राजनीति के आपराधीकरण और कानून व्यवस्था को लेकर हो हल्ला मचाने वाली कॉन्ग्रेस खुद ही धनबल को बढ़ावा देने के आरोपों में घिरती नजर आ रही है। असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) नाम की एक संस्था के द्वारा 7 नवम्बर को जारी की गई एक रिपोर्ट में कई जानकारियाँ सामने आई हैं।
संस्था ने वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2019 तक हुए सभी विधानसभा एवं संसदीय चुनावों तथा उपचुनावों में भाग लेने वाले उम्मीदवारों तथा विजयी उम्मीदवारों की संपत्ति, उनके ऊपर लगे आपराधिक एवं गंभीर आपराधिक मामले तथा शैक्षिक योग्यता आदि का विश्लेषण किया है।
राजनीति में धन-बल आज एक कड़वी सच्चाई है। रिपोर्ट के अंदर सभी दलों के उम्मीदवारों एवं जनप्रतिनिधियों का विश्लेषण किया गया है। इसमें यह बात सामने आई है कि कॉन्ग्रेस से जुड़े उम्मीदवार एवं जनप्रतिनिधि सबसे ज्यादा सम्पत्ति वाले हैं एवं उन्हीं के खिलाफ ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं।
कॉन्ग्रेस के 32% उम्मीदवार, 35% सांसद-विधायक आपराधिक मामलों वाले
असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2004 से लेकर अभी तक हुए सभी चुनावों में कुल 6043 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई है। इनमें से 972 उम्मीदवार ऐसे थे जिन्होंने यह घोषित किया कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले है। वहीं 511 उम्मीदवार गंभीर आपराधिक मामले वाले थे।
अगर दलवार बात करें तो कॉन्ग्रेस के द्वारा 2004 के बाद से घोषित किए गए कुल 659 उम्मीदवारों में 212 (32%) उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे और इनमें से 106 (16%) ऐसे थे जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे।
कॉन्ग्रेस की तरफ से चुने गए सांसदों-विधायकों की बात करें तो 226 जनप्रतिनिधियों में से 80 (35%) जनप्रतिनिधि आपराधिक मामलों वाले थे, इनमें से 41 (18%) गंभीर आपराधिक मामलों वाले थे। यह किसी भी अन्य दल से ज्यादा है।
गुजरात में 2 दशक से अधिक सत्ता में काबिज भाजपा के कुल उम्मीदवारों में से 24% और जनप्रतिनिधियों में से 14% आपराधिक मामलों वाले थे। वहीं उम्मीदवारों एवं जनप्रतिनिधियों में से क्रमशः 23% एवं 14% गंभीर आपराधिक मामलों वाले थे।
संपत्ति के मामले में भी सबसे आगे कॉन्ग्रेसी
संपत्ति के मामले में बात करें तो गुजरात के अंदर चुनावों में हिस्सा लेने उम्मीदवारों में से कॉन्ग्रेसी उम्मीदवार ही सबसे मालदार हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कॉन्ग्रेस के 684 उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 6.33 करोड़ रुपए है, जबकि 226 कॉन्ग्रेसी जनप्रतिनिधियों की औसत संपत्ति 6.32 करोड़ रुपए है।
भाजपा के 684 उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 5.27 करोड़ रुपए और 442 जनप्रतिनिधियों की औसत संपत्ति 5.87 करोड़ रुपए है। ऐसे में यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि संख्या में लगभग आधे होने के बाद भी कॉन्ग्रेसी जनप्रतिनिधियों की औसत संपत्ति भाजपा के जनप्रतिनिधियों से कहीं ज्यादा है।
इन रिपोर्ट के आंकड़ों से स्पष्ट है कि लगातार दो दशक से भी अधिक समय तक सत्ता से बाहर रहने वाली कॉन्ग्रेस के पास वित्तीय संसाधनों की कोई कमी नहीं हुई है।
कॉन्ग्रेस द्वारा सरकार पर इस समय चल रहे गुजरात के चुनाव में धन बल के इस्तेमाल की बाते भी अप्रभावी सिद्ध हो रहीं हैं। इसके उलट उनके खुद के जनप्रतिनिधि गंभीर आपराधिक आपराधिक मामलों से घिरे हुए हैं।