हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग और EVM पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चुनाव आयोग के समक्ष इसको लेकर शिकायत भी दर्ज कराई थी। अब चुनाव आयोग ने कांग्रेस को 1600 पन्नों के जवाब में स्पष्ट कर दिया है कि EVM में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं थी। इसके बाद भी Congress चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रही है।
हरियाणा चुनाव कोई पहला चुनाव नहीं था जिसमें चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर congress ने सवाल उठाए हो। 2014 के बाद कांग्रेस ने देश में हुए लगभग हर उस चुनाव परिणाम पर सवाल उठाए जो उनके पक्ष में नहीं गया।
संस्थाओं को संदिग्ध करना Congress की राजनीति?
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस की राजनीति का अब यही मंत्र बन गया है कि जो भी संस्था या फिर संस्था का मुखिया उनके पक्ष में निर्णय ना दे, उसको बार-बार संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया जाये? मजे की बात ये है कि जब वही संस्था कोई ऐसा निर्णय देती है जो congress और इंडी गठबंधन के पक्ष में होता है तो ये लोग तुरंत दावा करते हैं कि लोकतंत्र की रक्षा बस यही संस्था कर रही है।
कांग्रेस पार्टी जब हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव जीती तो चुनाव आयोग और ईवीएम बहुत बढ़िया थे। यह तो रही राज्यों की बात। याद करें 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम आने से ठीक पहले Congress और उसके सहयोगियों ने क्या किया था? तब उनके करतबों और वक्तव्यों से यही लग रहा था जैसे कांग्रेस और उसका इकोसिस्टम देश में आग लगाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
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याद करें कि जयराम रमेश ने कैसे गृहमंत्री अमित शाह पर यह आरोप लगाया था कि वे देश के तमाम जिलाधीशों को फ़ोन कर रहे हैं ताकि चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सके। यह बात और है कि चुनाव आयोग द्वारा सबूत मांगे जाने के बाद जयराम रमेश ने चुप्पी साध ली और बाद में यह कह कर मामले पर पर्दा डाल दिया कि वे सबूत नहीं दिखा सकते। आज तक उन्होंने अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिए और अब तो देश उनके ये आरोप भूल भी चुका है।
अब आते हैं न्यायपालिका पर। पिछले कुछ दिनों से आपने देखा होगा कि देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पीछे कांग्रेसी इकोसिस्टम हाथ धोकर पड़ा है। जानते हैं क्यों? क्योंकि गणेश चतुर्थी पर CJI चंद्रचूड़ ने पीएम मोदी के साथ पूजा की थी।
इसके साथ ही उन्होंने आयुर्वेद के पक्ष में कुछ बातें कहीं। बस, इसके बाद से इकोसिस्टम CJI चंद्रचूड़ को निशाना बनाने में लगा है। उन्हें डिस्क्रेडिट करने का प्रयास कर रहा है। वामपंथी कारवाँ मैग्जीन ने उन पर एक कवर स्टोरी की है। इस स्टोरी का निहित उद्देश्य भी CJI को डिस्क्रेडिट करना ही है। पूरा इकोसिस्टम कारवाँ मैग्जीन की इस कवर स्टोरी पर आहें भर रहा है।
मजे की बात ये है कि कुछ समय पहले तक इन्हीं CJI चंद्रचूड़ को Congress और इकोसिस्टम एक तरह से पूजता था। जब CJI चंद्रचूड़ ऐसे निर्णय सुना रहे थे जिनका राजनीतिक लाभ कांग्रेस ले सकती थी तब उनकी शान में दिन-रात कसीदे पढ़े जा रहे थे।
तब CJI चंद्रचूड़ की वाहवाही की जा रही थी
याद कीजिए, इलेक्टॉरल बॉन्ड पर CJI चंद्रचूड़ ने सरकार के विरुद्ध निर्णय देते हुए चुनावी बॉन्ड की सभी जानकारी पब्लिक करने का आदेश दिया था। लोकसभा चुनावों से पहले दिए गए उस निर्णय का प्रभाव हमें चुनावों में भी दिखाई दिया।
कोर्ट के निर्णय के बाद कैसे कांग्रेस पार्टी की बाँछे खिल गईं थी, हम सबने देखा। हमने ये भी देखा है कि उस समय कैसे इकोसिस्टम ने उनकी वाहवाही की थी और आज उन्हीं को डिस्क्रेडिट करने का प्रयास किया जा रहा है।
सवाल उठ रहे हैं कि इकोसिस्टम आखिरकार ऐसा क्यों कर रहा है? क्या CJI चंद्रचूड़ पर किसी तरह का दबाव बनाने का प्रयास है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि 10 नवंबर को रिटायर होने से पहले वे कई महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय सुनाएंगे।
‘AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं?’ इस मामले में उनकी बेंच ने सुनवाई पूरी कर ली है, निर्णय आना बाकी है। अगर कोर्ट AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानता है तो AMU में SC-ST और OBC को आरक्षण दिया जा सकता है।
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AMU के साथ-साथ उनकी बेंच Uttar Pradesh Board of Madarsa Education Act, 2004 पर भी निर्णय देगी। इस कानून से यूपी सरकार मदरसों को संचालित करती है। कानून को रद्द करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
इसके साथ ही एक दो और भी महत्वपूर्ण निर्णय CJI चंद्रचूड़ रिटायर होने से पहले सुनाएंगे। सवाल उठ रहे हैं कि क्या इन मामलों में निर्णय को प्रभावित करने के लिए CJI पर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है?
Congress इकोसिस्टम का यह पैटर्न पुराना है
यह सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि यह कांग्रेसी इकोसिस्टम ही है जिसने पूर्व CJI रंजन गोगोई को इसलिए डिस्क्रेडिट किया था क्योंकि उनकी बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में निर्णय सुनाया था।
इकोसिस्टम ने निर्णय की कानूनी वैधता पर सवाल नहीं उठाए बल्कि जस्टिस गोगोई को डिस्क्रेडिट करने का अभियान चलाया।
जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ भी यही किया गया। रामजन्मभूमि केस की सुनवाई आरंभ करने के उनके वक्तव्य के बाद उन्हें लगातार निशाना बनाया गया। कांग्रेस पार्टी ने उनके विरुद्ध महाभियोग लाने का प्रयास भी किया।
विपक्ष में रहते हुए संस्थाओं या संस्थाओं को नेतृत्व देने वालों को discredit करने का यह कांग्रेसी कल्चर पुराना है। इसी तरह सत्ता में रहते हुए पार्टी के ख़िलाफ़ जाने वालों पर बदले की कार्रवाई भी समय समय पर इसी कांग्रेस की राजनीतिक परंपरा का सबूत रही है।
ऐसे में एक बात स्पष्ट है कि चाहे चुनाव आयोग की बात हो या फिर न्यायपालिका की, Congress और इकोसिस्टम इसी सिद्धांत पर चलते दिखाई देते हैं कि अगर उनके पक्ष में निर्णय नहीं आता तो उस संस्था को ही संदिग्ध बना दिया जाए।
पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा कि चुनाव आयोग और न्यायपालिका की तरह ही देश की लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं को डिस्क्रेडिट करने का प्रयास किया जा रहा है। चाहे वो ED हो, SEBI हो, CBI हो या फिर NIA हो। अलग-अलग तरीकों से निरंतर यही प्रयास किए जा रहे हैं कि इन संस्थाओं की विश्वसनीयता संदिग्ध कर दी जाए।