जब देश महामारी का दंश झेल रहा होता है तब उसके नियंत्रण की जिम्मेदारी देश के नागरिकों के ऊपर भी उतनी ही रहती है जितनी शासन और प्रशासन पर। पिछले ढाई वर्षों से कोरोना जिस तरह से वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रभावित कर रहा है, यह बेहद चिन्ताजनक है।
बीते कई दशकों में दुनिया ने इस तरह की संक्रमण और प्रसार वाली कोई और महामारी शायद ही देखी हो।
नागरिकों के दायित्व के साथ ही किसी भी महामारी के दौरान स्पष्ट दृष्टिकोण, दृढ़ और मजबूत निर्णय लेने वाले नेतृत्व की भी आवश्यकता होती है। यह आवश्यकता यदि पूरी हो जाती है तो नागरिक अपने सामाजिक दायित्व का पालन करके उस नेतृत्व का काम आसान कर देते हैं।
इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि महामारी से बचने के लिए किए गए उपाय तभी सफल होते हैं जब सत्ता और शासन को समाज का साथ मिले। समाज में हर किसी के अपने-अपने कर्तव्य हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिक के, प्रशासन के, शासन के और विपक्ष सहित सबके अपने कर्तव्य हैं। इनमें से यदि एक भी अपना कर्तव्य ठीक से न निभा पाए तो यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि बाक़ी लोगों के प्रयास विफल हो सकते हैं।
जब दुनिया यह सोचकर चैन कि साँस ले रही थी कि कोरोना अब शायद ख़त्म हो गया है, चीन में एक बार फिर से वायरस का संक्रमण बढ़ा। नए वैरिएंट, चीन की अपनी वैक्सीन की गुणवत्ता, ख़राब व्यवस्था और कोरोना को नियंत्रित करने की उसकी नीति के चलते एक बार फिर संक्रमण तेज़ी से बढ़ा और अब दुनिया भर को लग रहा है कि उस पर कोरोना के नए तरह से संक्रमण का ख़तरा मंडराने लगा है।
ज़ाहिर है कि हमारा देश और सरकार भी सकते में है। संसद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने सरकार की तैयारी की जानकारी देते हुए कहा था कि कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ इसलिए हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। विरोध में इस पर विपक्ष की ओर से आवाज आई कि आप ‘क्रोनोलॉजी समझिए’।
क्रोनोलॉजी तो विपक्ष समझे कि कैसे कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार ने कोरोना का बहाना लगाकर बाड़ेबंदियाँ क्यों की थी? जबकि स्वास्थ्य का मुद्दा तो राज्य सूची का विषय है। आज जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राहुल गाँधी को पत्र लिखकर भारत जोड़ो यात्रा में कोरोना को लेकर बनाए गए नियमों के पालन करने की बात करते हैं और साथ ही यात्रा को रद्द करने की संभावना तलाशने का अनुरोध करते हैं तो कॉन्ग्रेस और इसके वरिष्ठ नेताओं के लापरवाही पूर्ण बयान सामने आते हैं। यही नहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के ऐसे अनुरोध को ही ये नेता राहुल गाँधी की यात्रा की सफलता का प्रमाण बता डालते हैं।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि बीजेपी सरकार भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ी भीड़ से डरी हुई है इसलिए इसे बंद करना चाहती है। कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी की ओर से आई है कि क्या गुजरात चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना प्रोटोकोल का पालन किया था?
ये है विपक्ष की जिम्मेदारी? ऐसे करेंगे लोकतंत्र की रक्षा। होना तो ये चाहिए था कि विपक्ष सत्तासीन सरकार को जिम्मेदारियाँ याद दिलाएं। ये बताए कि कहाँ कौन से राज्य में सरकार की तैयारी अधूरी है लेकिन कॉन्ग्रेस से ऐसी उम्मीद करना जैसे असंभव सा जान पड़ता है। यह वही पार्टी है, जिसने वर्ष 2021 में कोरोना की भीषण लहर के दौरान एक ‘टूलकिट’ जारी की थी जिसमें 10 बिंदुओं के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार का विरोध करने की सामग्री बताई गई थी।
ये ‘टूलकिट’ ही विपक्ष की गलती थी। सरकार की तैयारियों का विरोध करने के बजाए विपक्ष को यह करना चाहिए था कि वो ऐसा टूलकिट पेश करे जिसमें बताया गया हो कि अगर वो सत्ता में होते तो कैसे स्थिति का समाधान करते इससे शासन को ही नए उपाय मिलते। आख़िर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में विकल्प प्रस्तुत करना ही तो विपक्ष का दायित्व होता है। विपक्ष की भूमिका सरकार की सकारात्मक आलोचना करना और सत्ता के निर्णयों पर सवाल उठाकर वैकल्पिक व्यवस्था सामने रखने का ही तो है।
पिछले ढाई वर्षों में क्या ऐसा विपक्ष दिखाई दिया जिसने सुझाव में महामारी के नियंत्रण के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था दी हो? जिम्मेदार रवैए के बजाए ऐसे बचकाने बयान और कार्यप्रणाली को ही राजनीति की भाषा में ‘कमजोर विपक्ष’ का आधार माना गया है।
खैर, भारत जोड़ो यात्रा बंद हो, यह कॉन्ग्रेस के ही पक्ष में है। कम से कम जैसे वीडियो और प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं उससे चुनावों में फायदे मिलने के आसार कम ही हैं। कम से कम इसे बन्द कर जिम्मेदार विपक्ष का ‘टैग’ हासिल तो किया ही जा सकता है।
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विपक्ष मात्र विरोध करने वाला पक्ष नहीं होता। वह सरकार के कार्यों पर सवाल उठा सकता है, संसद में जनता के प्रश्नों को उठा सकता है पर यह तो तभी संभव हो सकेगा जब उसके पास तार्किक सवाल होंगे। यदि ऐसा हो तो इंग्लैंड की तर्ज पर एक ‘शैडो कैबिनेट’ बनाकर ही बता दे कि कैसे सरकार स्थिति का गलत आकलन और उपाय कर रही है। ‘ये उन्होंने नहीं किया तो मैं भी नहीं करूंगा’ का रवैया तो राजनीति में विपक्ष की भूमिका और गंभीरता को समाप्त कर देगा।
महात्मा गाँधी ने कहा था कि खुद वो बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। आज भारतीय विपक्ष लड़खड़ाया हुआ है तो वो सरकार से सवाल भी नहीं कर सकता। कोई भी परियोजना, अभियान, उपाय मात्र सरकार के प्रयासों से सफल नहीं होते इसके लिए सहयोग की जरूरत होती है। नागरिकों से भी और विपक्ष से भी। इसलिए महामारी का राजनीतिकरण ना करके विपक्ष जब अपनी जिम्मेदारी समझ लेगा तो उसे किसी यात्रा की जरूरत नहीं होगी।