“कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हुआ और मोहब्बत की दुकान खुली है”
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ये बयान कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद दिया था। राहुल गाँधी ने इस बड़ी जीत के बाद ये भी कहा था, “हमने कर्नाटक में नफरत से नहीं, बल्कि प्यार से और दिल खोलकर लड़ाई लड़ी”
ये शब्द उनके दावे को उस समय इसलिए मजबूती दे पा रहे थे क्योंकि उस समय परिणाम उनके पक्ष में था। हालाँकि तथ्य यही था कि कर्नाटक की जीत सिद्धारमैया एवं डीके शिवकुमार की रणनीति की जीत थी।
इस रणनीति में उन्होंने राहुल गाँधी को तो चुनावी प्रचार से किनारे लगा लिया था लेकिन प्रचार में राहुल गाँधी की असल मोहब्बत वाली दुकान को पूरी जगह दी।
इसका पहला प्रयोग तो ये रहा कि कांग्रेस ने SDPI से भी गठबंधन किया। वही SDPI, जो प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन पीएफआई की पॉलिटिकल विंग है। यानी कांग्रेस ने एक आतंकवादी संगठन से भी मोहब्बत करने में कोई परहेज़ नहीं किया।
अब इसका परिणाम ये है कि आतंकवादी संगठन के साथियों (SDPI) में भी राहुल गाँधी वाली मोहब्बत का असर हुआ है। प्रमाण इस वीडियो में है जहाँ SDPI की महिला लीडर अपने भाषण में देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री सहित भाजपा नेताओं को धमकी दे रही है।
यहाँ तक कि इस भाषण में उन्होंने सभी हिन्दुओं को भी चेतावनी दी है।
SDPI के इस नफरत भरे आत्मविश्वास का स्रोत क्या हो सकता है? कांग्रेस की जीत या राहुल गाँधी की मोहब्बत की दुकान? सवाल तो ये भी है कि राहुल गाँधी की ऐसी दुकान लगाने का प्रेरणा स्रोत क्या हो सकता है ?
शरद पवार? जो कहते हैं कि कर्नाटक की जीत में राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा की भूमिका थी।
विपक्षी दलों के ऐसे समर्थन के बाद तो इस दुकान के प्रोडक्ट अब कर्नाटक सहित सभी कांग्रेस शासित राज्यों में दिख रहे हैं या दिखने वाले हैं। जहाँ कर्नाटक के मुख्यमंत्री मात्र एक फेसबुक पोस्ट पर आलोचना के लिए शिक्षक को निलंबित कर देते हैं। वहीं राजस्थान में अशोक गहलोत हिन्दुओं के घर उजाड़ कर मोहब्बत का परिचय दे रहे हैं।