लोकसभा में आज महिला आरक्षण बिल पर बहस होगी। इससे पहले कांग्रेस नेता जयराम नरेश ने विधेयक को सत्तारूढ़ सरकार का चुनावी जुमला घोषित कर दिया है। प्रश्न यह उठता है कि मोदी सरकार द्वारा बिल संसद में पेश करके पास करवाना यदि मात्र चुनावी दांव है तो बिल पेश करने से पूर्व सोनिया गांधी द्वारा इसे अपना बताना भी चुनावी स्टंट से अधिक कुछ कहा नहीं जा सकता है।
कांग्रेस अगर मोदी सरकार को विधेयक का श्रेय मिलने से परेशान है तो उसे इतिहास को एक बार पलट कर देख लेना चाहिए कि आखिर 27 वर्षों से लंबित विधेयक मोदी सरकार के पलड़े में कैसे आ गया? विधेयक को चुनावी जुमला बताकर भी जयराम नरेश यह साबित नहीं कर सकते कि बीजेपी महिला आरक्षण विरोधी है क्योंकि संसद में किसी भी समयसीमा में पेश विधेयक के विरोध में कभी भी बीजेपी का नाम शामिल नहीं रहा।
महिला आरक्षण विधेयक को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान 4 बार सदन में पास कराने की कोशिश की गई थी। यह वाजपेयी सरकार की महिला भागीदारी को लेकर गंभीरता ही थी जिसने उन्हें ऐसा करने को लेकर प्रेरित किया। प्रश्न यह है कि इसका विरोध कौन कर रहा था? इसका विरोध कर रहे थे कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल दल समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल। लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न उठाने वाले गठबंधन दलों में से एक राष्ट्रीय जनता दल के नेता सुरेंद्र प्रसाद यादव ने तो तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के हाथ से विधेयक की कॉपी छीन कर सदन में ही फाड़ दी थी। तब महिला विरोधी कौन था और कौन चुनावों के लिए इसका इस्तेमाल करना चाह रहा था?
विपक्ष में रहकर सरकार पर और सत्ता में रहकर विपक्ष पर आरोप लगाकर कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। आज मल्लिकार्जुन खड़गे कह रहे हैं कि यह कोई नया बिल नहीं है, यूपीए ने इसे राज्यसभा में पास करवाया था। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष के लिए यह जवाब देना आसान नहीं होगा कि यूपीए इसे लोकसभा में पारित क्यों नहीं करवा पाई?
सदन में बिल पास होने से पूर्व संपूर्ण इंडि गठबंधन यह प्रचारित करने में लग गया है कि बिल का लाभ महिलाओं को 2024 में नहीं मिलेगा। सदन में महिला भागीदारी में देर के प्रति अगर कांग्रेस में गंभीरता होती तो यह बिल 2009 में पास हो गया होता और 2011 की जनगणना के बाद ही महिलाओं को इसका लाभ उठाने का अवसर मिलता। अब मामला खिसयानी बिल्ली के खंभा नोचने तक पहुँच गया है।
मनमोहन सरकार में राज्यसभा में विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद भी सरकार तीन-साढ़े तीन वर्षों तक सत्ता में थी पर अपने विपक्षी दलों को विश्वास में नहीं ले सकी। क्या जयराम नरेश आज यह कह सकते हैं कि यूपीए सरकार की विफलता बीजेपी के विरोध के कारण थी?
किसी भी प्रकार अगर कांग्रेसी नेता आज महिला भागीदारी से जुड़े विधेयक को सरकार का चुनावी जुमला बताते हैं तो उन्हें भी विधेयक को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह इस्तेमाल करने का आरोप सहने के लिए तैयार रहना होगा।
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