इंग्लैंड के बर्मिंघम में 28 जुलाई से 8 अगस्त तक आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रदर्शन शानदार रहा है। 22 स्वर्ण, 16 रजत और 23 कांस्य के साथ भारत के खाते में कुल 61 पदक आए और पदक तालिका में भारत चौथे स्थान पर रहा। इन्हीं खेलों से कई खिलाड़ी उभर कर सामने आए। परिणाम यह रहा कि देश पदक तालिक में सम्मानजनक स्तर पर पहुँच पाया।
इनमें अमित पंघाल, पुजा गहलोत, अचंत शरत कमल, मोहित ग्रेवाल, आकर्षी कश्यप, दिव्या काकरान, सौरव घोषाल, सुशीला लिकमाबाम जैसे कई नाम शामिल हैं। यह वो खिलाड़ी हैं जो जीत के बाद हेडलाइन्स से गायह हो जाते हैं। ऐसे में आज हम इनकी संघर्ष के साथ इनकी जीत की कहानी आप के सामने रखेंगे-
अमित पंघाल
हरियाणा के रोहतक में किसान परिवार में जन्में अमित को उनके भाई ने मुक्केबाजी के लिए प्रेरित किया, जो खुद भी मुक्केबाजी किया करते थे। अमित महज 5 फीट और 2 इंच लंबे हैं लेकिन, उनके पंच इतने मजबूत हैं कि वो विश्व मुक्केबाजी चैंपियशिप में रजत पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय मुक्केबाज हैं। इसी प्रदर्शन के कारण वो AIBA रैंकिग में 52 किग्रा वर्ग में नंबर-1 पर कब्जा करने में कामयाब रहे थे।
अमित की उपलब्धियां
- अमित ने कामयाबी का स्वाद सबसे पहले 2017 में चखा, जब राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था।
- 2017 में ही एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक पर कब्जा जमाया।
- एशियन चैंपियनशिप में मिली जीत ने ही अमित का विश्व चैंपियनशिप का टिकट पक्का किया था।
- हालाँकि, फाइनल में हसनबॉय दुश्मातोव के हाथों हार मिली थी।
- 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में अमित ने हार से खड़े होकर रजत को अपने नाम किया था।
- 2018 में ही हुए एशियाई खेलों में अमित ने अपने प्रतिद्वंदी दुश्मातोव को हराकर स्वर्ण जीता और विश्व चैंपियनशिप का बदला पूरा किया।
राष्ट्रमंडल खेलों में अमित का प्रदर्शन
- 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में अमित ने स्वर्ण जीता था।
- फाइनल मैच में इंग्लैंड के कियारन मैकडोनाल्ड को 5-0 से मात दी थी।
- इससे पहले 2018 के राष्ट्रमंडल शानदार प्रदर्शन करते हुए रजत पदक जीता था।
पूजा गहलावत
हरियाणा के सोनीपत में 1997 को जन्मी पूजा ने 6 साल की उम्र से ही अखाड़े में उतरना शुरु कर दिया था। हालाँकि, पूजा के पिता को उनका कुश्ती खेलना पंसद नहीं था तो उनको वॉलीबॉल में हाथ आजमाया और जुनियर राष्ट्रीय स्तर पर खेल भी दिखाया।
2010 में हरियाणा की ही गीता और बबीता फोगाट ने 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीता तो पूजा एक बार फिर कुश्ती की तरफ मुड़ गई। 2014 से उन्होंने कुश्ती के लिए पेशेवर ट्रेनिंग ली लेकिन, लड़कियों के लिए जो प्रशिक्षण केंद्र था वह उनके घर से इतनी दूर था कि जो समय कुश्ती ट्रेनिंग में जाना चाहिए था वो आने-जाने में लग रहा था। इससे तंग आकर पूजा ने लड़कों के प्रशिक्षण केंद्र में जाना शुरु तो किया लेकिन, उन्हें सहज नहीं लगा, जिसके बाद उनका परिवार उन्हें लेकर रोहतक चला गया।
2016 में पूजा ने राष्ट्रीय जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप जीती लेकिन, इसी के बाद चोट लगने से लंबे समय तक खेल से दूर होना पड़ा था।
पूजा की उपलब्धियां
- पूजा को पहली अंतरराष्ट्रीय सफलता 2017 में मिली थी, जब एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था।
- 2019 में बुडापेस्ट में हुई अंडर-23 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक अपने नाम किया था।
- इस प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने वाली वह भारत की दूसरी महिला है।
राष्ट्रमंडल खेलों में पूजा
- राष्ट्रमंडल खेल 2022 में पूजा ने कांस्य पदक अपने नाम किया था।
- सेमीफाइनल में पूजा को कनाडा की मैडिसन पार्क से हार का सामना करना पड़ा था।
दिव्या काकरान
दिव्या का जन्म अक्टूबर 1998, में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुआ। दिव्या के पिता लंगोट बेचने का काम करते हैं और माता लंगोट सिलने का। दिव्या का जीवन संघर्षों भरा रहा है लेकिन, कभी उनकी राह नहीं रोक पाया। खिलाड़ी के दादाजी भी पहलवान थे और इसे से दिव्या ने इस खेल में कदम रखा था। दिव्या ने दिल्ली राज्य चैंपियनशिप में 17 स्वर्ण पदकों सहित 60 पदक अपने नाम किए हैं। साथ ही 14 बार भारत केसरी भी जीता है।
दिव्या की उपलब्धियां
- 2017 में हुए एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक अपने नाम किया
- 2017 में ही आयोजित हुए ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप, सीनियर नेशनल चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ रेसलिंग चैंपियनशिप में दिव्या स्वर्ण पदक जीत कर घर लाई थी।
- 2018 में, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ खेलों में कांस्य पर कब्जा जमाया।
- 2019 में चीन में हुई एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में दिव्या ने कांस्य जीता था।
- 2020 और 2021 के एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में दिव्या का प्रदर्शन शानदार रहा और उन्होंने स्वर्ण पर कब्जा जमाया।
- 2022 के कॉमनवेल्थ खेलों में कांस्य जीतकर दिव्या ने देश का नाम रोशन किया।
अविनाश साबले
महाराष्ट्र के बीड जिले में सितबंर, 1994 में जन्मे अविनाश साबले का जन्म साधारण परिवार में हुआ था। अविनाश के माता-पिता किसान हैं। आम परिवार से आने वाले अविनाश ने खेल में करियर बनाने का नहीं सोचा था बल्कि, सेना में जाकर अपने परिवार की सहायता करने की योजना बनाई थी। हालाँकि, सेना में जाने के बाद उन्हें खेल के संपर्क में आने का मौका मिला और आखिरकार उन्होंने भारत को स्टीपलचेज में रजद दिलाकर इतिहास रच दिया।
अविनाश की उपलब्धियां
- 2018 में ओपन नेशनल में साबले ने 29.88 सेंकड का समय निकाला।
- इसी मैच में साबले ने 30 साल के नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ दिया था।
- 2019 में पटियाला में फेडरेशन कप में 8.28.89 का समय निकालकर नया रिकॉर्ड बनाया।
- राष्ट्रमंडल खेलों में अविनाश ने पहली बार में रजत पदक अपने नाम किया है।
अनु रानी
अगस्त, 1992 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में अनु रानी का जन्म हुआ। 9वीं कक्षा से ही वह खेतों में गन्ने को फेंककर भाला फेंक का अभ्यास किया करती थी। उनके पिता उन्हें मंहगा भाला नहीं दिला सकते थे, इसलिए शुरुआती दिनों में वो बांस से ही अभ्यास किया करती थी।
एक अच्छे भाले की औसतन कीमत करीब 1 लाख तक होती है। इसीलिए भाला खरीदने के लिए अनु के परिवार को बाद में कर्ज लेना पड़ा था था। हालाँकि, एकबार भाला हाथ में आने के बाद अनु रानी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अनु की उपलब्धियां
- 2014 के अंतर राज्यीय चैंपियनशीप में 14 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 58.83 मीटर की दूरी पर भाला फेंका और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
- 2014 में ही कोरिया में हुई एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता।
- 2016 के नैशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पहली बार 60.1 का आंकड़ा छुआ और अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया।
- 2017 में एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक पर कब्जा जमाया।
- 2019 में दोहा में आयोजित हुए एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशीप में रजत पदक जीता।
- 2019 के शानदार प्रदर्शन से वह भारत की पहली महिला बनी जिसने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशीप में क्वालीफाई किया था।
- 2019 में ही आईआईएफ एथलेटिक्स चैलेंज में कांस्य पदक जीता।
- अनु की सबसे बड़ी उपलब्धि राष्ट्रमंडल खेल 2022, में रही जहाँ उन्होंने कास्यं पदक जीता
- ऐसा करने वाली वह भारती की पहली महिला भाला फेंक खिलाड़ी बन गई।
गुरुराजा पुजारी, साथियान गणानाशेखरन, विकास ठाकुर, नाम बहुत हैं और शब्द कम। भारत, जहाँ हर राज्य से अलग-अलग खेल के धुरंधर निकलते हैं। यह प्रसिद्धि से दूर होते हैं लेकिन, जब देश के नाम मेडल लाते हैं तो हर अखबार की हेडलाइन बन जाते हैं। हालाँकि, यह सराहना उस एक मेडल के लिए नहीं बल्कि, उसके पीछे सालों से लगी मेहनत के लिए है। यह खिलाड़ी बहुत कम संसाधनों के साथ प्रशिक्षण लेते हैं, और देश के लिए मेडल लाते हैं, ऐसे में यह अनिवार्य है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन इन्हें संसाधन और सुविधाएं समय से उपलब्ध करवाएं। इस दिशा में पिछले सालों में सुधार सामने आया है हालाँकि, मंजिल अभी दूर है।