इसे संयोग नहीं कहा जा सकता कि नई दिल्ली में G-20 सम्मेलन के समय ही राहुल गांधी यूरोपीय देशों के दौरे पर हैं और वहाँ वही सब कर रहे हैं जिसके लिये वे जाने जाते हैं, अर्थात नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की आलोचना। देखा जाए तो जो राहुल गांधी कर रहे हैं या कह रहे हैं, उसे आलोचना भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि हर तरह की आलोचना का एक तरीका होता है, निर्धारित विषय होते हैं, उन विषयों के लिए भाषा होती है और जाहिर है कि शब्द भी होते हैं।
विपक्ष के एक नेता के रूप में सरकार और उसके नेतृत्व की आलोचना करना राहुल गांधी का अधिकार है पर प्रश्न यह है कि यह उन्हें देश के बाहर ही रह कर क्यों करना है? विपक्ष के और भी तो नेता हैं जो प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की आलोचना देश में ही रह कर करते हैं। देखा जाए तो सरकार के कामकाज को लेकर आलोचना का जो बाजार देश में मिलेगा वह विदेश में तो मिलने से रहा। ऐसे में सत्ता में वापसी के लिए प्रयासरत विपक्ष का प्रमुख नेता विदेश में किस वोट बैंक से मुखातिब है?
भारत की जनसंख्या आज एक सौ चालीस करोड़ मानी जाती है जो जाहिर है कि पूरे यूरोप की जनसंख्या का कई गुना अधिक है। ऐसे में अपने विचारों की स्वीकार्यता के लिए इतनी बड़ी जनसंख्या को त्यागकर राहुल गांधी सौ सवा सौ लोगों को अपने विचार, आइडिया या विरोध के स्वर क्यों सुना रहे हैं? वे अपने विचारों से किन लोगों को प्रभावित करना चाहते हैं? प्रश्न यह भी है कि वे जिन्हें प्रभावित करना चाहते हैं, भारतीय लोकतंत्र में उनकी क्या भूमिका या साझेदारी है?
राहुल गांधी जो कर रहे हैं, उसे क्या केवल यह बताकर पीछे फेंका जा सकता है कि चूँकि आज दुनिया का हर देश एक वैश्विक परिवेश का हिस्सा है इसलिए ऐसा करना आवश्यक है? अपने पिछले दौरे में वे जब ब्रिटेन में थे तब उन्होंने बाकायदा शिकायत की थी कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश केवल व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से बच रहे हैं, हस्तक्षेप करना इन देशों का कर्तव्य है। उनके इस विचार को उनके सलाहकार सैम पित्रोदा ने सही भी ठहराया था।
राहुल गांधी के सलाहकारों की भारतीय लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अपनी समझ है और वह समय समय पर दिखाई देती रही है। शायद यही कारण है कि वे अब जो कहते हैं या करते हैं, उससे विदेशी भले आश्चर्यचकित होते हों या ऐसा करने का अभिनय करते हों पर भारतीयों को अब शायद ही आश्चर्य होता होगा। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि लोकतंत्र में जिस विपक्ष के हितों पर लगातार प्रहार करने का आरोप मोदी और उनकी सरकार पर राहुल गांधी, उनकी पार्टी और उनका परिवार लगाता रहता है, वह विपक्ष अपने लिए विदेशों में कौन सा स्पेस तलाश रहा है?
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