कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में अब विकास का मुद्दा एक पक्षीय ही रह गया है। वजह है कॉन्ग्रेस का घोषणा पत्र जिसमें हिंदू वोट के लिए फ्री बिजली, एवं रेवड़ियों का वादा किया गया है। वहीं, मुसलमानों के लिए बजरंग दल को प्रतिबंधित करने एवं असंवैधानिक 4 प्रतिशत आरक्षण की बहाली करने जैसी घोषणाएं शामिल है। घोषणा पत्र के वादों पर चर्चा हो इससे पहले बजरंग दल को लेकर उठा विवाद महत्वपूर्ण है।
यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि कॉन्ग्रेस ने बड़ी सफाई से पीएफआई एवं बजरंग दल को एक तराजू में रख दिया है। कट्टरपंथी संगठन एवं सांस्कृतिक संगठन के बीच यह समानता धरातल पर नहीं कॉन्ग्रेस के एजेंडे में है। उसी एजेंडे में जिसकी योजना कॉन्ग्रेस ने अपनी सत्ता के दौरान हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने के दौरान बनाई थी। वोट बैंक और राजनीतिक लाभ के लिए कॉन्ग्रेस के तपस्वी बनने का पाखंड भी उसे उसकी पारंपरिक धार्मिक तुष्टिकरण नीति से दूर नहीं रख सकते।
बजरंग दल पर बात हो इससे पहले कॉन्ग्रेस पर बात की जानी चाहिए। कॉन्ग्रेस के लिए भगवान हनुमान और उनको पूजने वाले लोगों का विरोध नया नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में श्रीराम को काल्पनिक बता चुकी कॉन्ग्रेस क्यों हनुमान के अस्तित्व को मानेगी? फिलहाल सांस्कृतिक संगठन को प्रतिबंधित करने को लेकर कॉन्ग्रेस बैकफुट पर आ गई है। पार्टी के नेता तो दावे भी करने लगे हैं कि घोषणा पत्र में ऐसा नहीं है।
कहते हैं न कि इतिहास अपने आपको दोहराता है। बहरहाल कॉन्ग्रेस के मामले यह बिलकुल सही है। इससे पहले भी कई बार कॉन्ग्रेस ने बजरंग दल को प्रतिबंधित करने की योजनाएं बनाई है और हर बार तथ्य की कमी में हाथ पीछे लेने पड़े हैं। कर्नाटक चुनाव में कॉन्ग्रेस के घोषणा पत्र ने मात्र यादें ताजा की हैं। इससे पहले अक्टूबर, 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल को प्रतिबंधित करने के लिए बाकयदा कैबिनेट बैठक बुलाई थी। साथ ही ओडिशा में बीजेपी को चहुँओर से घेरते हुए आर्टिकल 356 के प्रयोग के जिक्र के साथ ही कहा गया था कि साम्प्रयादिक हिंसा आतंकवाद जितनी ही खतरनाक है।
इसके साथ ही कॉन्ग्रेस ने उस समय बजरंग दल की तुलना SIMI से की थी। वही SIMI जिसको अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीकी और अन्य साथियों के द्वारा वर्ष, 1977 में बनाया गया था। SIMI के सदस्य खुले तौर पर बम विस्फोट करते हुए पकड़े गए थे और पकड़े जाने पर खुद को महमूद गजनवी से जोड़ रहे थे। SIMI भारत में हिंसक तरीके से हिंदू धर्म के चिन्ह यानी हिंदुओं को समाप्त करने के उद्देश्य से बनाया गया था। JNU में भारत विरोधी नारेबाजी से विवादों में आने के बाद UAPA में जेल काट रहे उमर खालिद के पिता भी इसी SIMI की लीडरशिप का हिस्सा रहे थे। संगठन के अलगाववादी विचारों, आतंकवादी संगठनों से जुड़ाव और उनकी मदद करने के कारण अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने पोटा कानून के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। हां, इस बैन को हटाने के लिए कॉन्ग्रेस के वकील ने कोर्ट में अपनी जी जान लगा दी थी।
SIMI का संस्थापक रहा मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीकी अब अमेरिका में एक पाकिस्तानी अब्दुल मालिक मुजाहिद के साथ मिलकर अमेरिका में भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले इन्डियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल और जस्टिस फॉर आल जैसे संगठनों के साथ काम कर रहा है।
वहीं, SIMI के बैन के बाद इससे कई और संगठन निकल कर सामने आए थे। इन संगठनों को SIMI के ही सदस्यों द्वारा बनाया गया था। SIMI के स्थापना करने वाले व्यक्तियों में से एक पी कोया (SIMI का फाउंडर सदस्य था ) ने ही बाद में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF) की स्थापना की, जिसका आगे चलकर विलय PFI में कर दिया। PFI में ही कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, और महिला नीति पसाराई भी मिले थे जिनका संबंध भी SIMI से था।
अब इसी पीएफआई से बजरंग दल की तुलना की जा रही है। पीएफआई ऐसा संगठन जिसके दस्तावेजों में सामने आया था कि इसकी योजना भारत को वर्ष 2047 तक इस्लामी राष्ट्र बनाने की थी। पीएफआई द्वारा बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को घुटनों पर लाकर इस्लाम का गौरव पुनः प्राप्त करने, युवकों को भर्ती करने एवं हथियारों की ट्रैनिंग देने की बात सामने आई थी। साथ ही विदेशी मंचों पर भारत की छवि खराब करने के लिए संगठन को विदेशी चंदा भी प्राप्त होता है। NIA ने भी अपनी चार्जशीट में इस्लामिक संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा देश के खिलाफ सेना तैयार करने एवं युद्ध छेड़ने की बात कही थी।
ऐसे में ISIS जैसे संगठनों से संबंध और अलगाववाद से जुड़े होने के कारण पीएफआई को प्रतिबिंधित कर दिया गया था। अब मसला यह है कि SIMI को बैन करने की हिम्मत कभी कॉन्ग्रेस की हुई नहीं। पीएफआई पहले से प्रतिबंधित संगठन है। ऐसे में मुस्लिम वोट बैंक के लिए बजरंग दल को इस श्रेणी में खड़ा करना अनिवार्य सा प्रतीत हो रहा है।
PFI जैसा है कॉन्ग्रेस का घोषणा पत्र: हिमंत बिस्वा सरमा
हिंदू घृणा और आडंबर से परिपूर्ण सिक्यूलरिज्म को दर्शाने के लिए कॉन्ग्रेस ने तो 2008 में ही कर्नाटक सरकार को भंग करने का खाका तैयार कर लिया था वो बजरंग दल को आगे रखकर। कर्नाटक में आतंकवाद फैला रहे संगठन इंडियन मुजाहिदीन के खिलाफ योजना बनाने का कॉन्ग्रेस का अपना सिक्यूलर तरीका था।
आतंकवादी समगठन इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना अब्दुल सुभान कुरैशी द्वारा की गई। भटकल ब्रदर्स का इसमें योगदान सभी जानते हैं। इसके द्वारा अहमदाबाद में बम विस्फोटों से कुछ मिनट पहले 14 पेज का घोषणा-पत्र ई-मेल किया जिसमें बम विस्फोटों के कारणों को बताया गया है और कहा गया है कि वे भारत में जिहाद करने के लिए पैदा हुए हैं।
ई-मेल से भेजे गए घोषणा-पत्र ‘द राइज ऑफ जिहाद’ में कहा गया है कि गुजरात में वर्ष 2002 में मुस्लिम विरोधी हिंसा का बदला लेने के लिए यह विस्फोट किए गए हैं।
धार्मिक तुष्टिकरण की राजनीति का नुकसान ही यही है कि आप भूल जाते हैं कि समर्थन की सीमा कहाँ तक होनी चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने वाले दिग्विजय सिंह ने बाटला हाउस एनकाउंटर को ऑन रिकॉर्ड कई बार फर्जी करार दिया था। सलमान खुर्शीद की माने तो घटना में मारे गए आतंकियों की तस्वीरें देख कर सोनिया गांधी रो पड़ी थी। कांग्रेस के अनुसार याकूम मेनन को फांसी एक राज्य प्रायोजित हत्या थी। अफजल गुरु को फांसी एक गलती थी और 26/11 आरएसएस ने करवाया था।
हिंदू घृणा और धार्मिक तुष्टिकरण पर कॉन्ग्रेस ने 75 वर्षों तक राजनीति की है। इससे बाहर निकलना अब आसान नहीं है। यही कारण है कि लगातार चुनावों में मिल रही हार के बाद एक बार फिर पारंपरिक ग्रीन कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है।
बजरंग दल पर प्रतिबंध नहीं लगेगा अगर कानूनी नियामवलियां मानी गई तो पर सर्वप्रथम सवाल यह है कि किसी संगठन पर बैन कब लगना चाहिए? जब उसके सदस्य अनैतिक काम में लिप्त हो तब या संगठन का उद्देश्य ही अलगाववाद एवं कट्टरपंथ को बढ़ावा देना हो तब। कॉन्ग्रेस अपने चुनावी सिक्यूलरिज्म के चश्मे से यह फर्क नहीं कर पाती है। बजरंग दल के सदस्यों को हिंसा से जोड़कर सांस्कृतिक संगठन को बैन करने की बात कहने वाली कॉन्ग्रेस स्वयं के संगठन पर यह तर्क क्यों इस्तेमाल नहीं करती जबकि गोधरा आतंकवादी हमले में मुख्य आरोपी फार्रूख भाणा सहित कॉन्ग्रेस के तीन नेताओं को भी सजा सूनाई गई थी। ऐसे में क्या कॉन्ग्रेस को प्रतिबंधित कर देना चाहिए?
प्रतिबंध की बात है तो कॉन्ग्रेस सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहने वाली पार्टी है। इसके पास मौके भी थे और समय भी जिसमें वो आतंकवादी संगठनों को बैन कर सकती थी। हालाँकि ऐसा नहीं किया गया। पीएफआई को बैन करने का खयाल इसे बैन करने के बाद ही क्यों आया जबकि यह संगठन तो पिछले चुनावों में भी मौजूद था। इसका एक कारण यह हो सकता है कि बीते चुनावों में कॉन्ग्रेस ने पीएफआई के राजनीतिक विंग SDPI से पर्दे के पीछे सांठ-गांठ की थी। ऐसे में पीएफआई को बहाल रखना पूर्व चुनावों में राजनीतिक लाभ का हिस्सा था। अब यह पहले से प्रतिबंधित है तो इसका समर्थन करना वोट को नुकसान पहुँचाएगा।
इस पूरी स्थिति में बजरंग दल की भूमिका क्या है इसे समझने के लिए कॉन्ग्रेस की मनोस्थिति समझना जरूरी है। कॉन्ग्रेस की मनोस्थिति है बैलेंस बनाने की। यहां बात सामाजिक बैलेंस की नहीं उस सिक्यूलरिज्म की हो रही है जिसकी धारणा औपनिवेशिकता से अपनाकर चुनावी लाभ के लिए संविधान में शामिल कर दी गई थी। कॉन्ग्रेस के सिक्यूलरिजम को साकार करने के लिए आवश्यक है कि कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन के साथ हिंदू संगठन भी बैन किए जाए चाहें वे सांस्कृतिक ही क्यों न हो। आतंकवाद को कोई धर्म नहीं होता चिल्लाने वाली का़न्ग्रेस भगवा आतंकवाद की धारणा को साकार करने के लिए हिंदू सांस्कृतिक संगठनों को पीएफआई से जोड़ती है।
बात बजरंग दल की हो या विश्व हिंदू परिषद की यह तो तय है कि अपने सेक्स्यूलरिज्म को साबित करने के लिए कॉन्ग्रेस ने हिंदू वर्ग को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है। जिसमें आतंकी हमले की जिम्मेदारी भले ही आईएसआईएस और इंडियन मुजाहिदीन ले पर बैन करने की मांग हिंदू सांस्कृकि संगठन की ही उठेगी।
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वर्ष, 1992 को जब भीड़ ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दिया था, तब कॉन्ग्रेस नरसिम्हा राव सरकार ने अपना स्वपन पूरा करते हुए बजरंग दल के अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS), विश्व हिन्दू परिषद (VHP) पर बैन लगा दिया था। साथ ही संगठन के कार्यकर्ताओं पर कई गंभीर आरोप भी लगाए थे। हालांकि सबूतों एवं तथ्यों की कमी से प्रतिबंध के 6 महीने में ही गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) ट्रिब्यूनल ने बजरंग दल से प्रतिबंध हटा दिया था।
अंधेरे में तीर चलाने वाली कॉन्ग्रेस की वास्तविकता यही है जो सिक्यूलर दिखावे के लिए बजरंग दल को खत्म तो करना चाहती है पर इसके लिए आधार ढूँढ़ने में नाकाम रही है। कर्नाटक चुनाव में एक बार फिर बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात करके पार्टी ने स्वयं के पैर पर कुल्हाड़ी तो मारी ही है। साथ ही अपनी हिंदू घृणा को सार्वजनिक भी कर दिया है। इस घृणा का कारण पूछने पर वे बजरंग दल को बजरंग बली से अलग तो बताते हैं पर यह बताने में नाकाम है कि पीएफआई एवं सांस्कृतिक संगठन में क्या समानता है।
प्रश्न तो यह भी है कि सत्ता हासिल करने के लिए कॉन्ग्रेस कब तक सामाजिक ताने-बाने में छिद्र बनाती रहेगी। अपने घोषणा पत्र को जायज ठहराने वाली कॉन्ग्रेस क्या यह तय कर पाई है कि उसके सिक्यूलरिज्म में बलि हमेशा हिंदू की ही क्यों चढ़ती है?