कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए पहले मुँह फाड़ कर वादे करती है और जैसे ही वो सत्ता में आती है इन वादों से किनारे होने लगती है। कांग्रेस के चुनावी वादों के लिए ये लाइन एकदम फिट बैठती है कि चले तो चाँद तक, वरना शाम तक। वैसे तो ये लाइन चायनीज सामान पर फिट बैठती हैं लेकिन कांग्रेस और उसके चुनावी वादे किसी चायनीज सामान से कम हैं क्या? कांग्रेस द्वारा कर्नाटक में किए चुनावी वादों का हाल भी कुछ ऐसा ही है।
मामला कर्नाटक का है, जहाँ पर हाल ही में कोंग्रेस के पल्ले सत्ता पड़ी है। अभी CM ने शपथ भी नहीं ली है और इसके नेता अपने चुनावी वादों से किनारा कर रहे हैं। कर्णाटक में बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा और कांग्रेस सत्ता में आ गई, राहुल गांधी ने चुनावी रैलियों से डींगें मारी थीं कि महिलाओं को फ्री बस सर्विस देंगे जबकि अब कांग्रेस नेता शिवकुमार कुछ और ही कहते नज़र आ रहे हैं।
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डीके शिवकुमार कर्नाटक में अब उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं, इस से पहले उन्होंने इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई से बातचीत में कहा है कि वो सभी महिलाओं को फ़्री बस सर्विस नहीं देने वाले बल्कि कुछ सेलेक्टेड महिलाओं के लिए कांग्रेस ने चुनावी रैलियों में ये बात कही थी ।
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब कांग्रेस सत्ता में आने के बाद खुद अपनी बातों से मुकर गई हो। यही फॉर्मूला मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल और बाकि राज्यों में कांग्रेस ने अपनाया है। मध्य प्रदेश में ही अगर देखें तो कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सौ यूनिट माफ़ और दो सौ यूनिट हाफ़ का नारा लगा रहे हैं। ये वही कांग्रेस है जो किसानों का कर्जा माफ़ नहीं कर पाती है, जबकि सत्ता में आने के लिए किसानों को ये सपना दिखाती है। राजस्थान, हिमाचल और अब कर्नाटक में किये हुए वादों से कांग्रेस किनारा कर लेते हैं।
ये कांग्रेस की आदत है और लोगों को खुश कर देने के झूठे हथकंडे को अब कांग्रेस हिमाचल और कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश में भी चुनाव से पहले अपनाने लगी है। किसी राज्य में, महिलाओं के नाम पर सम्मान निधि तो कहीं गैस सिलेंडर में छूट देने की डींगों की घोषणा करके सत्ता में आते ही किनारे हो जाना कांग्रेस का इतिहास रहा है।
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मध्य प्रदेश में कांग्रेस अच्छे से जानती है कि वहाँ बिना श्रीराम के काम नहीं चलेगा। ‘राम वन गमन पथ’ की ही बात कर लें तो इसके लिए ट्रस्ट का निर्माण भी शिवराज चौहान सरकार के दौरान हो पाया। हाँ, क्रेडिट लेने के लिए कमलनाथ आगे आते ज़रूर दिखे। इस बार तो वो कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ करने को भी कह रहे हैं। लेकिन वो भूल गए कि उन्होंने कभी सत्ता में लौटने के लिए किसानों से कर्ज माफ़ी की बात कही थी। साथ ही यह वादा किया था कि सत्ता में आने दस दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ़ कर देगी।
अब राजस्थान की बात करें, तो अशोक गहलोत राजस्थान में सरकारी नौकरियां नहीं दे पाए और बेरोज़गार लगातार धरना देते दिखते हैं। मज़े की बात देखिए, कि पिछले साल गुजरात में सरकार बनाने के लिये इसी कांग्रेस ने गुजरात में 10 लाख नौकरी देने की गप्पें मारी थी, शायद कांग्रेस इसलिए भी इतनी लंबी फेंक देती है क्योंकि उसे भी यक़ीन रहता है कि, कौनसा जनता उन्हें सत्ता सौंपने ही वाली है?
राजस्थान में सैनिकों की विधवाएं भी कुछ समय पहले सड़क पर प्रदर्शन कर रही थीं, महिला सम्मान के नाम पर वो कांग्रेस को नज़र नहीं आतीं। राज्य में बलात्कार की घटनाओं के आंकड़े देखिये, लॉ एन्ड आर्डर की स्थिति वहां पर बदहाल है।
राजस्थान में भी अब फिर चुनाव हैं लेकिन पिछले चुनाव में किए हुए बेरोजगारी भगाने, भत्ता देने, किसानों को कर्जा देने, बिजली की क़ीमत ना बढ़ाने के वादे आज तक कांग्रेस पूरे नहीं कर पाई है। शायद उन्हें पार्टी के अंदर चलने वाले लड़ाई झगड़े से निपटने की ही फ़ुरसत नहीं है।
सवाल ये नहीं है कि वो ऐसा करेंगे या नहीं, सवाल जनता को वोट के लिए मूर्ख बनाने का है, जिसमें कांग्रेस से शायद ही कोई जीत सके। सरकार बनने से पहले ही कांग्रेस ने ये साफ़ कर दिया है कि उनके चुनावी वादे सिर्फ़ किसी भी तरह से सरकार में आने के लिए होते हैं। और सत्ता में आने के बाद उनका अपने ही वादों से अगर कोई संबंध मिल जाता है तो उसे मात्र एक संयोग माना जाए।