पूछे जाने जाहिए। मेरा तो यह भी मानना है कि देश में सबसे अधिक समय तक सत्ता भोग करने वाली कांग्रेस की नैतिक जिम्मेदारी है कि वो जवाब दे कि देश के वि–औपनिवेशिकरण की प्रक्रिया आजादी के 70 वर्षों बाद क्यों शुरू हुई है और कांग्रेस औपनिवेशिक बेड़ियों से क्यों बंधे रहना चाहती है?
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