कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी ने जो मोहब्बत की दुकान खोली है उसके संचालन का कार्य पार्टी के कार्यकर्ताओं के पास है। पूरी कर्मठता के साथ कांग्रेस कार्यकर्ता प्रधानमंत्री मोदी एवं देश के विरुद्ध राहुल द्वारा खोली गई मोहब्बत की दुकान चला रहे हैं। दुकान से मोहब्बत लेने के लिए कांग्रेस के शाही परिवार से ताल्लुक रखना आवश्यक है। किसी आम जन के लिए यह उपलब्ध नहीं। ऐसा कांग्रेस की नेत्री अलका लांबा का मानना है। अलका लांबा ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया है जिसका कैप्शन दिया गया है ‘खानदानी बनाम थूकदानी’। इस वीडियो का संदेश यह है कि राहुल गांधी जैसे रईस लोग ही प्रधानमंत्री होने के लायक हैं। साधारण परिवार से आने वाले नरेंद्र मोदी, भले ही भारत के नागरिकों द्वारा चुने गये हों, पर इस पद को सुशोभित करने के लायक नहीं।
कुछ ऐसा ही मामला अक्सर विवादों में रहने वाली कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी का भी है। रेणुका को इस बात की चिंता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका की फर्स्ट लेडी को डायमंड दिया पर उन्होंने अपनी पत्नी को क्या दिया? अलका लांबा या रेणुका चौधरी के लिए प्रधानमंत्री के विरुद्ध मोहब्बत बांटने के लिए उनकी पत्नी का जिक्र करना नई बात नहीं है।
इन मूर्खतापूर्ण तर्कों का कोई जवाब भी नहीं दे सकता है। कोई देने का इच्छुक हो तो भी रेणुका चौधरी जैसे व्यक्ति उसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। रेणुका चौधरी के इस सवाल के जवाब में ट्विटर यूज़र्स ने उन्हें हसन अली की याद दिलायी, जिसके ऊपर रेणुका चौधरी को हीरे का हार देने का आरोप ख़ुद उसके पार्टनर काशीनाथ तपरिया ने लगाया था। इस बाबत वर्ष 2011 में इंडिया टुडे में छपी खबर को कोट करते लोगों ने रेणुका चौधरी से पूछा कि इस बात में कितनी सच्चाई है कि उन्हें हसन अली ने क्या सच में ऐसा कोई उपहार दिया था?
रेणुका चौधरी हो या अलका लांबा उनके लिए यह समझना टेढ़ी खीर है कि अमेरिका भाजपा नेता नरेंद्र मोदी नहीं भारत के प्रधानमंत्री मोदी गए हैं। वहां की प्रथम महिला को उपहार नरेंद्र मोदी ने नहीं भारत सरकार की ओर से गया है। संभव है कि वो यह बात समझती हैं पर उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का अंदाज शायद इसलिए पसंद नहीं आया क्योंकि कांग्रेस की ये महिला नेत्रियाँ नरेंद्र मोदी को ‘खानदानी’ व्यक्ति नहीं मानती।
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सेंगोल के जरिए भारत में राजतंत्र स्थापित होने के लिए चिंता व्यक्त करने वाली कांग्रेस प्रधानमंत्री पद पर किसी राजशाही संभ्रांत को ही देखना चाहती है। इसका कारण दंभ और विलासिता के जीवन से बाहर आई उस विचारधारा का परिणाम है जिसके अनुसार देश का प्रधानसेवक तो कांग्रेस के नेहरू-गांधी परिवार से ही आ सकता है। नेहरू-गांधी परिवार ने देश को तीन प्रधानमंत्री दिए हैं तो जाहिर है शासन करना भी सिर्फ उनको ही आता है। अब लोकतंत्र प्रणाली भले ही किसी को चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता देती हो पर गद्दी पर तो राजा ही विराजमान होना चाहिए। अगर न भी हो पाए तो उसे नेहरू-गांधी परिवार की स्वीकार्यता तो होनी ही चाहिए जैसे पूर्व प्रधानमंत्री को सूपर पीएम सोनिया गांधी से मिली थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस परिवार से स्वीकृति नहीं है इसलिए उनके तौर-तरीके भी ‘खानदानी’ नहीं है।
कांग्रेस के लिए यह मोहब्बत की दुकान राहुल गांधी से पहले पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने खोली दी थी जब सरदार पटेल को मिले वोटों को नजरअंदाज कर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया था। स्वतंत्रता के बाद से प्रधानमंत्री पद को व्यक्तिगत जागीर समझने वाले गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के लिए यह समझ पाना स्वाभाविक रूप से कठिन है कि वो प्रधानमंत्री पद पर पर क्यों नहीं है? ऐसे में अलका लांबा हो या रेणुका चौधरी, उनके बयानों को ओछी राजनीति कहकर टालना सही नहीं है क्योंकि यह उनकी विचारधारा है।
मोहब्बत के सौदागरों को प्रधानमंत्री पद पर राजगद्दी के वारिस को न देख पाने से अधिक समस्या इस बात से है कि किसी साधारण परिवार से आया आदमी सु-शासन की नींव नहीं रख सकता। प्रधानमंत्री पद पर तो वो संभ्रांत वर्ग ही अच्छा लगता है जिससे रईसी की खूशबू आती हो। विडंबना यह है कि पिछले 9 वर्षों में देश की जनता ने दो बार पूर्ण सहमति से कांग्रेस को संदेश दिया है कि उन्हें प्रधानमंत्री पद पर आम सेवक भी स्वीकार है। हालांकि कांग्रेस के लिए जनता के इस फ़ैसले को स्वीकार करना असंभव सा दिखाई देता है और यह बात कांग्रेसियों के आचरण में बार बार झलकती है। इस प्रकार का ऐतिहासिक परिवर्तन करने के लिए उन्हें पार्टी में लोकतंत्र को अपनाना होगा जो संभव ही नहीं है। दूसरी ओर राजनीतिक विफलताओं ने कांग्रेस को आज स्थानीय दलों से हाथ मिलाने के लिए मजबूर कर दिया है। हालांकि पार्टी गठबंधन में भी यह संदेश देने में लगी है कि साथ में कोई भी आए राजगद्दी तो हमें ही मिलेगी।
कांग्रेस को किस का साथ मिलता है या नहीं यह राजनीतिक विशेषज्ञों के लिए छोड़ देते हैं। फिलहाल तो पार्टी से इतनी उम्मीद है कि वो कोशिश करे कि अपने आपको लोकतांत्रिक राजनीतिक दल स्वीकार कर पाए। जिस लोकतंत्र के खतरे की बात राहुल गांधी करते हैं वो वास्तव में उस दिन सुरक्षित होगा जब कांग्रेस इस भ्रम से बाहर निकलेगी कि भारत के निर्णय निर्वाचित सरकार लेगी न कि कोई एक शाही परिवार।
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