आत्मनिर्भर भारत अभियान से चीन की घबराहट बढ़ गई है। वह भारत के खिलाफ कभी सीमा पार से घुसपैठ व मुठभेड़ की कोशिश करता है तो कभी अवैध हथियारों से भारत की आंतरिक सुरक्षा व शांति को भंग करनी की कोशिश करता है। इस सप्ताह ही मीडिया में आई खबरों से पता चला कि कम्युनिस्ट चीन भारत के एक तथाकथित मीडिया संस्थान को भारत के खिलाफ गलत विमर्श व झूठी खबरें चलाने के लिए फंडिंग कर रहा है। आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता व भारत के आर्थिक रुप से शक्तिशाली बनने से वह घबरा गया है। इसलिए सीधे किसी मोर्चे पर भारत से प्रतियोगिता करने के बजाय वह एक बार फिर छद्म लड़ाई पर आ चुका है जो कि कम्युनिस्ट चीन की इसके गठन के समय से नियति रही है।
आर्थिक आंकड़ों की बात करें तो भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 2020-21 में 16.5 फीसदी से गिरकर 2021-22 में 15.4 फीसदी पर पहुंच गई है। भारत में चीन से आयात होने वाली मुख्य चीजों को टेलीकॉम और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में मांग को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है लेकिन अब भारत आत्मनिर्भर अभियान के तहत इन क्षेत्रों में भी आत्मनिर्भर बन रहा है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान वही है जो स्वदेशी जागरण मंच पिछले 30 वर्षों से कहता आ रहा है। इसके तहत भारत को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाना है। भारत अपने ग्राहकों के लिए ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं का स्वयं निर्माण करें। यह विचार हर जगह गूंज रहा है, दुनिया भर के देश यह महसूस कर रहे हैं कि आत्मनिर्भरता ही सबसे अच्छी नीति है। भारत के इस महत्वपूर्ण अभियान से चीन विभिन्न मोर्चों पर हारकर सबसे बड़ा नुकसान उठाने वाला है। पहला, मांग पर, क्योंकि इससे बहुत से ऑर्डर रद्द होना तय है। दूसरा, विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उनकी धरती से स्थानांतरित करके। और अंत में, यह 65 से अधिक देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को खोने जा रहा है जो चीन की बेल्ट और रोड पहल का हिस्सा थे। इस कारण भी कम्युनिस्ट चीन इस अभियान की सफलता से घबराकर मणिपुर व पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंसा फैलाने की कोशिश में लगा हुआ है।
भारत के साथ चीन के तनावपूर्ण रिश्तों का असर दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार पर भी दिखने लगा है। पिछले सात सालों में सिर्फ चीन से होने वाले आयात में ही कमी नहीं आई है बल्कि व्यापार घाटे में भी कमी आने लगी है। वर्ष 2016 (जनवरी-दिसंबर) में भारत ने चीन को सिर्फ 8,961.69 अरब डालर का निर्यात किया था। जो वर्ष 2021 (जनवरी-दिसंबर) में बढ़कर 19,996.56 अरब डॉलर हो गया। विदेश व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उन सभी क्षेत्रों में उत्पादन के प्रयास शुरू हो गए हैं जिन क्षेत्रों में भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर करता था। इस काम में तेजी के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम व अन्य प्रोत्साहन स्कीम की शुरुआत की गई। जानकारों का मानना है कि अगले दो-तीन सालों में इन प्रयासों का असर दिखने लगेगा और चीन से आयात में और कमी आएगी। इससे भारत चीन से आर्थिक मोर्चे पर भी आगे बढ़ रहा है जो कि कम्युनिस्ट चीन की चिंता का बड़ा कारण हो गया है।
चीन और भारत के बीच अत्यंत व्यापार असंतुलन है, इस व्यापार में चीन ज्यादा मुनाफा कमाता है। चीन जितना माल हमें बेचता है, उससे कम ही माल हम उसे बेच पाते हैं। दूसरी ओर भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है। भारत के साथ किसी भी प्रकार का व्यापारिक भेदभाव किसी देश की कमर तोड़ सकता है। चीन की निरंकुश आर्थिक नीति से विश्व का भी मोहभंग हो गया है। एप्पल समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारत आने से अब देश, विश्व का कारखाना बन रहा है। ऊपर से भारतीयों की आत्मनिर्भरता और चीनी सामानों के बहिष्कार की नीति ने चीनी अर्थव्यवस्था की नींव हिला दी है। विगत दिनों ग्लोबल टाइम्स की ऐसी ही एक रिपोर्ट चीन की इसी छटपटाहट को प्रदर्शित करती है।
विगत दिनों गुजरात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेमीकॉन इंडिया 2023 समिट में जो तस्वीर दिखाई, उसने पुख्ता कर दिया कि भारत तेज गति से सेमीकंडक्टर निर्माता बनने की दिशा में बढ़ रहा है। इस तस्वीर ने कम्युनिस्ट चीन के होश हवा कर दिए। भारत की तरक्की से जलने वाले देशों में चीन सबसे ऊपर है। चीन की ओर से भारत के सेमीकंडक्टर मिशन को रोकने की भरपूर कोशिश भी हो रही है। भारत और चीन के बीच की प्रतिद्वंदता किसी से छिपी नहीं है। चीन लगातार कोशिश कर रहा है कि भारत के इस मिशन को रोक दे। चीन के खिसियाहट का नतीजा है कि उसने सेमीकंडक्टर निर्माण में इस्तेमाल होने वाले दो प्रमुख तत्वों गैलियम और जर्मेनियम (Gallium-Germanium) के निर्यात पर रोक लगा दिया है। लेकिन भारत पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है।
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सेमीकंडक्टर का महत्व इस बात से है कि इसे नए जमाने का ‘ऑयल’ माना जाता है। मोबाइल, रेडियो, टीवी, वॉशिंग मशीन, कार, फ़्रिज, एसी, एटीएम कार्ड आदि आज के जमाने में कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ऐसा नहीं है, जहां सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल नही होता हो। इसे इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट्स का दिल माना जाता है। सेमीकंडक्टर रोजमर्रा की ज़िंदगी की हिस्सा बन चुका है । इसकी कमी होने से दुनियाभर में खलबली मच जाती है। सेमीकंडक्टर, कंडक्टर और नॉन-कंडक्टर या इंसुलेटर्स के बीच की कड़ी है। इसे नए जमाने का ऑयल कहा जा रहा है।
सेमीकंडक्टर की दिशा में भारत जितनी तेजी से बढ़ रहा है, चीन के पेट में उतना ही दर्द बढ़ता जा रहा है। दरअसल अभी तक दुनियाभर के देश सेमीकंडक्टर के लिए चीन का दरवाजा खटखटाते थे, लेकिन अब वो कंपनियां भारत की ओर देख रही है।
वहीं चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी डूब रहा है, वहां लोग बेरोजगार हो रहे हैं। अगर चिप मेकिंग कंपनियां भी हाथ से निकल गई तो चीन की अर्थव्यवस्था को ओर गहरा झटका लगेगा। मौजूदा वक्त में भारत का सेमिकॉन मार्केट 23 बिलियन डॉलर का है। वर्ष 2028 तक यह 80 बिलियन से 100 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। भारत के इस मिशन से चीन पर हमारी निर्भरता कम होगी। भारत सिर्फ अपनी जरूरत के लिए नहीं बल्कि निर्यात के लिए भी सक्षम बन सकेगा। अभी चिप और डिस्प्ले फ़ैब्रिकेशन में चीन का दबदबा है। चीन, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और दक्षिण कोरिया दुनियाभर को चिप और सेमीकंडक्टर की सप्लाई करता है। अब भारत के इस प्रतियोगिता में आने से कम्युनिस्ट चीन की चिंता तो बढ़नी ही है।
भारत के इसी आत्मनिर्भर अभियान की निरंतर सफलता से घबराकर चीन छद्म लड़ाई व नैरेटिव वार (विमर्श युद्ध) का सहारा ले रहा है। जिसके तहत चीन भारत की बढ़ती साख व आर्थिक विकास के खिलाफ झूठी, भ्रामक व मनगढ़ंत खबरें व मनगढ़ंत तथ्यों को चलाने के लिए ‘न्यूज क्लिक’ जैसी ऐजेंसी को तीन सालों में करीब 38 करोड़ रुपये भारत विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने के लिए मिलने की खबर मीडिया में आ रही है। यह पहली बार नहीं है। ऐसा कम्युनिस्ट चीन पहले भी करता रहा है। कुसुमलता केडिया अपनी पुस्तक ‘कम्युनिस्ट चीन (अवैध अस्तित्व)’ में प्रमाणिक रूप से कहती है कि कम्युनिस्ट चीन के लिए यह सामान्य बात है क्योंकि कम्युनिस्ट विचारधारा व चीन का गठन ही प्रोपेगेंडा विचारधारा पर हुआ है और इसकी अधिकांश नीतियां ऐसे ही झूठ व षड्यंत्रों पर आधारित रही हैं।
यह लेख भूपेंद्र भारतीय द्वारा लिखा गया है।
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